Book Title: Dasvaikalik Sutra Mool Path
Author(s): Gyansundar
Publisher: Nathmalji Moolchandji Shah

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Page 53
________________ ( ४७ ) खाणं, तिकंरुसे पंरुंग वेजयंते ॥ से जोयणे वणवई सहस्से, उद्धुस्सि हे सहस्समेगं ॥ १० ॥ पुढे जे चि‍ भूमिवडिए, जं सूरिया अणुपरिवट्टयंति ॥ से हेमवन्ने बहु नंदणे य, जंसि, रई वेदयंति महिंदा ॥ ११ ॥ से पव्वए सह महप्पगासे, विराय कंच मवन्ने || अत्तरे गिरिसु य पव्वग्गे, गिरिवरे से जलिएव जोमे ॥ १२ ॥ महीए ममि लिए एगिंदे; पन्नायते सूरिय सुलेसे || एवं सिरिएन स जूविन्ने, मणोरमे चिमाली || १३ || सुदंसणस्सेव जसो गिरिस्स पवु - महतो पव्वयस्स ॥ एतोवमे समणे नायपुत्ते, जाई जसो दंसण नासीले ||१४|| गिरिवरेवा निसहाययाणं, रुयएव सेव लयायतां । तर्जवमे से जगनू पन्ने, मुणीए मजे तमुदाहु पन्ने ॥ १९ ॥ ऋणुत्तरं धम्म - मुईरइत्ता, अणुत्तरं जाणवरं जियाई ॥ सुसुक्क सुक्कं पगंमसुक्कं संखिंवेगंतवदातसुक्कं ॥ १६ ॥ - गुत्तरग्गं परमं महेसी, असेसकम्मं स विसोहइत्ता | सिद्धिंग साइमांत पत्ते, नाणेण सीलेण य दंसणेणं ॥ १७ ॥ रुख्खेसु गाए जह सामलीवा, जस्सि र वेदयंति सुवन्ना ॥ वसुवा नंद माडुसे, नाणेण सीले य जूझपन्ने ॥ १० ॥ ययिंव सद्दा अत्तरे, चंदोत्र ताराण महाणुजावे, गंधेसुवा चंदा - माहु से, एवं मुन्नि - माडु ॥ १९ ॥ जहा सयंजू उदहीण सेहे, नागेसुवा धरविंद माडु सेहे ॥ खन्दएवा रसवेजयंते, तोवहा मुणि वैजयंते ॥ २० ॥ हविसु एरावण - माहु पाए, सीहो मियाएं सलिला ए गंगा || पख्खि सुवा गुरुलेवेणुदेवे, निव्वा वादी हि पायपुत्ते ॥ २१ ॥ जोहेसु पाए, जहवीससे पुफे ,

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