Book Title: Devdravya
Author(s): Mohanlal Sakarchandji
Publisher: Mohanlal Sakarchandji

View full book text
Previous | Next

Page 3
________________ हगाम अथवा शहेरमा अगाउ सारी स्थितिमा होवा तमाम श्रावकवर्ग नबळी स्थितिमा आवी जाय ते दरम्यान देवद्रव्यनी संभाळ राखनार कोइ सारी स्थिा चालू होतुं नथी त्यारे तेमां जरुर बीगाड थाय छे.. 2 केटलाएक मोटा माणसो नामना उपरी गई, वहीवट करनारने हाथे तेनी नजरमां आवे तेम देवद्रव्यनी तथा ते संबंधी मीलकतनी लेवढदेवड करवा तथा खरच करवा तथा कारभार चलाववा दइ, पोते बीनदरकारी थइ, तपास न राखी, तेवा माणसने भरुसे बेसी रहेवाथी, अथवा तो शरममां पडी जेम करे तेम करवा देवाथी, तेमन कोइ सारा वहीवट करनार अथवा संभाळनार पुन्यशाळी मळ्या होय अथवा मळे, अने ते कोई वात पूछे अथवा बतावे अथवा मदद मागे तो ते न आपवाथी, अने वखतपर तेना कृत्यमा अजाणपणाथी अनायासे आवेली भूलने वखोडवाथी, अथवा तो ते कामनो सपळो बोजो तेने शिर नाखी देवानी दहशत बताववाथी के नाखी देवाथी, अने पोते अलग रही वातो करवाथी तथा तेवा बीजा कारणोथी बीगाड थतो आपणा सांभळवामां आव्यो छे, अने आवे छे. आ प्रमाणे बीगाड थाय छे तेना मुख्य कारणीक प्रथम तो आपणेज छीए. कारण के पूर्वाचार्यो जेओ महान् पंडितो हता अने अवसरना जाण हता, तेओ श्रीचंदकेवळी चरित्र, उपदेशमा

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 ... 58