Book Title: Dasvaikalik Sutra Mool Path
Author(s): Gyansundar
Publisher: Nathmalji Moolchandji Shah
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(२०) चउन्हें खलु नासाणं, परिसंखाय पन्नावं; दोन्हं तु विणयं शिरके, दो ननासेश सबसो ॥ १॥ जा य सच्चा अवत्तवा, सच्चामोसा य जामोसा; जाय बुधेहिं नान्ना, न तं नासिश पन्नवं ॥२॥ असच्चं मोसं सच्चंच, अणवसमकक्कसं; समुप्पेह मसंदिळं, गिरंनासेश पन्नवं ॥३॥ एयंच अज्मन्नंवा; जंतु नामे सासयं; स नासं सच्चमोसंपि, तंपिधीरो विवशए॥४॥ वितहंपि तहा मुत्तिं, जंगिरं नासए नरो; तम्हा सो पुछो पावेएं; किंपुणजो मुसंवए ॥ ५ ॥ तम्हा गन्हा मो वखामो अमुगं वाणि नविस्स; अहं वाणंकरि स्सामि, एसो वा एं करिस्सा ॥६॥ एवमाइन जा नासा, एस कालंमि संकिया; संपयाश्यमच्वा, तं पि धीरो विवद्यए ॥ ७ ॥ अश्यंमि य कालंमि, पच्च पन्नमणागए; जं महं तु नजाणेशा, एमवेयंति नोवए ॥७॥ अश्यं मिय कालंमि, पञ्चुप्पन्नमणागए; जल संका नवे तंतु, एव मेयंति नोवए ॥ ए॥ अश्यं मिय कालंमि, पच्चुप्पन्न मणागए; निस्संकियं नवे जंतु, एवमेयंति निदिसे ॥ १०॥ तहेव फरसा नासा, गुरु तुन वघाणी; सच्चाऽविसा नवत्तवा, जज पावस्स आग: ॥११॥ तहेव काणंकाणेत्ति, पंमगं पंगे त्तिगा; वाहियंवाऽविरोगेत्ति, तेणंचोरेत्ति नोवए ॥ १२॥ ए ए एऽ नेण अणं; परोजेणुवहम्म आयार नाव दोसन्न, न तं जासेद्य पन्नवं ॥१३॥ तहेव होले गोलेत्ति, साण वा वसुलेतिय; दमए उहए वावि, नेवं नासेक पन्नवं ॥ १४ ॥ अकिए पकिए वावि, अम्मो मानसिउत्तियं, पिसिए नायणिकत्ति, धूए नतुणिय त्तिय ॥१५॥हले हलत्ति अन्नत्ति, नट्टे सामिणि गोमि

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