Book Title: Dasvaikalik Sutra Mool Path
Author(s): Gyansundar
Publisher: Nathmalji Moolchandji Shah
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नीसेस, अश्यारं च जहक्कम; गमणाऽगमणे चेव, जत्त पाणेव संजए ॥ ए॥ उपन्नो मणुविग्गो, अव रिकत्तण चेयसा, आलोए गुरु सगासे, जं जहा गहियं नवे ॥ ए० ॥ नसम्ममालोश्यंदुद्या, पुर्विपञ्चा व जं कर्म, पुणो पमिक्कमे तस्स, वोसो चिंत्तए श्मं ॥ १ ॥ अहोजिणेहिं असावा; वीति साहुण देसिया; मोरक साहण हेजस्स; साहु देहस्स धारणाः ॥ ए॥ नमुक्कारेण पारित्ता. करित्ता जिण संथवं; सद्यायं पवित्ताणंवीसमेध खणं मुणीः॥ ए३ ॥ वीसमंतो इमं चिंत्ते, हियमला, नमन्छि; ज मे अणुग्गहं कुजा, साहु होछामि तारिज ॥ए॥ ॥ एए॥ साहवोतो चियत्तेणं, निमतिय जहक्कमं; जश् तबकेश् इविद्या, तेहिं सम्धिं तु मुंजए ॥ ए६ ॥ अह कोश् न इविद्या, तन लुजेद्य एगल;आलोए जायणे साहु,जयं अपरिसामिय॥ए॥
(काव्यम्.) तीतगं च कडुयं च कसायं, अंबिलं च मडुरं च लवणं वा; एय लछमन्नपउत्तं, मदु घयं व मुंजेक्ष संजए ॥ एG ॥
(अनुष्टुब्वृत्तम्.) अरसं विरसं वावि, सुश्यं वा असुश्यं; नवं वा जश् वासुकं, मंथु कुमास नोयणं ॥ एए॥ उपन्नं नाही विद्या, अप्पं वा बहु फासुयं; मुहा लहं मुहाजीवी, मुंघेका दोस वधियं ॥ १० ॥ मुलहा उ मुहादाइ, मुहा जीवी वि उबहा; मुहादाइ मुहाजीवी, दोविगति सुग्गइं तिबेमि ॥ १०१॥ इत्ति पिंझे सणाए पढमो उद्देसो समत्तं ॥ ५॥१॥

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