Book Title: Dasvaikalik Sutra Mool Path
Author(s): Gyansundar
Publisher: Nathmalji Moolchandji Shah

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Page 19
________________ ( १३ ) खिष्पं गति अमर जवणाई ॥ जेसिं पियो तवो संजमोय, खंतीय बंजचेरं च ॥ २८ ॥ ( अनुष्टुब्वृत्तम् ) इच्चये जीवयिं, सम्मद्दिधि सया जए || लहं लनितु सामन्नं, कम्मुणा न विराहितासि, तिबेमि ॥ २९ ॥ इति बीवणिया नामं च यणं सम्मत्तं ॥ ४॥ ॥ संपत्ते जिरक कालंमि, संतो मु;ि इमेल कम्म जोगेणं, नत्त पाएं गवेसए ॥ १ ॥ से गामे वा नगरेवा: गोयरंग्ग गर्छमुणी; चरे मंदमऽणुविग्गो, अवरिकत्तेण चेयसा ॥ २ ॥ पुर जुग मायाए; पेहमाणो महिंचरे; वद्यतो वीय हरियाई, पाणे य दग महियं ॥ ३ ॥ उवायं विसमं खाणु, विद्यलं परिव ar: संकमेणं नगन्नेधा, विद्यमाणो परकमे ॥ ४ ॥ पवन ते वसे " , परकलंते व संजए, हिंसेच पाण नूयाई, तरसे अव थावरे ॥ ९ ॥ तम्हा ते नगच्छेद्या संजए सुसमाहिए; सअन्ने मग्गेण, जयमेव परक्कमे ॥ ६ ॥ इंगालं बारियं रासिं तुसरासिं च गोमयं ससररकेहिं पाएहिं, संजन तं नइकमे, ॥ ७ ॥ नच वासे वासंते महियाए व पतिए; महावाए व वायंते, तिरित्रं संपाइमेसु वा ॥ ८ ॥ नचरेऊ वेस सामंते, बंजचेर वसाऽणुए; बंजयारिस्स दंतस्स, होद्या तब विसोत्तिया ॥ ए ॥ श्रायणे चरंतस्स; संसग्गीए रिक होद्य वया पीला, सामन्नमि य संस ॥ १० ॥ तम्हा एवं विया - पित्ता, दोसं डुग्गर वढ्ढणं वद्यए वेस सामते, मुणी एगंत

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