Book Title: Dasvaikalik Sutra Mool Path
Author(s): Gyansundar
Publisher: Nathmalji Moolchandji Shah

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Page 52
________________ श्री सुधर्म गणधर प्रणीत वीरस्तुति (सूयगड अ० ६ को) (काव्यम्.) पुचिस्सुणं समणामाहणा य, अगारिणोया परतिचिया य॥ से केश्णेगंत-हियधम्ममाहु, अणे विसं साहुसमिरकयाए ॥१॥ कहं च नाणं कहं ईसणं से, सीलं कहं नायसुयस्स श्रासी ॥ जाणासिणं निखु जहातहेणं, अहासुयं बूहि जहाणिसंतं ॥२॥ खेयन्ने से कुसले महेसी, अणंतनाणी य अणंतदंसी ॥ जसस्सिणो चख्खुपहज्यिस्स, जाणाहि धम्मं च धियं च पेंहा ॥३॥ जथं अहेयं तिरियं दिसा सु, तसा य जे थावर जेय पाणा ॥ से णिच्चणिच्चेहिं समिरक पन्ने, दीवेव धम्म समियं उदाहु ॥४॥ सेसव्वदंसी अनियनाणि,मिरामगंधे धिश्मं विअप्पा ॥अणुत्तरे सव्व जगंसिविऊ, गंथा अतीते अनये अणाज॥५॥ से जूझपन्ने अणिएअचारी. उहंतरे धीरे अणंतचख्खु ॥ अणुत्तरे तप्पर सूरिएवा, वश्रोयर्णिदेव तमंपन्नासे ॥ ६॥ अणुत्तरं धम्ममिणं जिणाणं, ऐया मुणि कासव श्रीसुपन्ने ।। इंदेव देवाण महाणुनावे, सहस्सणेता दिविणंविसि ॥७॥ से पन्नया अरकय सागरेवा, महोदहिवावि अणंतपारे॥अणाश्लेया अकसाइ जिख्खू, सक्केव देवाहिवई श्मं ॥ ७॥ से वीरिएम पमिपुन्न विरिए सुदंसणे वा णगसव्व सेठे ॥ सुरालएवासिमुदागरे से, विरायएऽणेगगुणोववेए ॥ ए ॥ सयंसहस्साणन जोय

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