Book Title: Dasvaikalik Sutra Mool Path
Author(s): Gyansundar
Publisher: Nathmalji Moolchandji Shah
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - श्रीरत्नप्रनाकर ज्ञानपुष्पमाला पुष्प नंबर ३० । श्रीरत्नप्रभसूरिसदगुरुभ्यो नमः। श्रीमद् __॥ सय्यम्नवसूरिप्रणीतम् ॥ अथश्री दसविकालिक सूत्र मूल पाठ।। संशोधक श्रीमछुपकेश (कमला) गच्छीय मुनि ज्ञानसुंदर प्रकाशक शाहा नथमलजीमूलचंदजी मु. सादरी (मारवाड). प्रथमा वृत्ति १००० वीर संवत् २४४५. अमूट्य नेट. Page #2 --------------------------------------------------------------------------  Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना अहो श्रागमरसिक महाशयो ! परम कृपालु नगवान् वीर वर्धमान प्रनुए सकल जीवहित कारिणीमुखवारिणी संसारनिस्तारिणीकर्म विदारिणी अधमोझारिणी मिथ्यात्व निवारिणी अनिनवाश्चर्यकारिणी हदय हारिणी घादशांगवाणी अर्ध मागधी वाणी वर्णन करी ने जे वाणी त्रणे कालमां त्रणे लोकमां अने त्रणे अवस्थामां आत्मानुं परम कल्याण करे जे जे नव्यजीवो तर्या तरे ये अने तरसे ते सघलुं वीतराग वाणीनुं महात्म्य जे. पांचमा आरामां एकवीस हजार वर्षपर्यंत वीतरागनी वाणी कायम रहेशे वाणी रूपी वीरशासन अखंम प्रवाहे चालशे अने तेमां अहिंसा जगवतीनु मुख्य स्थान श्रीदशवैकालिका सूत्र श्री शयंजव सूरी महाराजे उधृत करी प्रसिद्ध कर्यु ने जेमां '१२० ' गाथा . तेमां ज्ञान दर्शन चारित्र ए त्रण तत्व साक्षात् कार देखाय ज्ञान विना सघलू अंधारं "शानी स्वासोस्वासमे करे कर्मको ने ह” “ आत्माज्ञाननवं पापं श्रास्मज्ञानेन मुच्यते" पढमं नाणं त दया एवंचि सबसंजए "एगंजाप सोसवं जाण सर्वजाणइ सोएगं जाण" एवं खुनाणिणोसारं जनहिंसर किंचणं " शते ज्ञानान्नमुक्तिः" शब्द Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 2 ) ज्ञानान्मुक्तिः " पदार्थज्ञानान्मुक्तिः " इत्यादि अनेक वचनोथी संपूर्ण खात्री बे के ज्ञानथीज परम पद मली शके बेने ज्ञान स्वरूप आत्मा बे " ज्ञानाधिकरणत्वं आत्मलक्षणं " संdire सर्व पंथी ने सर्व महापुरुषोथी एकज श्रवाजे स्वीकृतथलं बे के ज्ञान पद एज मुख्य पदार्थ बे ने तेनी पुष्टिमां दर्शनाने चारित्र बे ज्ञानविना दर्शन चारित्र न कामां ज्ञानविना बीजा पदार्थो एकमाविनाना मीमाजेवा फोगट बे जीवविनाना खाली खोखावे. शिक्काविनाना खोटा रुपीया बे प्राण प्रतिष्टाविना प्रतिमा न कामी बे. तप जप संजम क्रिया अनुष्टान प्रमार्जन प्रतिलेखनादि सकल क्रिया ज्ञान गर्जित होवाथी ज सफल गाय बे ने एटला माटे महापुरुष ज्ञान दर्शन अने चारित्र रूप मुख्य पदार्थ स्वीकाif a तत्त्वनुं यथार्थविवेचन या सूत्रमां करी बताव्यं बे साद्यंतपर्यंत वांचवाथी एटले श्रवण मनन निदिध्यासन पूर्व क आराधन करवाथी बराबर समजी शकाशे ज्ञानीनुं ज्ञान अगाध ने मनुष्यनी बुद्धि स्वरूप होय बे तो पण पुरुपार्थ करवाथी ज्ञानावर्णय कर्म क्षयोपसम थाय बे. प्रांते सर्व कर्म य वाथी आत्मा पारंगत थाय बे. अजर अमर का त्रिय बने बे माटे सकल कर्मनां ज्जघानुं अंत करवा माटे ज्ञाननी आराधना करवी एज नव्यजीवोनुं मुख्य कर्त्तव्य बे परम पवित्र कर्त्तव्यमां कटिबद्ध थई सूत्र सुधारसनुं पान करो बीजां सघलां सूत्रो क्रमे क्रमे विछेद य‍ जसे परंतु पांच Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मा आरानां ला दिवस सूधी आसूत्रना चार अध्ययनो रहेशे भने तेथी ज उपसहसूरी फल्गुश्री साधवी नागिलश्रावक नाग श्री श्राविका विमलवाहन राजा धर्म रुचि प्रधान ए जीवोत्रा सूत्रनी आराधना करी एकावतारी थशे शासननां स्थंन समान तथा शाशननां शिखर समान शाशन जीवन आ सूत्र जे. तेनी यथाशक्ति आराधन करो विघ्नविदारक कल्याण कारक नवजलतारक आपरमागम. महा सूत्र ने. त्रिकरण शुधियी समाराधन करो शिवमस्तु सर्व जगतः परहितनिरता जवन्तुजूतगणाः ..... दोषाःप्रयान्तुनाशं सर्वत्र सुखी नवन्तुलोकाः . सुयदेवयाए जगवई नाणावरणीय कमसंघायं तेसिंखवेउसययं जेसिं सूय सायरे नत्ति आजोयण घाण हिययं सुरनरतिरि आण हरिस संजणणी सरस रसवल बंदा सुहमत्ता जयज जिण वाणी सुज्ञेषु किम् बहुना Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४) ज्ञान बगीचे के पुष्पों को कब सुंघोगे ? श्री पार्श्वमनुके पांचमे पट्ट श्रीमाली, और पोरवाल, वंश स्थापन करनेवाले श्री सयंप्रनसूरी के पट्ट पर श्रशवंशोत्पन्न करनेवाले श्री मपकेश (कमला) गलाधिपति श्री रलमनसूरीजी महाराज स्मरणार्थ श्री रत्नप्रजाकर ज्ञानपुष्पमालाका पुष्प. १ श्री प्रतिमाबत्तिशी.०-०1-६ २ गयधर विलास. ३ दानबत्तिशा. ०-०- ६ ४ अनुकंपाबत्तिशी. २ प्रश्नमाला. प्रश्न. १००-०-१-० 9 पैतीश बोल. ६ स्तवन संग्रह जा. १०-२-० ० दादासाबकी पूजा ०–१–० चर्चाका पब्लिक नोटीस नेट. १० देवगुरु वन्दनमाला. ०-१-० ११ स्तवन संग्रह जा. २० -२-०१२ लिंग निर्णय. १३ स्तवन संग्रह जा. ३ जेट १५ बत्तीस सूत्रदर्पण. १७ ०४ आशातना. १० आगम निर्णय. २१ जैनस्तुति. २ ०-२-० २३ प्रभुपूजा २५ व्याख्याविलास २७ थोकका प्रबन्ध जा. २) ०-१-०२० 97 " जा. ४ ) ० २ ० ३० ३२ १४ सिद्धप्रतिमा मुक्तावली. ०-०-० ०-३-०१६ जैननियमावली नेट जेट १० ऊंके पर चोट (चर्चा) नेट ० - २ - ० २० चेत्यवंदन स्तवनादि ० - १-० २२ सुबोध नियमावली ०-०- ६ २४ जैनदीक्षा. नेट ०-२-० २६ थोकका प्रबन्ध जा १) ० - २-० "" 17 ना ३०-२-० "" 0-8-0 3-0-0 ०-१-० जाग ५ बपते है " जाग ६ नेट 3-0-0 भेट ३१ सुखविपाक मूल सूत्रम् ३३ दशवैकालकसूत्र मूल " ३४ " नाग 9 नेट पत्ता - श्री रत्नप्रजाकर ज्ञान पुष्पमाला मु० ओसीयां जीला जोधपुर - मारवाम. Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ श्रम् ॥ ॥ श्रीमद् शय्यम्जवसूरी प्रणीतम् । wwwww श्री दशवैकालिक सूत्र मूल पाठः (अनुष्टुब्वृत्तम् ) धम्मो मंगल-मुकि, अहिंसा संजमो तवो । देवा वितं संति, जस्स धम्मे सया मणो ॥ १ ॥ जहा मस्स पुप्फेसु, मरो विरई रसं ॥ न य पुष्पं किलामेई, सोय पणे अप्ययं ॥ २ ॥ एमे ए समणा मुत्ता, जे लोए संति सादुणो ॥ विहंगमाव पुष्फेसु, दानत्तेसणे रया ॥ ३ ॥ वयं च वित्तिं बनामो, न य कोइ वहम्मई ॥ श्रागमेसु यंते, पुप्फेसु जमरा जहा ॥ ४ ॥ मडुकार समा बुद्धा; जे जवंति अपिस्सि या ॥ नाणापिंक रया देता, तेण वुच्चंति सादुणो त्ति बेमि ॥ ५ ॥ इति कुम्मपुफिय नाम पढमं अयणं सम्मत्तं ॥ १ ॥ कहन्नु कुका सामन्नं, जो कामे न निवारए | पएपए विसीयंतो, संकप्परसं वसंग ॥ १ ॥ वह गंध - मलंकारं, इचि या ॥ चंदा जे न मुंजंति, न से चाइ चिच्चाई ॥ २ ॥ जेय कंते पिए जोए, लघे विप्पधि कुबई ॥ साही चयई जोए, से दुचाइति च ॥ ३ ॥ ( काव्यम् . ) समाइ हाइ परिचयंतो, सिया मणो निस्सरई बहिया ॥ न Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) सा महं नोवि अहंपि तीसे, श्चेव ता विणिएका रागं ॥४॥ आया वया ही चय सोगमनं, काम कमाही कमियं खुउरकं । बिंदाहि दोसं विणिएध रागं, एवं सुही होहि सिसंपराए ॥५॥ (अनुष्टुब् वृत्तम्.) परकंदे जलियं जोई, धूमके उरासयं ॥ नेवंति वंतयं नुत्तं, कुले जाया अगंधणे ॥ ६॥ धिरबु ते ऽजसोकामी, जो तं जीविय कारणा ॥ वंतं श्चसि आवेड, सेयं ते मरणं नवे ॥७॥ अहं च नोगरायस्स, तं च ऽसि अंधगवह्निणो ॥ मा कुले गंधणा होमो, संजमं निहुउचरं ॥ ॥ जश् तं काहिसि जावं जा जा दिनसि नारि ॥वाया वियोव हमो, अन्अिप्पा नविस्ससि ॥ ए॥ तीसे सो वयणं सोच्चा, संजयाए सुनासियं ॥ अंकुसेण जहा नागो, धम्मे सं पमिवाश्च ॥ १० ॥ एवं करंति संबुझा, पंमिया पवियरकणा ॥ ११ ॥ विणियदृति जोगेसु जहा से पुरिसोत्तमो त्ति बेमि ॥ ११॥ इति सामन्न पुवीय नामं ऽज्जयणं सम्मत्तं ॥२॥ संजमे सुअिप्पाणं, विप्प मुक्काण ताणं ॥ तेसिं-मेयमणान्नं, निग्गंथाणं महेसिणं ॥१॥ उद्देसियं कीयग, नियागं अनिहमाणि य ॥ राश्नत्ते सिणाणे य, गंध मो य वीयणे ॥ संनिही गिहिमत्ते य, रायपि कि-मिबए॥संवाहण दंत पहो. यणा य, संपुरण देह पलोयणा य ॥ ३ ॥ अनावए य नालिए, उत्तस्स य धारणाए॥ तेगिळं पाहणा पाए, सनारंनं च जोश्णो ॥ ४॥ सिझायर पिंमं च, आसंदी पलियंकए ॥ गिह Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३ ) तर निसिकाए, गायस्सुवट्टणाणि य ॥ ए ॥ गिहिणो वेयावमियं, जाइश्राजीववत्तिया ॥ तत्ता- निबुक जोतं, आर स्राणि य ॥ ६ ॥ मूलए सिंगबेरे य, उन्नु खं निधुके ॥ कंदे मूले य सच्चित्ते, फले बीए य आमए ॥ ७ ॥ सोवच्चले सिंधवेलोणे, रोमालो य श्रामए || सामुद्दे पंसुखारे य, कालालोय आमए ॥ ८ ॥ धूवणित्ति वमणे य, वश्चिकम्म विरे || अंजणे दंतवणे य, गायाजंग विनूसणे ॥ ए ॥ सबमेय - माइन्नं, निग्गंथाणं महेसिणं ॥ संजमंमि य जुताणं, बनूय विहारिणं ॥ १० ॥ पंचासव परिन्नाया, तिगुत्ता बसु संजया ॥ पंच निग्गहणा धीरा, निग्गंथा उकु दंसिणो ॥ ११ ॥ - यति गम्हे, हेमंतेसु अवाजमा ॥ वासासु परिसंलीणा, संजया सुसमाहिया || १२ || परीसह रिज देता, धूयमोहा जिइंदिया || संबं दुख पहीणा, पक्कमंति महेसिणो ॥ १३ ॥ डुक्कराई करित्ताणं, दुस्सहाई सहित्तु य ॥ के देवलोसु, केइ सिज्यंति नीरया ॥ १४ ॥ खवित्ता पुत्र कम्माई, संजमे तवे ॥ सिद्धिमग्ग - मणुपत्ता, ताइणो परिनिधुके, त्ति बेमि ॥ १६ ॥ इति खुरुगतियार कहा नामं तश्यं झयणं सम्मत्तंगद्यम्. सुयं मे संते, जगवया एव - मारकयं ॥ इहखलु बीवणिया नामऽज्जयां, समणेणं, जगवया महावीरेणं, कासवेणं पवेश्या, सुरकाया, सु पन्नता सेयं मे हिनं, अज्जयां, धम्मपन्नति ॥ १ ॥ कयरा खलु सा बजीवणिया नामऽज्जयां समणे जगवया महावीरेणं, कासवेणं, पवेश्या, सु ारकाया, Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( R ) सुन्नता सेयं मे हि तिनं अज्जयां धम्म पन्नन्ति ॥ २ ॥ इमा खलु साबी व पियानामऽज्जयां, समषेणं जगवया महावीरेण कासवेणं पवेश्या, सु अरकाया, सु पन्नता सेयं मे अहिजिनं श्रयणं धम्म पन्नत्ति ॥ तं जहा - पुढविकाइया १, श्रा काश्या २, ते काइया ३, वाचकाश्या ४, वणस्सइकाइया ए, तस्सकाइया ॥ ६ ॥ पुढवि चित्तमंत - मरकाया, ग जीवा, पुढो सत्ता, अन्न सब परिणं ॥ १ ॥ चित्तमंत - मरकाया, छोग जीवा, पुढो सत्ता, अन्न स परिएं ॥ २ ॥ तेन चित्तमंत - मरकाया, अग जीवा, पुढो सत्ता अन्न सह परिणए ॥ ३ ॥ वाट चित्तमंत - मरकाया, अग जीवा, पुढो सत्ता, a स परिणं ॥ ४ ॥ वपस्सई चित्तमंत - मरकाया रोग जीवा, पुढो सत्ता, अन्न सह परिए; तंजा - अग्गवीया, मूलबीया, पोरबीया खंधबीया, वीयरुहा, समुचिमा, तण, लया । वएस्सकाश्या, सवीया, चित्तमंत - मरकाया, रोग जीवा, पुढो सत्ता, अन्न सह परिणएवं ॥ ए ॥ से जे पुए इमे गे, वहवे तसा पाणा ॥ तं जहागया, पोयया, जराजया, रसया, संसेइमा, समुचिमा उप्रिया, उववाश्या, जेंसिं केंसिं च पाणाएं, अनिक्कतं, परिक्कतं, संकुचियं, पसारियं, रुयं, जंतं, तस्सियं, पलाइयं, आगर गए; विन्नाया, जे य की पयंगा, जाय कुंथुंपिप्पी लिया, सधे बेदिया, स इंदिया, सबै चरिं दिया, सवेपचिंदिया सबै तिरिरकजोएिया, सबै नेरड्या, सबे मणुया, सधे देवा, सधे पाणा, परमाहमिया ॥ एसो खलु बो जीवनिकार्य, तस्स कार्ड ति पच्चर Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५ ) ॥ ६ ॥ इच्चेसिं हं जीवनिकायाणं, नेव सयं दमं समारं जिजा, नेवऽन्नेहिं दंगं समारंजाविका, दंमं समारंजंतेऽवि अन्ने न समणुजाणेजा, जावजीवाए, तिविहंति विदेणं, मणेणं, वाया ए, काएं, न करेमि, न कारवेमि, करंतंऽपि अन्ने न समणुजाणामि, तस्स जंते, परिकमामि निंदामि, गरिहामि, अप्पा वोसिरामि ॥ पढमे जंते महवर पाणाश्वायार्ज वेरमणं, सबं ते पाणाश्वायं पच्चरका मि से सुदुमं वा, वायरं वा, तस्सं वा, थावरं वा, नेव सयं, पाणेश्वाएका, ने वन्नेहिं, पाश्वायाविजा, पाणेश्वायंतेऽविन्नेन समणु जाणेजा, जावजीवाए, तिविहं तिविहेणं, मणेणं, वायाए, काएं, न करेमि, न कारवेमि, करंतंऽपि अन्ने न समजा - णामि, तस्स जंते, पक्किमामि, निंदामि, गरिहामि, अप्पाणं वो सिरामि ॥ पढ जंते महबए, उवहिमि, सवार्ड पाणाइवाया वेरमणं ॥ १ ॥ अहावरे फुच्चे जंते महबए, मुसावायार्ज वेरमणं, सवं जंते मुसावायं पच्चरकामि । से कोहावा, लोहावा, जया वा हासा वा नेव सयं मुखं वाएका, नेवऽन्नेहिं मुसं वायाविका, मुसं वायंतेऽवि ने न समणुजाऐजा; जावजी - वाए, तिविहं तिविदेणं, मणेणं वायाए, कारणं, न करोमि, न कारवेम करतंऽपि न समणु जाणामि, तस्स जंते पमि - कमामि, निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि ॥ 5च्चे ते महए, जबकिमि, सङ्घार्ज मुसावायार्ज वेरमणं ॥ २ ॥ अहावरे तच्चे ते महए, अदिन्नादाणा नादाणं पञ्चरकामि से, गामे वा नगरे वेरमणं, सबं जंते दि वा, रन्ने वा, अप्पं वा, रन्ने वा, Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६) बहु वा, अणूं वा, शूलं वा, चित्तमंतं वा, अचित्तमंतं वा, नेव सयं अदिन्नं गिहिंझा नेवन्नेहिं अदिन्नंगिहाविजा अदिन्नं गिएहंतेऽवि अन्ने न समणुजाणिजा, जावजीवाए, तिविहं तिविहेणं, मणेणं; वायाए कारणं; न करेमि; न कारवेमि, करतंऽपि अन्ने न समणुजाणामि, तस्स नंते, पमिक्कम मि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि ॥ तच्चे नंते महवए, उवनिमि, सबा अदिन्नादाणा वेरमणं ॥३॥ अहावरे चलने नंते महबए; मेहुणा वेरमणं; सर्व नंते मेहुणं पच्चस्कामि; से दिवं वा, मणुस्सं वा; तिरिरकजोणियं वा; नेव सयं मेहुणं से विजा; नेवऽन्नेहिं मेहुणं सेवावेजा; मेहुणं सर्वतेऽवि अन्ने न समणु जाणिजा; जावजीवाए; तिविहं तिविहेणं; मणेणं; वायाए; कारणं; न करेमि; न कारवेमि; करतंऽपि अन्ने न समणु जाणामिः तस्स नंते; पमिकमामि; निंदामिः गरिहामि; अप्पाणं वोसिरामि ॥ चनने नंते महबए; उवन्जिमि सवाई मेहुणा वेरमणं ॥४॥ अहावरे पंचमे नंते महवए. परिग्गहा वेरमणं; सर्व नंते परिग्गहं पच्चरकामि; से अप्पं वा; बहुं वा; अणुं वा; शूलं वा; चित्तमंत्तं; वा; अचित्तमंत्तं वा; नेवसयं परिग्गरं परिगिह्निजा; ने वन्नेहिं परिग्गहं परिगिएहा; विजा; परिग्गहं परिगिस्तेऽवि अन्ने न समणु जाणिजा; जावजीवाए; तिविहं तिविहेणं; मणेणं, वायाए; काएणं; न करेमिः न कारवेमि; करतंऽपि अन्नेनसमणुजाणामिः तस्स नंते; पमिकमामि; निंदामि; गरिहामि; अप्पाणं वोसिरामि ॥ पंचमे नंते महबए; जवन्जिमिः सबाट परिग्गहा वेरमणं ॥ ५ ॥ Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अहावरे बछे नंते वए; राईलोयणा वेरमणं; सर्व जंते राईजोयणं पच्चरकामि; से असणं वा; पाणं वा; खाश्मं वा; सामं वा; नेव सयं राई लुजिजा; नेवऽन्नेहिराई तुंजाविता राई मुंजतेऽविश्रन्नेन समणुजाणिजा; जावजीवा ए; तिविहं तिविहेणं; मणेणं, वायाए; काएणं; न करेमि; न कारवेमि; करतंऽपि अन्ने न समणुजाणामि; तस्स नंते; पमिकमामि; निंदामिः गरिहामि; अप्पाणं वोसिरामि ॥ठेनंते वए; उवजिमि,सबार्ड राईलोयणा वेरमणं ॥६॥ श्च्चेश्याइं पंच महत्वया राईनो यण वेरमण बम अत्तहियच्याए; जवसंपतित्ताणं विहरामि॥ से निख्खू वा; निख्खूणी वा; संजयविरय; पमिहय पच्चकाय पावकम्मे; दिया वा; रा वा; एगज वा; परिसागउँ वा; सुत्ते वा जागरमाणे वा; से पुढविं वा; जित्तिं वा; सिलं वा; लेलु वा; ससरकं वा कार्य; ससररकं वा ववं; हरेण वा; पाएण वा; कठे ण वा; किलिंचेण वा, अंगुलियाए वा; सिलाग्गए वा; सिलागहरेण वा; नालिहिजा; न विलिहिडा, न धट्टिका ननिंदिजा, अन्नं नालिहाविजा, न विलिहाविजा, न घट्टाविजा, न जिंदाविजा, अन्नं आलिहंतं वा, विलिहंत वा, घटुंतं वा, निंदंतं वा न समणु जाणिजा, जावजीवाए तिबिहं तिविहेणं, मणेणं, वायाए, कारणं, न करेमि, न कारवेमि, करतंऽपि अन्ने न समणुजाणामि, तस्स नंते, पक्किमामि, निंदामि, गरिहामि, अप्पाणं वोसिरामि ॥१॥से निख्खू वा, निख्खूणी वा, संजय, विरय, पमिहय पञ्चरकाय पावकम्मे, दिया वा, राउ वा, एग वा, परिसागउँ वा, सुत्ते वा, जागरमाणे वा, Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७) से उदगं वा, उसंवा, हिमं वा; महियं वा, करगं वा; हरतणुगं वा; सुशोदगं वा; ऊदजा वा कार्य; उदजवं वा ; ससणि वा कायं; ससणि वा ववं; नामुसिजा; न सफुसिङ्गाः नाविलिजा; न पवीलिजा; न अरकोमिजा; न परकोमिजा, न आयाविजा, न पयाविजा; अन्नं नामुसाविजा; न संफुसाविजा, न अवीलाविजा; न पवीलाविजा, न अरकोमाविका, न परकोमाविजा, न आयाविजा, न पयाविजा, अन्नं आमुसंतं वा, संफुसंतं वा, श्रावीलंतं वा, पवीलंतं वा, अरकोमंतं वा, परकोमंतं वा, आयावंतं वा, पयावंतं वा, न समणुजागिजा, जावजीवाए, तिविहं तिविहेणं, मणेण, वायाए, काएणं, न करेमि, न कारवेमि, करंतऽपि अन्ने न समणुजाणामि, तस्सनंते, पमिकमामि, निंदामि, गरिहामि, अप्पाणं वोसिरामि ॥ ॥ से लिख्खू वा, निख्खूणी वा, संजय, विरय, पमिहय पच्चरकाय पावकम्मे, दिया वा, राउ वा, एगढ वा, परिसागउँ वा, सुत्ते वा जागरमाणे वा, से अगणिं वा, इंगाल वा, मुम्मुरं वा, अच्चिं वा, जालं वा, अलायं वा, सुशागणिं वा, उकं वा, न उजिजा, न घटिजा, न निदिजा, न उजालिजा, न पालिका न निवाविजा, अन्नं न उजाविजा, न घट्टाविजा, न निंदाविजा, न उजालाविजा, न पजालाविजान निवविजा, अन्नं उऊंतं वा, घटुंतं वा, निंदतं वा, उजावंतं वा, पजालंतं वा, निवावंतवा, न समणुजाणिजा जावजीवाए, तिविहं तिविहेणं मणेणं, वायाए, काएणं न करेमि, । न कारवेमि, करतंऽपि अन्ने न समणुजाणामि, तस्स नंते, Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) पमिकमामि निंदामि, गरिहामि, अप्पाणं वोसिरामि ॥३॥ से निख्खू वा, निख्खूणी वा, संजय, विरय, पमिहय पच्चकाय पावकम्मे, दिया वा, राठ वा, एग वा, परिसागठ वा, सुत्ते वा, जागरमाणे वा, से सिएण वा, विहूयणेण वा, तालियंटेण वा, पत्तेण वा, पत्तनंगेण वा, साहाए वा, साहानंगेण वा, पिहूणेण वा, पिहूण हलेण वा, चेलेण वा, चेल कन्नेण वा, हजेण वा, मुहेण वा, अप्पणो वा कायं, बाहिरं वा वि पुग्गलं, न फुमिजा, न वीएका, अन्नं न फुमाविजा, न वीयाविजा, अन्न फुमंतं वा, वीयंतं वा, न समणुजाणिजा, जावजीवाए, तिविहं तिविहेणं; मणेणं, वायाए, काएणं, न करेमि, न कारवेमि, करंतंऽपि, अन्ने न समणुजाणामि, तस्स नंत्ते, पमिकमामि, निंदामि, गरिहामि, अप्पाणं वोसिरामि ॥४॥ से लिख्खू वा, निख्खूणी वा, संजय, विरय, पमिहप पच्चरकाय पावकम्मे, दिया वा, रा वा, एगाउँ वा, परिसागउँ वा, सुत्ते वा, जागरमाणे वा, से बीएसु वा, बीय पश्सु वा, रूढेसु वा, रुढ पश्च्सु वा जायसु वा, जाय पश्च्सु वा, हरिएसु वा, हरिय पश्च्सु वा, चिन्नेसु वा, छिन्न पश्छेसु वा, सचित्तेसु वा, सचित्त कोल पमिनिसीएसु वा, न गनिजा, न चिन्जिा , न निसीएजा, न तुयट्टिका, अन्नं न गाविजा, न चिनविका, न निसीयाविजा, न तुयट्टाविजा, अन्नं गळतं वा, चितं वा, निसीयंतं वा, तुयदृतं वा, न समणुजाणिजा, जायजीवाए, तिविहं तिविहेणं, मणेणं, वायाए, काएणं न करेमि न कारवेमि, करंतंऽपि अन्ने न समणुजाणामि, तस्स Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ते, पमिकमामि, निंदामि, गरिहामि, अप्पाणं वोसिरामि ॥५॥ से निख्खू बा, निख्खूणी वा संजय, विरय, पमिहय पच्चरकाय पावकम्मे, दिया वा, राड वा, एगर्ड वा, परिसागडे वा, सुत्ते वा, जागरमाणे वा, से की वा, पयंगं वा, कुंथु, वा, विपिलियं वा हर्कसि वा, पायंसिवा, बाहुँसिवा, उरुसिवा, उदरंसिवा, सीसंसि वा, वसि वा, पमिग्गहंसि वा, कंबलंसि वा, पायपुचणंसि वा, रयहरणंसि वा, गलगंसि वा, उमगंसि वा, दंमगंसि वा, पीढगंसि वा, फलगंसि वा, सेकंसि वा, सथारगं सिवा, अन्नयरंसि वा, तहप्पगारे, उवगरण जाए, तसंजयामेव, पमिलेहिय, पमिलेहिय, पमजिय पमजिय, एगंत मवणिजानोणं संघाय-मावजिजा ॥६॥ . (अनुष्टुवृत्तम्) अजयं चरमाणो य, पाण नूयाइं हिंस॥ बंधई पावयं कम्म, तं से होइ कम्यं फलं ॥१॥ अजयं चिन्माणो य, पाण नूयाइं हिंसश् ॥ बंधाई पावयं कम्म, तं से होइ कमुयं फलं ॥२॥ अजयं आसमाणो व, पाण नूयाइं हिंस॥ बंधई पावयं कम्म, तं से होइ कमुयं फलं ॥३॥ अजयं सयमाणो य, पाण नूयाइं हिंस॥ बंधई पावयं कम्म, तं से हो कमुयं फलं ॥४॥ अजयं मुंजमाणो य, पाण नूयाइं हिंस॥ बंध पावयं कम्म, त से होइ कमुयं फलं ॥५॥ Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११) अजयं जासमाणो य, पाण नूयाई हिंस॥ बंधई पावयं कम्म, तं से हो कमुयं फलं ॥६॥ कहं चरे कहं चि, कहं-मासे कहं सए ॥ कहं मुंजंतो नासंतो, पावकम्मं न बंधई॥७॥ जयं चरे जयं चिो, जयं-मासे जयं सए ॥ जयं मुंजतो जासंतो, पावकम्मं न बंधई ॥ ७ ॥ सब नूयऽप्पनूयस्स, सम्मं नूयाई पास ॥ पिहियासवस्स दंतस्स, पावकम्मं न बंधई ॥ ए॥ पढमं नाणं त दया, एवं चिश सब संजए । अन्नाणी किं काही, किं वा नाहीय सेय पावगं ॥१०॥ सोच्चा जाण कहाणं, सोच्चा जाण पावगं ॥ उनयंपि जाणइ सोचा, जं सेयं तं समायरे ॥ ११॥ जो जीवेवि न याणाई, अजीवेवि न याणई॥ जीवाजीवे अयाएंतो, कहं सो नाही य संजमं ॥ १२ ॥ जो जीवेवि वियाणाई, अजीवेवि वियाणई॥ जीवाजीवे वियाणतो, सो दु नाही य संजमं ॥ १३ ॥ जया जीव-मजीवे य, दोवि एए वियाण ॥ तया गई बहुविहं, सब जीवाण जाण ॥१४॥ जया गई बहुविहं, सब जीवाण जाण ॥ तया पुन्नं च पावं च, बंध मोरकं च जाण ॥१५॥ जया पुन्नं च पावं च, बंध मोरकं च जाण ॥ तया निबिंदए नोए, जे दिवे जे य माणुसे ॥१६॥ जया निविदए नोए, जे दिवे जे य माणुसे ॥ Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२) तया चयर संजोगं सनिंतर बाहिरं ॥ १७ ॥ जया जयश् संजोगं, सप्रिंतरं, बाहिरं ॥ तया मुंझे जवित्ताणं, पवश्ए अणगारियं ॥ १७ ॥ जया मुंझे जवित्ताणं, पवश्ए अणगारियं ॥ तथा संवर-मुक्क, धम्मं फासे अणुत्तरं ॥ १५॥ जया संवर-मुक्क, धम्मं फासे अणुत्तरं ॥ तया धुणई कम्म रयं, अबोहि कलुसं कम ॥२०॥ जया धुणई कम्म रयं, अबोहि कलुसं कम ॥ तया सवत्तगं नाणं, दंसणं चालिगबई ॥१॥ जया सबत्तगं नाणं, दंसणं चालिगबई॥ तया लोग-मलोगं च, जिणो जाण केवली ॥ २३ ॥ जया लोग-मलोगं च, जियो जाण केवली ॥ तया जोगे निमित्ता, सेलेसिं पमिवजई ॥२॥ जया जोगे निमित्ता, सेलेसिं पमिवई॥ तया कम्मं खवित्ताणं, सिद्धिं गन्न नीर ॥२५॥ जया कम्मं खवित्ताणं, सिद्धिं गबर नीर ॥ तया लोग मजयको, सिखो हवइ सास ॥२५॥ (अर्यागीतिवृत्तम् ) सुहसायगस्ससमणस्स, सायाजलगस्सनिगामसायस्स उदोलणा पहोयस्स, मुबहा सुगइ तारिसग्गस्स ॥ २६ ॥ तवो गुणप्पहाणस्स, उकुमइ खंति संजमरयस्स ॥ परीसहे जिणं तस्स सुसहा सुगइ तारिसग्गस्स, ॥ २७ ॥ पञ्चावि ते पयाया, Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३ ) खिष्पं गति अमर जवणाई ॥ जेसिं पियो तवो संजमोय, खंतीय बंजचेरं च ॥ २८ ॥ ( अनुष्टुब्वृत्तम् ) इच्चये जीवयिं, सम्मद्दिधि सया जए || लहं लनितु सामन्नं, कम्मुणा न विराहितासि, तिबेमि ॥ २९ ॥ इति बीवणिया नामं च यणं सम्मत्तं ॥ ४॥ ॥ संपत्ते जिरक कालंमि, संतो मु;ि इमेल कम्म जोगेणं, नत्त पाएं गवेसए ॥ १ ॥ से गामे वा नगरेवा: गोयरंग्ग गर्छमुणी; चरे मंदमऽणुविग्गो, अवरिकत्तेण चेयसा ॥ २ ॥ पुर जुग मायाए; पेहमाणो महिंचरे; वद्यतो वीय हरियाई, पाणे य दग महियं ॥ ३ ॥ उवायं विसमं खाणु, विद्यलं परिव ar: संकमेणं नगन्नेधा, विद्यमाणो परकमे ॥ ४ ॥ पवन ते वसे " , परकलंते व संजए, हिंसेच पाण नूयाई, तरसे अव थावरे ॥ ९ ॥ तम्हा ते नगच्छेद्या संजए सुसमाहिए; सअन्ने मग्गेण, जयमेव परक्कमे ॥ ६ ॥ इंगालं बारियं रासिं तुसरासिं च गोमयं ससररकेहिं पाएहिं, संजन तं नइकमे, ॥ ७ ॥ नच वासे वासंते महियाए व पतिए; महावाए व वायंते, तिरित्रं संपाइमेसु वा ॥ ८ ॥ नचरेऊ वेस सामंते, बंजचेर वसाऽणुए; बंजयारिस्स दंतस्स, होद्या तब विसोत्तिया ॥ ए ॥ श्रायणे चरंतस्स; संसग्गीए रिक होद्य वया पीला, सामन्नमि य संस ॥ १० ॥ तम्हा एवं विया - पित्ता, दोसं डुग्गर वढ्ढणं वद्यए वेस सामते, मुणी एगंत Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 111111T (१४) मस्सिए ॥ ११ ॥ साणं सूश्यं गाविं, दितं गोणं हयं गय; संमिनं कलहं जुधं, सुरज परिवजाए ॥ १२॥ अणुन्नए नावणए, अप्प हि आणाजले; इंदिया जहा नागं, दमश्त्ता मुणीचरे ॥ १३ ॥ दवदवस्स नगछेद्या, नासमाणो य गोयरे; हसंतो नानिग द्या, कुलं &च्चाऽवयं सया ॥ १३ ॥ आलोयं थिगलं दारं, संधिं दगलवणाणिय; चरंतो नविनिझाए, संकजाणं वि वद्यए ॥ १५ ॥ रन्नो गिहवणं च, रहस्साररिकयाणिय; संकिखेसकरं जाणं, सुरज परिवद्यए ॥१६॥ पमिकुठं कुलं नपविसे, मामग्गं परिवद्यए, अचियत्तं कुलं नपविसे, चिय तं पविसे कुलं । ॥ १७ ॥ साणी पावार पिहियं, अप्पणा नाव पंगुरे, कवाम नोपणो विद्या, जग्गहं से अजाश्या ॥ १० ॥ गोयरग्ग पवि छोय, वच्च मुत्तंन धारए; उगासं फासुयं नच्चा, अणुन्न विय वोसिरे ॥ १५ ॥ नीयं वारं तमसं, कोगं परिवद्यए; अचख्खू विसउ जल, पाणा उप्पमिलेहगा ॥ २० ॥ जयपुप्फा बीयाई विप्पन्नाश् कोठए; अहुणोवलित्तं ना, दतुणं परिवधए ॥२१॥ एखगं दारगं साणं, वचगं वाऽविकुठए; उलंघिया नपविसे, विनहित्ताण व सजए ॥ २२॥ असंसत्तं पलोएडा, नाश्मुराऽवलोयए; उप्फुह्यं नविनिशाए, नियट्टिय अयंपिरो ॥ २३ ॥ अश्लूमिं नगछेद्या, गोयरग्ग गर्ड मुणी; कुलस्स नूमि जाणित्ता, मिय जूमि परक्कमे ॥२४॥ तव पमिलेहेद्या, नूमिनागं वियरकणो; सिणाणस्सय वच्चस्स संलोगं परिवजए ॥ २५॥ दग मट्टिय आयाणे, बीयाणि हरियाणियः परिवशंतो चिशा, सविंदिय समाहिए; ॥ २६ ॥ तब से चिठमाणस्स, आहारे Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५) पाण जोय; कप्पियं न विझा, परिगाहिश कप्पियं ॥ २ ॥ य हारती सिया त, परिसामिझ जोयणं; दिंतिय परियारके, न मेकप तारिसं ॥ २८ ॥ समद्दमाणी पाणाणि, बीयाणिह रियाणिय; संजमं करिं नच्चा, तारिसं परिवद्यए ॥ २९ ॥ साहद्दु निरिक वित्ताएं, सचित्तं घट्टियाणिय; तहेव समऽछाए; उदगं संपपोलिया ॥ ३० ॥ श्रगाहइत्ता चलत्ता, आहार पाण जोयं दित्तियं परियारके, नमे कप्पर तारिसं ॥ ३१ ॥ पुरेकम्मे हो, दविए जायषेण वा दितियं परियारके, न मे कप्पर तारिसं ॥ ३२ ॥ एवं उदउले ससद्धेि, ससररके मट्टियाउसे; हरियाले हिंगुलुए, मणोसिला अंजणे लोणे ॥ ३३ ॥ गेरु वन्निय सेढिय, सोर हिय पिठ कुकुसकए य, उक्कमsसंसठे, ससट्टे चेव बोधवे ॥३४॥ संस होए, दचिए जाय वा दिशमाणं नश्लेशा, पचाकम्मं जहिं नवे ॥ ३५ ॥ संस , दविए जाय वा, दिझमाणं परिलेशा, जंतळे सयिं वे ॥ २६ ॥ दोन्हतु झुंज माणाएं, एगोतळ निमंत; दिशमानविद्या, छंद से मिलेहए || ३७ ॥ दोन्हंतु मुंजमाणाएं, दोवित निमंत; दिद्यमाणंपमिद्या, जं तले सहियं नवे, ॥ ३८ ॥ गुत्रिणी उवन्न, विविहं पाए जोयणं; मुंद्यमाणं विवशेशा, नुत्तसे पहिए ॥ ३९ ॥ सीयाय समाए, गुणि कालमासीणी; उहिया वा निसीएझा, निसंना वा पुणो ॥ ४० ॥ तं जवे जत्त पाएं तु, संजयाण कप्पियं दितिपं परियाइरके, न मे कप्पइ तारिसं ॥ ४१ ॥ थागंपिझेमाणीय, दारगं वा कुमारियं; तंनिखिवितु रोयंतं, आहारेपाण Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६) जोयणं ॥ ४२ ॥ तं नवे जत्त पाणं तु, संजयाण अकप्पियं; दितियं पमियाश्के, न मे कप्पश् तारिसं ॥ ४३ ॥ ज नवे लत्त पाणं तु, कप्पाऽकप्पंमि संकियंदितियं पमियाश्के, न मे कप्पश् तारिसं ॥ ॥ दगवारेण पिहियं, निसाए पीढएण वा; लोढेएवाऽविलेवण, सिलेसेण वि केण ॥ ४५ ॥ तंच उत्रिंदिउ दिका, समणाए एव दावए; दितिय पमियाश्रके, न मे कप्पड़ तारिसं ॥ ४६॥ असणं पाणगं वावि, खाश्मं साश्मं तहा; जं जाणेद्य सुणेशावा, दाणा पगळं इमं ॥४७॥ तं नवे जत्त पाणं तु; संजयाणं अकप्पियं; दितियं पमियाश्के, न मे कप्प श्तारिसं ॥ ४० ॥ असणं पाणगं वावि, खाश्मं साइमं तहा; जंजाणेद्य सुणेधावा पुनका पग; इमं ॥ ४ए ॥ तं नवे लत्त पाणं तु, सजयाणं अकप्पियं; दितियं पमियाइके, न मे कप्पर तारिसं ॥ ५० ॥ असणं पाणगं वावि, खाश्मं सामं तहा; जं जाणेद्य सुणेद्यावा, वणिमहा पगमं मं ॥५१॥ तंज वे जत्त पाणंतु, संजयाण अकप्पियं; दितियं पमिया श्के, न मे कप्पर तारिसं ॥ ५५ ॥ असणं पाणगं वावि, खाश्मं सामं तहा; जं जाणेद्य सुणेद्यावा; समणमा पगमं श्मं ॥ ५३॥ तं नवे नत्त पाणंतु; संजयाण अकप्पियं, दितियं पडियाश्के, न मे कप्पश् तारिसं ॥५४॥ उद्देसियं कियगमं; पूश्कम्मं च श्राहम, अशोयर पामिचं; मीसजायंवि विद्यए ॥ ५५ ॥ जग्गम सेय पूवेद्या; कस्सम केणवा कम; सोच्चा निस्संकियं सुध पनिगाहिद्य संजए ॥५६॥ असणं पाणगं वावि; खाश्मं साइमं तहा; पुप्फेसु होछ । उम्मीस: वीएसु हरिएसु वा ॥ ५७ ॥ तं नवे लत्त पाणंतु; Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संजयाणं अकप्पिय; दितियं पमियाश्के; नमे कप्पा तारिसं ॥ ५० ॥ असणं पाणगं वावि; खाश्मं साश्मं तहा; नंदगंमिहोध निखित्तं, उत्तिंग पणगे सुवा ॥५॥ तं नवे जत्त पाणंतु, संजयाणं अकप्पियं; दितियं पमियाश्के, न मे कप्पर तारिस ॥६॥असणं पाणगं वावि,खाइमं साश्मं तहा; अगणिमि होद्यनि खित्तं, तं च संघट्टिया दए ॥ ६१ ॥ तं नवे जत्त पाणंतु, संजयाणं अकप्पियं; दितियं पमियाश्रके न मे कप्प३ तारिसं ॥६॥ एवंउस्स किया उस किया, उद्यालियापशालिया; निवावियाजसिंचिया, निस्सिंचया, उवत्तिया उवारियादए ॥६३ ॥ तं नवे जत्त पाणंतु, संजयाणं अकप्पियं, दितियं पमियाश्के, न मे कप्पश्तारिसं ॥६॥ हुऊ कळं सिलं वावि, इट्टालं वावि एगयाबवियं सकमंऽखाए, तं च होऊ चलाचलं ॥६५॥ नतेण निख्खू गजेद्या, दीनो तक असंजमो; गनीरं फुसिरं चेव, सव्विं दिय समाहिए ॥६६॥ निस्सेणिं फलगंपीठं, उस्स वित्ताण मा. रहे; मंच कीलंच पासाय, समणकाएव दावए ॥ ६७ ॥ पुरुहमाणी पवमेधा, हवं पायं च लुसए; पुढवी जीवे विहिंसेझाजे य तं निस्सिया जगा ॥ ६ ॥ एयारिसे महादोसे जाणिक, ण महेसिणों; तम्हामालोहनं निरकं, न पनि गिन्हंति संजया॥ ६ए ॥ कंदं मूलं फलं वाबि, आम बिनं व संनिरं; तुंबागं सिंग वेरंच, आमगं परिवजए ॥ ७० ॥ तहेव सत्तु चुन्नाइ, कोलचुन्नाई आवणे, संकुलिं फाणियं पुयं, अन्नं वावि तहा विहं ॥७१॥ विक्कायमाणं पसदं, रएण परिफासियं; दितियं पमियाश्रके, न मे कप्पश्तारिसं॥७२॥ बहु अध्यिं पुग्गलं, अणमिसवा दश०२ Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) बहु कंट्टयं; अचियं तिंऽयं बिलं, उखु खं व संबिलं ॥ ७३ ॥ अप्पे सिया नोयणजाए,बहुउशिय धम्मिए; दितियं पमिश्यारके, न मे कप्पश् तारिसं ॥ १४ ॥ तहेवुच्चावयं पाणं; अवा वार धोयणं; संसेश्मं चाउलोदगं; अहुणा धोयं विवशए ॥ ७ ॥ जंजाणेश चिरा धोयं; मइए दंसणेण वा; परिपुचिऊण सुच्चावा; जं च निस्सकियं नवे ॥ ७६ ॥ अजीवं परिणयं नच्चा, पमिगाहिश संजए; अह संकिए नवेद्या; आसाश्त्ताण रोवए ॥ १७॥ श्रोवमासायणपए,हत्वगंमि दलाहि मे; मा मे अचंविलं पूर्व, नालं तिन्हं विणित्तए॥७॥तं च अचंबिलं पूइं,नालं तिन्हं विणित्तए; दितियं पमियाइकेन मे कप्प३ तारिसं ॥७॥ तं च दुश अकामेणं; विमणेण पमिनियं; तं अप्पणा नपिवे; नोवि अन्नस्स दावए ॥ ७० ॥ एगंतमवक्कमित्ता, अचित्तं पमिलेहिया; जयं परिठविशा, परिप्प पमिक्कमे ॥ १॥ सियाय गोयरग्गगठ, श्लेशा परिलोत्तुयं; कोगं नित्तिमूलंवा, पमिले हित्ताण फासुयं ॥२॥ अणन्नवितु मेहावी, पमिचिन्नंमि संवुझे; हबगं संपमशित्ता तब जूशिश संजए ॥ ३ ॥ तब से मुंद्यमाणस्स, अध्यिं कंटउ सिया, तण कठसक्करं वावि, अन्नं वावि तहाविहं ॥४॥ तं उखि वित्तु ननिरकेवे, आसएण नटुए; हवेण तं गहेकणं, एगंतमवक्कमे ॥ ५ ॥ एगंतमवक्कमित्ता, अचित्तं पमिलेहिया; जयं परिवविद्या, परिप्प पमिक्कमे ॥ ६॥ सियायनिरकु श्वेद्या, सिद्यमागम्म नोत्तुयं; सपिंक पायमागम्म, उमुयं पमिलेहया ॥ ७ ॥ विणएणं पविसित्ता, सगासे गुरुणोमुणी; इरियावहीयमायाय, आगज्य पमिक्कमे ॥ ॥ आलोश्त्ताण Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नीसेस, अश्यारं च जहक्कम; गमणाऽगमणे चेव, जत्त पाणेव संजए ॥ ए॥ उपन्नो मणुविग्गो, अव रिकत्तण चेयसा, आलोए गुरु सगासे, जं जहा गहियं नवे ॥ ए० ॥ नसम्ममालोश्यंदुद्या, पुर्विपञ्चा व जं कर्म, पुणो पमिक्कमे तस्स, वोसो चिंत्तए श्मं ॥ १ ॥ अहोजिणेहिं असावा; वीति साहुण देसिया; मोरक साहण हेजस्स; साहु देहस्स धारणाः ॥ ए॥ नमुक्कारेण पारित्ता. करित्ता जिण संथवं; सद्यायं पवित्ताणंवीसमेध खणं मुणीः॥ ए३ ॥ वीसमंतो इमं चिंत्ते, हियमला, नमन्छि; ज मे अणुग्गहं कुजा, साहु होछामि तारिज ॥ए॥ ॥ एए॥ साहवोतो चियत्तेणं, निमतिय जहक्कमं; जश् तबकेश् इविद्या, तेहिं सम्धिं तु मुंजए ॥ ए६ ॥ अह कोश् न इविद्या, तन लुजेद्य एगल;आलोए जायणे साहु,जयं अपरिसामिय॥ए॥ (काव्यम्.) तीतगं च कडुयं च कसायं, अंबिलं च मडुरं च लवणं वा; एय लछमन्नपउत्तं, मदु घयं व मुंजेक्ष संजए ॥ एG ॥ (अनुष्टुब्वृत्तम्.) अरसं विरसं वावि, सुश्यं वा असुश्यं; नवं वा जश् वासुकं, मंथु कुमास नोयणं ॥ एए॥ उपन्नं नाही विद्या, अप्पं वा बहु फासुयं; मुहा लहं मुहाजीवी, मुंघेका दोस वधियं ॥ १० ॥ मुलहा उ मुहादाइ, मुहा जीवी वि उबहा; मुहादाइ मुहाजीवी, दोविगति सुग्गइं तिबेमि ॥ १०१॥ इत्ति पिंझे सणाए पढमो उद्देसो समत्तं ॥ ५॥१॥ Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०) पमिग्गहं संलिहित्ताणं, लेवमायाए संजए; सुगंधं वा, सुगंधं वा, सबंठेके न ढुए ॥ १॥ सिझा निसीहियाए, समा. वन्नोय गोयरे; आयावश्का लोच्चाणं, जर तेण न संथरे ॥२॥ तउ कारण समुप्पन्ने, लत्त पाणं गवेसए; विहिणा पुवउत्तेणं श्मेणं उत्तरेणय ॥३॥ कालेण निकमे लिख्कु, कालेण य पमिक्कमे अकालंच विबधित्ता काले काल समायरे ॥४॥ अकाले चरिसिनिख्खु, कालं न पमिलेहिसि; अप्पाणंच किला. मेसि, संनिवेसंच गरहसि ॥ ५॥ सश्काले चरेनिख्खु, कुशा पुरिसकारियं अलानोत्ति नसीएला; तवोत्ति अहियासह ॥६॥ तहावुच्चावया पाणा, लत्ताए समागया; तं उफुयं नगमेशा जय मेव परक्कमे ॥ ७ ॥ गोयरग्ग पवितोय, न निसीएस कन्नई, कहं च न पबंधेशा, चिन्त्तिाणव सजए॥॥॥अग्गलं फलिहं दारं, कवा वावि संजए, अवलंबिया न चिठेशा गोयरग्ग गन मुणी ॥ ए॥ समणं माहणं वावि, किविणं वा वणीमगं; उवसंकमंतं नत्ता, पाणाएव संजए ॥ १० ॥ तं अश्कमितु न पविसे; नचिके चख्कूगोयरे; एगंतमवक्कमित्ता, तब चिच्चि संजए ॥ ११॥ वणीमग्गस्स वा तस्स दायगस्सुनयस वा; अप्पत्तियं सिया हुशा, बहुत्तं पवयणस्स वा ॥ १२ ॥ पमिसेहिएव दिन्नेवा, त तम्मि नियत्तिए, जवसंकमिश नत्तहा, पाणा एव संजा ए ॥१३॥ चप्पलं पनमं वावि, कुमुयंवा मगदंतियं, अन्नं वा पुप्फ सचित्तं, तं च संलुचिया दए ॥१४॥ तं नवे लत्त पाणुंतु, संजयाणं अकप्पियं, दितियं पमियाइरके, न मे कप्प३ तारिसं ॥ १५ ॥ उप्पलं पमं वावि, कुमुयंवा Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 22 ) मगदंतियं, अन्नंवा पुष्फ सचित्तं तं च समद्दिया दए ॥ १६ ॥ तं नवे जत्त पाणतु, संजयाणं कप्यियं दिंतियं परियाइरके, न मे कप्पर तारि ॥ १७ ॥ सालुयं वा बिरालियं, कुमुयं उप्प लन्नालियं, मुगालियं सासव नालियं, उखं निवुरुं ॥ १८ ॥ तरुणगं वा पवालं, रुरकस्स तणगस्स वा अन्नस्तवावि हरि यस्स, आमगं परिवद्यए । १९ ॥ तरुणियं वा निवारिं, आमियं चचियं सयं; दिंतियं परियाइरके, नमे कप्पर तारिसं ॥ २० ॥ तहा कोल सिन्नं, वेलुयं कासव नालियं; तिलपप्परुगं निमं, आमगं परिवद्यए ॥ २१ ॥ तदेव चाललं पिठं, वियमंवा तत्तनिवुमं; तिल पिठ पूइपिन्नागं; श्रमगं परिवार ॥ २२ ॥ कवि माडलिंगंच, मूलगं मूल गत्तियं, आमं असल परिणयं, मसावि न पच ॥ २३ ॥ तदेव फल मंथुणि, बीयमंश्रूणि जालिया; विहेलगं पियालंच, यामगं परिवझए ॥ २४ ॥ समुयाएं चरे निख्खू, कुलं उच्चावयं सया; नीयं कुल मइकमं, उसढं जानिधार ॥ २५ ॥ दीणो वित्तिमेसेद्या, न विसिएद्य पंकिए; अमुवि जोयसंमि, माइने एसारए ॥ २६ ॥ वहुपरघरे ि विविहं खाइमं साइमं; न तब पंकि कुप्पे, हा दिव परो नवा || २७ ॥ सय सयण वचं वा, जत्तपाणं च संजए; अ दिंतस्स न कुप्पेद्या, पच्चरके वि श्रदीस ॥ २८ ॥ त्रियं पुरिसं वावि, महरं वा महलगं; वंदमाणं न जाएद्या, नोयं फरुसं वए ||२|| जे नवदेन से कुप्पे, वंदिन नसमुक्कसे; एवंमन्ने समाएस्स सामन्नमणु चि ॥ ३० ॥ सिया एगइन लघू लोनें विधिगृह मामेयं दाइयं संतं, दहु सयमाय ॥३१॥ अत्ता गुरुन Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 22 ) लुको, बहु पावं पकुव; उत्तोसन य सो होइ, निवाणं च न गन् ॥ ३२ ॥ सिया एगइन लऊं, विविहं पाण जोय, जगं जद्दगं जोच्चा, विवन्नं विरसमाहरे ||३३|| जाणंतु ता इमे समा, यी अयं मुणी, संतुको सेवइ पंतं, लुहवित्ति सुतोस ॥ ३४ ॥ पूयट्ठा जसो कामी, माण समाण कामए, बहु पसवइ पावं, माया सच कुबइ ॥ ३५ ॥ सुरं वा मेरगं वावि, अन्नं वा मद्यगं रसं, ससरकं न पिवे निख्खु, जसं साररक मप्पो ॥ ३६ ॥ पियए एगइन तेलो, नमे कोइ वियाई, तस्स पसह दोसाई, नियमिंच सुणेह मे ॥ ३७ ॥ वढ्ढ सोंढिया तस्स, माया मोसंच निख्खुणो, अयसोय अनिवाणं, सययं च साहुया ॥३८॥ निच्चुविग्गो जहा तेणो, अत्तकम्मेहिं डुम्मइ, तारिसोमरणं तेवि, नाराह संवरं ॥ ३९ ॥ श्रयरिए नाराहे, समणे वि तारिसो, गिवाविणं गरदंति, जेए जाएंति तारिसं ॥ ४० ॥ एवंतु गुप्पेही, गुणाणं च विवऊन तारिसो मरणतेवि, नारादेश संवरं ॥ ४१ ॥ तवकुव्वइ मेहावी, पणीयं वद्यए रसं, मऊष्पमाय विरज, तवस्सी इ उक्कसो ॥४२॥ तस्स पसह कलाएं, छाग साहू पूयं विलंब संजुत्तं, कित्तइसं सुणेहमेः ॥ ४३ ॥ एवं तु गुप्पेही, गुणा च विवऊर्ज, तारिसी मरणं तेवि आराहे संवरं ॥ ४४ ॥ यरिए आराहे समणेवि तारिसो गिबाविण पूयंति जेण जाणंति तारिसं ॥ ४५ ॥ तव तेणे वय तेणे, रुव तेणेय जेनरे; आयार जाव तेणेय, कुव्व देव किविसं ॥ ४६ ॥ लयवि देवत्तं ववन्नो देव किव्विसे, तहवि सेन याणा, कि किच्चा इमं फलं ॥ ६७ ॥ तत्तोवि से चत्ताणं, Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२३) वनइ एल मूयर्ग; नरग तिरिरकजोणिवा, बोही जन्नसु मुसहा ॥४०॥ एयंच दोसदधुणं, नाय पुत्तेण नासियं; अणु मायं पि मेहावी, माया मोसं विवधए । ४ए। . (काव्यम्.) सिरिकऊण निरकेसण सोहिं. संजयाणं घुघाण सगासे; तळ जिस्कू सुप्पिणि हिंदिए, तिव्व बध गुणवं विहरेद्यासित्तिबेमि ॥ ५० ॥ इति पिंमेसणाए वीउनदेसो मिसणाए पंचमंड घयणं समत्तं ॥५॥ नाण दसण संपन्नं, संजमेण तवे रयं; गणिमागम्म संपनं, उसाणंमि समोसढं ॥ १ ॥रायाणो राय मच्चाय; माहणा अञ्च खत्तिया; पुखंति निहुय अप्पाणो. कहने आयार गोयरो ॥॥ तेसिं सो निहुल दंतो, सब नुय सुहावहो; सिरकएसु समा उत्तो, आश्कर वियरकणो. ॥३॥ हंदि धम्मच कामाणं, निग्गंडाणं सुणेह मे; आयार गोयरं जीमं, सयलं पुरहिन्यि ॥४॥ नन्नछ एरिसंवुत्तं, जं लोए परमञ्च्चरं; विउलं आण लाइस, नजूयं ननविस्स ॥ ५॥ स ख्खुमुग वियत्ताणं, वाहियाणं च जे गुणा; अखंग फुमिया कायवा, तं सुणेह जहा तहा ॥ ६॥ दस अच्य हाणा, जाई बालो वरद्य तब अनयरे ठाणे, निग्गंथा ता नस्सइ ॥ ७॥ वयनकंकायकं, अकप्पो गिहिलायणं; पलियंक निसिधा य, सिणाणंसोल वद्य. एणं ॥ ॥ तचिमं पढमंठाणं, महावीरेण देसियं; अहिंसा निजणा दिन, सब जूएसुसंजमो. ॥ए॥ जावंति लोए पाणा, तस्सा Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४) अव पावरा; ते जाणमजाणं वा; नहणे नोविघायए ॥ १० ॥ सव्वेजीवावि श्चंति; जीवी नमरिधि; तम्हा पाणवहं घोरं निग्गंथा वद्ययंति णं ॥ ११॥ अप्पएका परचा वा; कोहावा जश्वा जया; हिंसगंन मुसं बुया, नोवि अन्नं वयावएः ॥ १२॥ मुसावाज य लोगंमि, सव्वसाहूहिंगर हिर्ज;अविस्सा सोय जुयाणं, तम्हा मोसंविवद्यए ॥१३॥ चित्तमतमचित्तवा, अप्पंवा जश्वा वहूं, दंत सोहण मित्तंपि, जग्गहंसे अजाश्या ॥१४॥ते अप्पणा नगिन्हंति, नोविगिन्हावए परं; अन्नंवा गिन्हमाणंपि, नाणु जाणंति संजया ॥ १५॥ अवनचरियं घोरं, पमायं मुरही यिं; नायरंति मुणी लोए, जेयायण विवधए ॥ १६॥ मूलमे यमहमस्स, महादोस समुस्सय; तम्हा मेहुण संसग्गि, निग्गंथा वद्ययंति णं ॥ १७ ॥ बिममुले श्मं लोणं, तिल, संपिव फाणियं; नते सन्निहि मिचंति, नाय पुत्त वन रया ॥ १०॥ लोजस्सेसणुफासे,मन्नेअन्नयरामविजे सिया संनिहि कामे, गिही पव्व ए नसे॥१॥ जंपि बळ व पायं वा; कंवलं पायपुसणं; तंपि संजम लद्या, धारंति परिहरंतिय ॥२०॥ न सो परिग्गहो वुत्तो नायपुत्तेण ताणा; मुछा परिग्गहोवुत्तो, वुत्तं महेसिणा ॥२१॥ सबबुवि हिंणा बुझा, संररकण परिग्गहे; अविअप्पणोऽवि देहमि, नायरंति ममाश्यं ॥२२॥ अहोनिच्चं तवोकम्म, सब बुजेहिं बनियं; जा य खद्या समावित्ती, एगलत्तं च नोयणं ॥ ॥ २३ ॥ संतिमे सुहुमा पाणा. तस्सा अव थावरा; जाई राउ अपासंतो, कहमेसणियं चरे ॥ २४ ॥ उद उद्यं बीय ससत्तं; पाणा निवमिया महिं, दियाताई विवधिद्या; राज तब कहं चरे Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २५ ) ॥ २५ ॥ एयं च दोस दहुएं, नायपुत्तेण जासियं; सवाहारं ननुद्यंति, निग्गंथा राइनोयां ॥ २६ ॥ पुढविकायं नहिंसंति, मसा वयसा कायसाः तिविदेणं करण जोएं, संजया सुसमाहिया ॥ २७ ॥ पुढविकायवि हींसंतो, हिंस उ तयस्सिए; तस्सेय विविदे पाणे, चख्खुसे य चख्खसे ॥ २८ ॥ तम्हा एवं विया - वित्ता, दोसं डुग्गर वढणं, पुढविकायं समारंजं, जावजीवाए वझए ||२|| कायं नहिंसंति, मासा वयसाकायसाः तिविहे करण जोणं, संजया सुसमाहिया ॥ ३० ॥ कार्यवि हिंसंतो, हिंसइ उ तयस्सिए; तस्सेय विविहे पाणे, चख्खुसेय, खुसे || ३१ ॥ तम्हा एयं वियाणित्ता, दोसं दुग्गड़ वढणं कार्य समारंनं, जावजीवाए वद्यए ॥ ३२ ॥ जायतेयं नचंति, पावगं जलंइत्तए; तिरकमऽन्नयरंस, सबउवि रासयं ॥ ३३ ॥ पाइ परिणं वावि, उ अणुदिसामवि; हे दाहि वावि, दहे उत्तर विय ॥ ३४ ॥ नूयाण मेसमाघान, ववाहो नसंसन; तंपश्व पयावा, संजयाकिंचि नारंजे ॥ ३५ ॥ तम्हाएयं वियाणित्ता, दोसं दुग्गड़ वढ्ढणं; अगणिकायं समारंजं, जावजीवाए वद्यए ॥ ३६ ॥ अनिलस्स समारंजं, बुद्धा मन्नंति तारिसं; सावऊं वहुलं चेयं, नेयं ताइहिं सेवियं ॥ ३७ ॥ तालि - ट्टे पत्ते, साहा विदुयऐण वा नते वीश्मीचंति, वे यावे वापरं ॥ ३८ ॥ जंपिवळं व पायं वा, कंवलं पायपुचणं, न ते वा मुरंति, जयं परिहरतिय ॥ ३ए ॥ तम्हा एयं वियावित्ता, दोसं डुग्गर वढणं; वाउकाय समारंनं, जावजीवाए वझए॥ ४० ॥ वण स्सइकार्य न हिंसंति, मणसा वयसा कायसा; Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २६ ) तिविदेश करण जोएणं, संजया सुसमाहिया ॥४१॥ वएस्स इकार्य विहिंसंतो, हिंसइड तय स्सिए; तसेय विविहे पाणे, चख्खुसे य अख्खु ॥ ४२॥ तम्हा एवं वियाणित्ता, दोसं डुग्गर वढ्ढणं, वणस्सइकार्य समारंनं, जावजीवाए वझए ||४३|| तस्स कायं नहिंसंति, मासा वयसा कायसाः तिविहेणं करण जोएण, संजया सूसमाहिया ॥ ४४ ॥ तस्कायं विहिंसंतो, हिंसइ उ तयस्सिए तस्य विविदे पाणे, चख्खु यसे ॥ ४५ ॥ तम्हा एवं वियाणित्ता, दोसं डुग्गर वढ्ढणं; तस्सकायं समारंभं, जावजीवाए वऊए ॥ ४६ ॥ जाई चत्तारि जुधाई, असणाहारमाइणि; तारंतु विवतो, संजमं श्रणुपालए ॥ ४७ ॥ पिंक सिद्यं च व च च पायमेवयं; अकप्पीयं न द्या, परिगाहिश कप्पियं ॥ ४० ॥ जे नियागं ममायं ति, की मुद्देसिहरु; वहते समजाति, यत्तं महेसिणाः ॥ ४५ ॥ तम्हा सण पाणाई. की यमुद्दे सियाह वयंति च्यि मप्पणो, निग्गंथा धम्म जीविणो ॥ ५० ॥ कंसेसू कंस पाएसु, कुंरुमोसु वा पुणो; जंती असण पाणाई, आयार परिजस्स ॥ ५१ ॥ सीदगं समारंजे, मत्तधोवण कुणे; जाइछन्नंति नूयाई, दिघो त संमो ॥ २२ ॥ पञ्चा कम्मं पुरेकम्मं, सिया तत्र न कप्पर; एयम न जुऊंति, निग्गंथा गिहि जायां ॥ ५३ ॥ आसंदी पलियकेसु, मंच मासालएसु वा अणयारिय मझाएं, सतु सरंतु वा || ४ || नासंदी पलियंकेसु, न निसिझाए न पीढए; निग्गंथापमिलेहाए, बुद्धवुत्तम हिगा || १५ || गंजीरं विजया एए, पाणा डुप मिलेगा; आसंदी पलियं केयं, एयमऽहं विवधिया ||२६|| Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२७) गोयरग्ग पविन्स्स, निसेझा जस्स कप्पड़, मेरिस मऽणायारं, आवशश् अबोहियं ॥ ५७ ॥ विवत्ती बंजचेरस्स, पाणाणं च वहेवहो, वणीमग्ग पमिघाउ, पमि कोहो आगारिणं ॥ ५ ॥ अगुत्ती बंजचेरस्स, इविनवावी संकणं, कुसीलं वढ्ढणं हाएं, पुरउ परिवाए ॥ एए॥ तिम्हमऽन्नयरागस्स, निसेका जस्स कप्पर, जराए अनिनुयस्स, वाहियस्स तवस्सिणो ॥ ६ ॥ वाहिउँ वा अरोगी वा, सिणाणं जो न पचए, वुक्कतो होश आयारो, जढो हव संजमो ॥ ६१ ॥ संतिमे सुदुमा पाणा, घसासु निलगासूय, जे य निख्खु सिणायंति, वियमेणू प्पलावए ॥ ६ ॥ तम्हा ते न सिणायंति, सीएण नसिणेण वा; जावजीव वयं घोरं, असिणाणं महिगिा . ॥ ६३ ॥ सिणाणं अवा ककं, लोई पनमगाणिय; गायसुवट्टणाए, नायरंति कयाइवि ॥६५॥ निगणस्स वाविमुंमरस, दीह रोम नहंसिणो मे हुणा जवसंतस्स, किंविनूसाए कारियं ॥ ६५ ॥ विनूसा वत्तियं निख्खु, कम्मं बंधश् चिक्कणं; संसार सायरे घोरे, जेणं पस श्रुत्तरे ॥ ६६ ॥ विजूसा वत्तियं चेयं, बुझा मन्नंति तारिस; सावधंबहुलं चेयं, नेयं ताहिं सेवीयं ॥ ६७ ॥ (काव्यम्.) खवंति अप्पाण ममोह दंसितो, तवेरया संजम अशवे गुणो, धुणांति पावाइं, पूरे कमाई, नवाई पावाइं नते करेति.॥६॥ स नवसंता अममा अकिंचणा, सविज्ञ विशाणुगया जसंसिणो जनप्पसन्ने विमलेव चंदिमा, सिधि बिमाणाई उति ताणो त्तिवेमि ॥ ६ए ॥ इति धम्मचकामऽयणं सम्मत्तं ॥ ७० ॥ Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०) चउन्हें खलु नासाणं, परिसंखाय पन्नावं; दोन्हं तु विणयं शिरके, दो ननासेश सबसो ॥ १॥ जा य सच्चा अवत्तवा, सच्चामोसा य जामोसा; जाय बुधेहिं नान्ना, न तं नासिश पन्नवं ॥२॥ असच्चं मोसं सच्चंच, अणवसमकक्कसं; समुप्पेह मसंदिळं, गिरंनासेश पन्नवं ॥३॥ एयंच अज्मन्नंवा; जंतु नामे सासयं; स नासं सच्चमोसंपि, तंपिधीरो विवशए॥४॥ वितहंपि तहा मुत्तिं, जंगिरं नासए नरो; तम्हा सो पुछो पावेएं; किंपुणजो मुसंवए ॥ ५ ॥ तम्हा गन्हा मो वखामो अमुगं वाणि नविस्स; अहं वाणंकरि स्सामि, एसो वा एं करिस्सा ॥६॥ एवमाइन जा नासा, एस कालंमि संकिया; संपयाश्यमच्वा, तं पि धीरो विवद्यए ॥ ७ ॥ अश्यंमि य कालंमि, पच्च पन्नमणागए; जं महं तु नजाणेशा, एमवेयंति नोवए ॥७॥ अश्यं मिय कालंमि, पञ्चुप्पन्नमणागए; जल संका नवे तंतु, एव मेयंति नोवए ॥ ए॥ अश्यं मिय कालंमि, पच्चुप्पन्न मणागए; निस्संकियं नवे जंतु, एवमेयंति निदिसे ॥ १०॥ तहेव फरसा नासा, गुरु तुन वघाणी; सच्चाऽविसा नवत्तवा, जज पावस्स आग: ॥११॥ तहेव काणंकाणेत्ति, पंमगं पंगे त्तिगा; वाहियंवाऽविरोगेत्ति, तेणंचोरेत्ति नोवए ॥ १२॥ ए ए एऽ नेण अणं; परोजेणुवहम्म आयार नाव दोसन्न, न तं जासेद्य पन्नवं ॥१३॥ तहेव होले गोलेत्ति, साण वा वसुलेतिय; दमए उहए वावि, नेवं नासेक पन्नवं ॥ १४ ॥ अकिए पकिए वावि, अम्मो मानसिउत्तियं, पिसिए नायणिकत्ति, धूए नतुणिय त्तिय ॥१५॥हले हलत्ति अन्नत्ति, नट्टे सामिणि गोमि Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( হব) ;ि होले गोले वसुलेति, इत्रियं नेवमालवे ॥ १६ ॥ नामधिबुया, इली गुते वा पुणो; जहारिहम जिगिद्यं, आलवेद्य विधवा ॥ १७ ॥ ए पाए वावि, बप्पो चुल्ल पिति यः मानला जाणेति, पुतेतुलियत्तियं ॥ १८ ॥ हेहोहले ति अन्नेति, जट्टे सामिय गोमिय; होले गोले वसुले ति, पुरिसं नेव मालवे ॥ १७ ॥ नाम धिण बुया, पुरिस गुते वा पुणो; जहा रिहमनिगिश, आलवे लवेजवा ॥ २० ॥ पंचिदिया पाणाएं, एस बी य पुमं; जावणं नविजा पीका, ताव जाइति वे ॥ २१ ॥ तदेव माणुस पसु, परिकं वावि सरीसिवं; शुले पमेयले वधे, पाय मेतिय नोवए ॥ २२ ॥ परिवुद्धेति बुया; बूया जव चिएतियं; संजाए पीणीएवावि, महाकाएति, आलवे ॥ २३ ॥ तदेव गाउ पुझाउ, दम्मा गोरहगतिय; वा हिमा रहजोगति, नेवं जासेऊ पन्नवं ॥ २४ ॥ जुवं गवेति बुया, घेणुं रस दयतियं; रहस्से महलए वावि, वए संवह पितिय ॥ २५ ॥ तदेव गंतु मुझाएं, पत्रयाणि वाणि य; रुखा महल पेहाए, नेवं जासेऊ पन्नवं ॥ २६ ॥ अलं पासाय खंजाणं, तोरणाणि गिहाणि यः फलिहंग्गण नावाएं, अलं उदगदोषिणं ॥ २७ ॥ पीढए चंगबेरेय, नंगले मइयं सिया; जंत लगी व नाजिवा, गंमीया वा अलंसिया || १८ || आसणं सयणंजाणं, होझावा किंत्तुवस्सए, जुन वघाइणी जासं, नेवं जासेज पन्नवं ॥ २९ ॥ तदेव गंतुं मुजाणं, पद्ययाणि वाणिय; रुरका महल पेहाए, एवं जाऊ पन्नवं ॥ ३० ॥ जाइमंता इमे रुरका, दीह बडा महालयाः पयाय सालावकिमा, वए दरिसऐति य ॥ ३१ ॥ Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३०) तहा फलाई पक्काई, पाश् खद्याइं नोवए; वेलोइयाई टालाई, वेहिमाइति नोवए ॥ ३२ ॥असंथमा श्मे अंबा, बदुनिंबमिमा फला; वएछ बहु संजूया, जूयरुवेत्ति वा पुणो ॥३३॥ तहेवोसहि पक्काउ, नीलियाउ वीश्य; लाश्मा जङिमाउत्ति, पिदुखऊंति नोवए ॥ ३४ ॥ रुढा वढु संजूया, थिरा उसढाविय; गनियाज पसुयाउ, संसारा नत्ति आलवे ॥ ३५ ॥ तहेव संरकमिनच्चा, किच्चकऊंति नोवए, तेणगं वावि वजिति,सुतिमितिय आवगा ॥३६॥ संरकर्मि संस्कमिंबुया, पणियिित तेणगं; बहुसामाणि तिवाणि, आवगाणं वियागरे ॥३७ ॥तहा नळ पुन्नाज, काय तिशंति नोवए;नावाहिं तारिमाउत्ति,पाणी पिशंति नोवए ॥ ३० ॥ बहु वाहमा अगाहा, बहु सलिलु पिलोदगा; बहु वि, मो दगायावि, एवं नासेश पन्नवं ॥३५॥ तहेव सावधं जोगंपरस्साए निध्यिं, कीरमाणंति वा नच्चा; सावक्षं नलवे मुणी ॥४०॥ सुकमेत्ति सुपक्केत्ति, सुबिन्ने सुहमे ममे; सुनिहिए सुलत्ति, सावसं वशए मुणी ॥४१॥ (काव्यम्.) पयत्ति पक्केत्ति व पक्कमालवे, पयति बन्नेति व छिन्नमालवे; पयत्ति लत्तिव कम्महेयं,पाहारगाढेत्ति व गाढमालवे॥४॥ (अनुष्टुब्वृत्तम्.) सव्वुक्कसं परग्घंवा, अनलं नलिएरिस;अवकीयं मवत्तवं, अवियत्तं चेव नोवए॥४३॥सबमेयं,वश्स्सामि सबमेयंति नोवए;अणुवी यसब सवड, एवं नासेद्य पन्नवं ॥४॥ सुक्कियं वा सुविक्कीयं, अकिचं किद्यमेव वा; इमंगिहं श्मंमुच्च,पणियं नोवियागरे ॥४॥ Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३१) अप्पग्घे वा महग्घेवा, करवा विकए वाविः पणिय समुप्पन्ने अणवशं वियागरे ॥४६॥ तहेवासंजयं धीरो, आसएहिं करेहिं वा; सयं चि वया हित्ति, नेवं नासेद्य पन्नवं ॥४७॥ वहवे श्मे असाहु, लोए वुच्चंति साहुणो; नलवे असाहू साहूति, साहु साहूत्ति पालवे ॥ ॥ नाण दसण संपन्नं, संजमे य तवेरय; एवं गुणसमानत्तं, संजय साहू मालवे ॥ ए॥ देवाणं मणुयाएंच, तिरियाणंच बुग्गहे; अमुयाणं जन होउ, मा वा होउत्ति नोवए ॥ ५० ॥ वाउ उंच सी उन्हें, खेम धायं सिवंति वा; कयाणि दुज एयाणि, मा वा होउत्ति नोवए ॥५१॥ (काव्यम्.) तहेव मेहं व नहंच माणवं, नदेवदेवेत्ति गिरं वएशा; समुचिए उन्नए वा पलए, वएश वा कुछ वलाहएत्ति ॥ ५५ ॥ (अनुष्टुब्वृत्तम् ) ___ अंतलिरकेत्तिणं बुया, गुशाणु चरियंत्तिया; रिधिमंतं नरं दिस्स, रिधिमंतंति आलवे ॥ १३ ॥ (काव्यम्.) तहेव सावशाणु मोयणी गिरा, उहारिणी जाय परोवघायणी; से कोह लोह जय हास माणवा, नहासमाणोवि गिरं वएद्या ॥ ५५ ॥ सुबक्क सुधिं समुपेहिया मुणी, गिरं च बु परिवाए सया; मियं अबु अणुवीय नासए, सयाण मझे खहई पसंसणं ॥ ५५ ॥ लासाइ दोसेय गुणे य जाणिया, तीसेय मु परिवद्यए सया; बसु संजए सामिणिए सया जए, वएश बुझे हियमाणु लोमियं ॥५६॥ परिस्क लासी सुसमाहि इंदिए, Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३२) चउक्कसाया वगए अणिस्सिए; स निधुणे धुन्न मलं पुरेकर्म, आराहए लोगमिणं तहा परं तिबेमि ॥ १७ ॥ इति सुवक्कवसुधीनामंऽधयण सप्तमं सम्मत्तं ॥ ७ ॥ (अनुष्टुब्वृत्तम्.) आयार पणिहिं लधुं, जहा कायव निख्खुणो, तंने उदा हरिस्सामि, आणुपुर्वि सुणेह मे ॥ १॥ पुढवि दग अगणि मारुय, तण रुरकस्त बीयगा; तस्सा य पाणा जीवत्ति २ वुत्तं महेसिणा ॥२॥ तेसिं अचण जोएणं, निच्चं हीयवयं सया; मणसा काय वक्केणं, एवं लवर संजए ॥३॥ पुढवि निति सिलंलेलु, नेवनिंदे नसंलिहे, तिविहेण करण जोएणं, संजया सुसमाहिया ॥४॥ सुख पुढवीए न निस्सिए, ससरुरकंमि य आसणे, पमझितु निसीएशा, जाश्त्ता जस्स उग्गहं ॥ ५॥ सीउदगं नसेवेद्या, सिलावु हिमाणिय, जसिणोदगं तत फासुयं, पमिगाहिद्य संजए. ॥ ६॥ उदनयं अप्पणो कार्य, नेव पुछे नसंलिहे, समुप्पेह तहानूयं, नो णं संघट्टए मुणी ॥ ७ ॥ इंगालं अगणिं अचिं, अलायं वा सजोश्यं, न जंजेक्षा नघट्टेशा, नोणं निव्वा वए मुणी ॥ ७ ॥ तालि यंटेण पत्तेणं, साहा वियणेण वा; नवीएद्य अप्पणो कायं, बाहिरं वा वि पुग्गलं ॥ ए॥ तणरुरकं नबिंदेशा, फलंमूलं व कस्स; आमगं विविहं बीयं, मणसावि नपठए ॥ १० ॥ गहणेसु नचिया, वीएसु हरिएसु वा; उदगंमि तहा निच्चं, उत्तिंग पणगेसु वा ॥ ११ ॥ तस्से पाणे नहिंसेद्या, वाया अव कम्मुणा; उवरउ सब जूएसु Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३३) पासेश विविहं जगं ॥ १५ ॥ अच् सुहमाई पेहाए, जाइ जाणितु संजए; दया हिगारी नूएसु, आस चिक सएहिं वा ॥१३॥ कयराई अच् सुहमाई, जाई पुजेद्य संजए; माई ताई मेहावी, आश्केझ वियरकणो ॥ १४ ॥ सिणेहिं पुप्फ सुहुमं च, पाणुतिंग तहे वय; पणगं बीयं हरियंच, अंमसुहमं च अध्मं ॥१५॥ एवमेयाणि जाणित्ता, सब नावे ण संजए; अप्पमत्तो जश निच्चं, सबिंदिय समाहिए ॥ १६॥धुवंच पमिलेहेंशा; जोगसा पाय कंबलं; सेद्य मुच्चार नूमिंच, संथारं अवासण ॥१७॥ उच्चारं पासवणं, खेल सिंघाण जट्वियं, फासुयं पहिले हिद्या, परिक्षावेद्य संजए ॥ १७ ॥ पविसितु परागारं, पाणमा जोयणस्स वा; जयं चि मियं नासे, न य रूवेसु मणं करे ॥ १५॥ बहु सुणेहिं कन्नेहिं, वहु श्बीहिं पिच न य दिलं सुयं सर्व, निख्खू अरकाऊमरिहर ॥२०॥ सुई वा जश् वादिळं, नलवेजो वघाश् यं; नय केण जवाएणं, गिहि जोगं समायरे ॥१॥ निघणं रस निजुढं, लद्दगं पावगंतिवा; पुको वावि अपुछो वा, लानाऽलानं न निदिसे ॥ २२ ॥ नय नोयणंमि गियो, चरे उद्वं अयंपिरो; अफासुयं न तुंझेझा, किय मुद्देसिया हकं ॥ २३ ॥ संनिहं च नकुवेद्या, अणुमायंपि संजए; मुहाजीवी असंबुडो, हविश जग निस्सिए ॥ २४ ॥ लुहवित्तीसु संतु, अप्पिन्चे सुहरे सिया; आसुरुत्तं नगन्छेया, सुच्चाणं जिण सासणं ॥२५॥ कन्नं सोरकेहिं सद्देहिं, पेमेनानिनिवेसए; दारुणं कक्कसं फासं, काएण अहियासए ॥२६॥ ख्खुहं पिवासं उसेचं, सी उन्हें अरश् नयं; अहियासे अबहिर्ड, देहपुरकं महा फलं ॥ २७ ॥ दश०३ Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३४ ) मिश्र, पुरवाय अणुगए; आहार माझ्यं सवं, मल सावि न पच ॥ २८ ॥ तिंत अचवले, अप्प जासी मियासणे; हवेश जयरे दंते, थोवं लडु नखिंसए ॥ २९ ॥ नयबाहरं परिजवे, अत्ताएं नसमुक्कसे; सुय लाने नमजेझा, जच्चा तवस्सी बुद्धिए ॥ ३० ॥ से जाए मजाएं वा, कट्टु श्रहम्मियं पर्य; संवरे खिप्पमप्पाणं, वीश्यंतं नसमायरे ॥ ३१ ॥ णायारं परकम्म, नेव गुहे नंनिन्हवे, सुइसया वियमजावे, असंसत्ते जिईदिए ॥ ३२ ॥ मोहं वयणं कुझा, आयरियस्स महप्पणो, तं परिगिऊ वायाए, कम्मुणा उववायए ॥ ३३ ॥ श्रधुवं जीवि - यं नच्चा, सिद्धिमग्गं वियाणिया, विशियट्टिश जोगेसु आउ परिमियमप्पणो ॥ ३४ ॥ बलं श्रामं च पेहाए, सधामारोग मप्पो, खित्तं कालं च विन्नाय, तहप्पाणं निजुंजइ ॥ ३५ ॥ जरा जाव नपीमे, वाह जाव नवढ्ढ; जाव्विंदिया नहायंति, धम्मं समायरे ॥ ३६ ॥ कोहं माणंच मायंच, लोनंच पाव ढणं; वमे चतारि दोसा तो हियमप्पणो ॥ ३७ ॥ कोहो पीईपणासे माणो विषय नासतो; माया मित्ताणि नासेर, arat सव्व विणासो || ३८ || उवसमे हकोहं मामवया जिणे, मायंच शव जावेणं, लोनो संतोसन जिऐ ||३८|| ( काव्यम् . ) कोहोय माणोयग्गहिया, माया य लोजो य पवमाणा, चत्तारि एए कसिला कसाया, सिंचिंति मुलाई पुपो जवस ॥४०॥ राइ लिए विषयं परंजे, धुव सीलयं सययं नहावएझ; कुमुव अली पक्षी गुत्तो, परकमेशा तव संजमंमि ॥ ४१ ॥ Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३५) . (अनुष्टुब्वृत्तम् ) ... निइंच न बहु मन्नेद्या, सप्पहासं विवद्यए; मिहो कहाहिं नरमे, सद्यायंमि रज सया ॥४२॥ जोगं च समण धम्ममि, जुंजे अनसो धुवं; जुत्तोय समण धम्ममि अहं वह अणुत्तरं ॥ ४३ ॥ इह लोग पारत्त हियं, जेणं गन्नई सुग्गई बहु स्सुयं पङ्गुवा सिधा, पुछेद्यऽव विणिचियं ॥ ४ ॥ हवं पायं च कायंच, पणिहाय जिइंदिए; अबीण गुत्तो निसिए, सगासे गुरुणो मुणी ॥ ४५ ॥ नपरकत नपुर, नेवकिच्चाण पिछ; नयनरं समासेद्या चिठेशा गुरुणंऽत्तिए ॥ ४६॥ अपुचि नजासेद्या, नासमाणस्स अंतरा; पिलि मंसं नखाएद्या, माया मोसं विवाए ॥ ४५ ॥ अपत्तियं जेण सिया, आसु कुप्पेद्य वा परो, सव्वसो तं ननासेद्या, जासं अहिय गामिणि ॥४॥ दि मियं असंदिलं, पमिपुन्नं वियं, जियं, अयं पिर मणु विगं, जासं निसिर अत्तवं ॥ ४ए ॥ आयार पन्नति धरं दिहिवायमऽहिद्यगं, वयं विखलियं नच्चा, न तं उवहसे मुणी ॥१०॥ नरकत्तं सुमिणं जोगं, निमित्तं मंत्त लेसद्य गिहिणो तं न श्रा श्के, नूयाऽहिगरणं पयं ॥५१॥ अन्न पगलं लयणं, नएछ सयणासणं; उच्चारजूमि संपन्नं, इचि पसु विवक्षियं ॥५२॥ विवित्ताय नवे सिद्या, नारीणं नलवे कह; गिहि संथवं निकुशा, कुझा साहूहिं संथवं ॥ ३॥ जहा कुकुर पोयस्स, निच्चं कुललन नयएवं ख्कु बंजयारिस्स, श्वी विग्गह नयं निच्च कुललना नया एव ॥ ५५ ॥ चित्तनितिं न निशाए, नारिं वा सु अलंकियं जरकर पिव दणं, दिहिं पनि समाहरे ॥ ५५ ॥ हन्छ पाय पमिन्निन्नं Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३६ ) कन्नं नासवि कप्पियं; अवि वासस्यं नारि, बंजयारी विवद्य, ॥ ५६ ॥ विसा चि संसग्गी, पणियंरस जोय; नरस्सत्तगवे सिस्स, विसं ताल जहा ॥ ९७ ॥ अंगं पचंग संघाणं चारुलविय पेहियं; इवीणं तं न निझाए, कामराग विवढणं ॥ ८ ॥ विससु मन्नेसु; पेमं नाऽनिनिवेसए; णिचं तेसिं विन्नाय, परिणामं पुग्गलाण्य ॥ एए ॥ पुग्गलाणं परिणामं तेसिं नच्चा जहा तहा; विणीय तन्हा विहरे, सीइए अप्प णो ॥ ६० ॥ जाए सझाए निरकंतो, परियाय हा मुत्तमं तमेव अणुपाद्या, गुण आयरिय सम्मए ॥ ६१ ॥ ( काव्यम् . ) तवं चिमं संजम जोगयं च, सद्यायजोगं च सया हिडिए, सुरेव सेलाए समत्तमान, अलमप्पणी होइ अलंपरेसिं ॥ ६२ ॥ सद्याय सु काणरयस्स ताइणो, अप्पाव जावस्स तवे रयस्स; विमुझ जंसि मलं पुरे करूं, समीरियं रुप्प मलं व जोइणा ॥ ६३ ॥ से तारिसे रक सहे जिइंजिए, सुए जुत्ते किंवणे; विराय कम्म घमि अवगए, कसिन्ज पुरुावगमेव चंदिमे तिबेमि ॥ ६४ ॥ इतियार परिहिं नाम मझयण सम्मत्तं ॥ ८ ॥ ge ( काव्यम् . ) थंजा व कोहा व मय प्पमाया, गुरुसगासे विषयं न सिरके; सो चेव न तस्स अनू जावो, फलंव कीयस्स वहाय होइ ॥ १ ॥ जेयावि मंदेत्ति गुरु विश्त्ता, महरे इमे छाप सुए Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३७ ) त्ति नच्चा; हीलंति मिळं, पविझमाणा करंति आसायण ते गुरुणं ॥ २ ॥ पगइए मंदावि जवंतिएगे, महरावि य जे सुयबुद्धो ववेया; यार मंता गुण सुधि अपा, जेही लिया सिहिरिव जासकुद्या ॥ ३ ॥ जेयावि नागं महरंति नच्चा, आसायए सेहिया हो; वायरियंऽपि हु हीलयं तो, नियचर जाइ पहं खु मंदो ॥ ४ ॥ श्रसी विसो वावि परं सुरुहो, किं जीव नासा परंतु कुशा; आयरिय पाया पुण अप्पसन्ना, अबोहियासाय न मोरको ॥ ए ॥ जो पावगंजलिय मवकमेधा सी विसंवावि कोवएद्या; जो वा विसं खाय‍ जीवी यही, एसोवमासायण्या गुरुणं ॥ ६ ॥ सिया हु से पावए नोझा, विसो वा कुविऊ न नरके, सिया विसं हालहलं नमारे, नयावि मोरको गुरु हीलगाए || ७ || जो पवयं सिरसा जितु मिले, सुत्तंव सीहं परिबोहएद्या; जो वा दए सत्ति गे पहारं, एसो वमासायण्या गुरुणं ॥ ८ ॥ सिया दुसी से गिरंपि जिंदे, सिया हु सीहो कुवित न नरेक, सिया नजिंदेशव सत्तिग्गं, नयावि मोरको; गुरुही लगाए || || आयरिय पाया पन्ना बोहियासयण नलिमोरको; तम्हा अणावाह सुहा जिकंखी, गुरुप्प सायानिमुहो रमेझा ॥ १० ॥ जहाहियग्गी जलणं नमसे, नाणादुइ मंतपयानिमित्तं; एवायरियं नवचिएझा; अणंतनाणो वगर्जवितो ॥ ११ ॥ जस्संतिए धम्मप याई सिखे, तस्संsतिए विणइयं पटंजे; सक्कारए सिरसा पंजली, काय गिराजो मासाय निच्चं ॥ १२ ॥ लझा दया संजम बंजच्चेरं, कल्लाए नागीस्स विसोही घाणं, जे मे गुरु सययं - Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३०) णुसासयंति, तेहं गुरु सययं पूययामि ॥ १३ ॥ जहा निसंते तव निच्चमाली, पनास केवल जारहंतु; एवायरिज सुय सील बुधिए, विरायश् सुरमसेव इंदो ॥ १५ ॥ जहा ससी कोमुश् जोग जुत्तो, नरकत्त तारागण परिवुमऽप्पा; खे सोहश् विमले अन्जमुक्के; एवं गण। सोह लिख्खूमद्ये ॥ १५॥महागरा आयरिया महेसी, समाहिं जोगे सुयसील बुधिए; संपावित काम अणुत्तराई, बाराहए तोस धम्मकामी ॥ १६ ॥ सोच्चाण मेहावी सुनासियाई सुस्सुसए आयरियमप्पमत्तो; आराहश्त्ताण गुणे अणेगे, से पावश् सिद्धि मणुत्तरं त्तिवेमि ॥ १७ ॥ इति विणयसमाहीद्ययणं पढमं उद्देसो समत्तो ॥१॥ (काव्यम्.) ___ मूलाल रकंधप्पनवो उमस्स, खंधान पला समुवेंति साहा; साह प्पसाहा विरुहंति पत्ता, तज से पुप्पं च फल रसोय ॥१॥ (अनुष्टुबूवृत्तम् ) एवं धम्मस्स, विण, मूलं परमो से मोरको; जेण कित्तिं सुयं सिग्धं, निस्सेसं चालिगबई ॥२॥ जे य चंमे मिए थछे मुवाइ नियमी सढे; वुश से अविणीयप्पा, कसोयं गयं जहा ॥३॥ विणयंपि जो नवाएणं जोइन कुप्पश् नरो; दिवं सो सिरि मिचंति, दंमेणं पमिसेहए ॥ ४ ॥ तहेव अविणीयप्पा, जववक्षा हया गया; दीसंति मुहमेहंता, आनिलगमुवचीया ॥ ५॥ तदेव सुविणीयप्पा, उववद्या हया गया; दीसंति सुहमेहंता, इढिपत्ता महायसा ॥६॥ तहेव अविणीयप्पालोगेसि नर नारि; दीसंति हमेहंता, बायाते विगलिं, दिया Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३ए) ॥७॥ दंमसळ परिजुन्ना; असन्न वयणेहि य; कलुणा विवन्न छंदा, खुप्पिवासा परिगया॥ ७ ॥ तहेव सुविणीयप्पा, लोगंसि नर नारि; दीसंति सुहमेहंता, इड्डि पत्ता महायसा ॥ए॥ तहेव अविणीयप्पा, देवा जरकाय गुझगा; दीसंति उह मेहंता; आनिउग मुवच्यिा ॥ १०॥ तहेव सुविणीयप्पा, देवा जरकाय गुझगा; दीसंति सुहमेहंता, इडि पत्ता महायसा ॥ ११॥ जे आयरिय उवशायाणं, सूस्सूसा वयणं कराः तेर्सि सिरका पवढंति जल सित्ता श्व पायवा ॥ १५ ॥ अप्पणघा • परछावा सिप्पा ऐनणियाणियं; गिहिणो उवनोगा, इह लोगस्स कारणा ॥ १३ ॥ जेण बंध वहं घोर, परियावं च दारुणा; सिरकमाणा नियचंति, जुत्ता ते ललिइंदिया ॥ १४ ॥ तेवि तं गुरु पूयंति, तस्स सिप्पस्स कारणा; सकारंति नमसंति, तुम निद्देसवत्तिणो ॥ १५ ॥ किंपुणजो सुयगाही; अणंत हिय कामए; आयरिया जं वए निख्खू, तम्हा तं नाश्वत्तए ॥ १६॥ नियंसिझं गाणं, नियंच आसणाणिय; नीयंच पाए वंदेजा नियं कुजाय अंजलिं ॥ १७॥ संघदृश्ता काएणं, तहा उवहिणामविखमेह अवराहं मे, वएफ न पुणोत्तिय ॥ १७ ॥ दुग्गवा पजएणं, चोट वह रह; एवं बुद्धि किच्चाणं वुत्तोवुत्तो पकु-. वश्॥ १ए ॥ आलवंते लवंतेवा न निसिङाए पमिसुणे; भूतूण आसणं धीरो, सुस्सुसाए पमिसुणे ॥२०॥ कालं चंदो वयारंच, पमिलेहित्ताण हेऊहिं; तेणंतेणं जवाएहिं, तंतसंपमिवायए ॥२१॥ विवत्ती अविणीयस्स, संपत्ती विणीयस्स य; जस्सेयं मुहर्ज नायं, शिरकंसे अजिगह ॥२२॥ Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४०) (काव्यम्.) जेयावि चंमे म इड्डि गारवे, पिशुणे नरे साहस होणपेसणे; अदि धम्मे विणए अकोविए, असंविलागी न दु तस्स मोरको ॥ २३ ॥ निद्देस वित्ती पुण जे गुरूणं, सुयन्न धम्मा वि यंमि कोविया; तरितु ते उघमिणं कुरुत्तरं, खवितु कम्मं गश् मुत्तमं गयं तिबेमि ॥२४॥ इति विणसमाहीनामं, छयणं वीउद्देसो सम्मत्तं ॥२॥ (काव्यम्.) ___आयरियग्गिमिवाहि यग्गी, सुस्सू समाणो पमिजागरेद्या; श्रालोश्य इंगिय मेव नच्चा, जो बंद माराहय स पुशो॥१॥ आयारमा विणयं पजंजे, सूस्सूसमाणो परिगिस वकं, जहोवझं अनिकंखमाणो, गुरु तु नासायश् स पुसो ॥२॥ रायणिएसु विणयं पठंजे, महरावि य जे परियाय जेना, नियत्तणे वट्टर सच्चवाइ, उवायवं वक्ककरे स पुशो ॥ ३ ॥ अन्नाय उंचं चरइ विसु, जवणच्या समुयाणं च निचं; अलक्ष्यं नोपरिदेवएद्या, बढुं न विकब स पुशो ॥४॥ संथार सिक्षासण लत्तपाणे, अप्पिया अश् लानेवि संते; जो एव मप्पाण नितोसएका, संतोस पाहंन रए स पुको ॥ ५॥ सक्का सहेळं आसाए कंटया, अमया उबहयानरेणं; अणासए जो उ सहेश कंटए, वश्मए कन्न सरे स पुजो ॥६॥ मुदुत्त पुरका उ हवंति कंटया, अजमया तेवि तल सुनचरा; वाया कुरुत्ताणि पुरुषराणि, वराणु बंधाणि महब्जयाणि ॥७॥समावयंतावयणा निघाया; कन्नंगया उम्मणियं जणंति; धम्मोत्तिकिच्चा परमग्ग सूरे, जिइंदिए जो सहर सपुको ॥७॥ अवन्नवायं च परं मुहस्स, पच्चरकल पमिणीयंच Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४१) जासं; उहारिणीं अप्पिय कारिणिंच, नासं ननासेश सयास पुजो ॥ ए॥ अलोलुए अकुहए अमाइ, अपिसुणे यावि अदीण वित्ती; नोजावए नोविय नावियप्पा, अकोउहवे य सया स पुजो ॥ १० ॥ गुणेहिं साहू अगुणेहिंऽसाहू, गिन्हाहिं साहू गुण मुच्चऽसाहू; वियाणिया अप्पगमप्पएणं, जो रागदोसेहिं समो स पुजो ॥ ११ ॥ तहेव महरं च महबगं वा, श्वी पुमं पवश्यं गिहं वा; नोहीलए नोविय रिकंसएद्या, अंनंच कोहंच चए स पूजो ॥ १५ ॥ जे माणिया सययं माणयंति, जुत्तेण कन्नं निवेसयंति; ते माणए माणरिहे तवस्सी, जिऽदिए सच्च रए स पुजो ॥ १३ ॥ तेसिं गुरुणं गुणसागराणं, सुच्चाण मेहावी सुनासियाई; चरे मुणी पंच रए त्तिगुत्तो, चउकसायावगए स पुजो ॥ १४ ॥ गुरु मिह सययं पनियरिय मुणी, जिणमय निजणे अनिगम कुसले, धुणिय रयमलं पुरेकम, नासुर मजलं गयं गय तिबेमि ॥ १५॥ ॥ इति विणय समाही तश्न उद्देसो सम्मत्तं ॥ (गद्यम् ) सुयं मे आजसं तेणं जगवया एव मरकायं इह खलु थेरेहिं जगवंतेहिं चत्तारि विषय समाही हाणा; पन्नता कयरे खलु ते रेहिं लगवंतेहिं चत्तारि विणय समाही जाणा, पन्नत्ता श्मे खलु तेथेरेहिं जगवंतेहिं चत्तारि विषय समाही जाणा पन्नत्ता तं जहा; विषय समाही १ सुय समाही २ तव समा ही ३ आयार समाही ४ विणए १ सुय ५ तवेय ३ आयारें निच्चं पंमिया अनिरामयंति अप्पाणं जे नवंति जिइंदिया चनविहा खलु विषय समाही जवश् तंजहा अणुसासिद्यतो Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५२) सुस्सूसइ १ समं संपमिवश २ वेयमाराहश् ३ न य जवश् अत्तसंपग्गहि ए ४ चळ पयं नव लव यश्च सिलोगो॥ (काव्यम्.) पेहे हियाणु, सासणं, सुस्सूस तंचपूणो अहिए, न य माण मएण मद्यश, विणय समाही आ य अहिए ॥ १॥ चन विहा खलु सुय समाही जव तंजहा सुर्यमे नविस्स इत्ति अद्याश्या जवश् एगग्गाचित्तो नविस्सा मित्ति अद्याश्यवं जवश् अप्पाणं गवश्सा मित्ति अद्याश्यव्वं नवश् विज परं गव इसा मित्ती अशाश्यव्वं नवश् चनवं पयं नव जव य श्व सिलोगो, नाणमेगग्ग चित्तोय छिन गवश्ए परं सुयाणिय अ. हिकित्ता र सुयसमाहिए ५ चनविहाखलु तवसमाही नवश् तंजहा नोइहलोग ग्याए तवमहिछेद्या नोपरलोगच्याए तवमहिशा नोकित्ति वन्न सद्द सिलोगच्याए तवम हिच्या नन्नन निक्षरग्याए तवमहिच्या चनळ पयं नवजव यश्च सिलोगो। (काव्यम्.) विविह गुण तवोरए निच्चं, नव निरासए निधरहिए तवस्सा धुण पुराण पावगं, जुत्तो य सया तव समाहीए ॥२॥ चनविहा खलु आयारसमाही नवश् तंजहा नोइहलोगच्याए आयारम हिच्या नोपर लोगच्याए आयारमहिन्या नोकित्ति वन्न सद्द सिबोगच्याए आयारम हिशा नन्न अरिहंतेहिं देऊहिं आयारमहिन्धा चमचं पयं लवर य श्व सिलोगो॥ Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५३) ( काव्यम्.) जिण वयण रए अतिंतिणे, पम्पुिन्नायय मायय लिए; आयार समाही संवुमे, नवश्य दंते नाव संधए ॥४॥ (काव्यम्.) अलिगम चउरो समाही, सु विसुयो सुसमा हियप्पट, विउलहिय सुहावहं पुणो, कुवर सो पयरकेम मप्पणो ॥५॥ जाइ मरणाउ मुच्चर, श्ववंच चयश् सव्यसो; सिझे वा हवश् सासए, देवे वा अप्प रए महिड्ढिए तिबेमि ॥ ६॥ इति विणयसमाही चनो उद्देशो नवमंशयसम्मत्तं ॥ ५॥ (काव्यम्.) निरकममाणाश्य बुद्ध वयणे, निच्चं चित्तसमाहिक हवेद्या; श्छीण वसं नयावि गजे, वंतं नोपनि यायइ जे स जिख्खू ॥१॥ पुढवि न रकणे न रकणावए, सीउदगं नपिवे नपीया वए; अगणि सब जहा सुनिसियं, तं नजले नजलावए जे स निख्खू ॥२॥ अनिलेण नवीए नवीयावए; हरियाणि नचिंदे नचिंदावए. बीयाणि सया विवद्ययंतो, सचित्तं नाहारए जे स निख्खू ॥३॥ वहणं तस्स थावराणं होश. पुढवि तण करु निसियाणं, तम्हा उद्देसियं न तुंझे, नोवि पए नपयावए जे स निख्खू ॥४॥ रोश्य नाय पुत्त वयणे अत्तसमे मन्नेश प्पिकाए; पंचेय फासे महव्वयाई. पंचासव्व संवरेय जे स निख्खु ॥ ५॥ चत्तारि वमे सया कसाए, धुव जोगो हवेद्य बुध वयणे; अहणे निशाय रूव रयए, गिहि जोगं परिवन ए जे स निख्खु ॥ ६॥ सम्मदिनी सया अमुढे, अ Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४४) बिदु नाणे तव संजमे य; तवसा धुण पुराण पावगं, मण वय काय सुसंवुमे जे स निख्खू ॥ ७॥ तहेव असणं पाणगं वा, विविहं खाश्मं सामं लमित्ता; होही अोसुए परेवा तं न निहे न निहावए जे स निख्खू ॥ ७ ॥ तहेव असणं पाणगं वा, विविहं खाइमं साश्मं ललित्ता; बंदिय साहमियाणं मुंजे, नोच्चा सद्याय रए य जे स निख्खू ॥ए ॥ नय वुग्गहियंकहं कहेद्या, नय कुप्पेनिङ इदिए पसंते, संजम धुव जोग जुत्ते, उवसंते अविहेमए जे स लिख्खू ॥ १० ॥ जो सहर हू गाम कंटए, अक्कोस पहार तद्यणाउ यः नयन्नेरवासद्द सप्पहासे, सम सुह पुरक सहेअ जेस निख्खू ॥ ११॥ पमिमं पमिवझिया मसाणे नोनीयए रवाइदियस्स; विविह गुण तवो रए निच्चं नसरीरचानिकंखए जे स लिख्खू ॥ १५ ॥ असई वोसम चित्त देहे, अक्कुम्वहए व लुसिएवा; पुढवीसमे मुणी हवेद्या, अनियाणे अकोहलेय जे स निख्खू ॥ १३ ॥ अनिय काएण परिसहाई, समुघरे जाइ पहाज अप्पयं; विश्तु जाइ मरणं महप्रयं, तवे रए सामणिए जे स निख्खू ॥ १५॥ हब संजए, पाय संजए, वाय संजए संजए इंदियस्स; अझप्प रए सु समाही यप्पा, सुत्तवं च वियाण जे स्व.. लिखू.॥ १५ ॥ जवहिमि अमुनिए अगिचे, अन्नाय ॐन पुलमिपुलाए कय विक्क्य संनिहि नवरए, सबसमावगएय में स्त्र.॥ १६॥ अलोलुं निख्खू नरसेसु पिके, चंचरे जीवियं नानिकखी; इढिंच सकारणं पुयणंच, चए ध्यिप्फ अणिहे जे स लिखू.॥ १७ ॥ नपरं वएशासि अयं कुसीले जेन्नोप्पिक्ष नत. वएशा; जा. Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४५) पिय पत्तेय पुन्न पावं, अत्ताणं नसमुक्कसे जे स निख्खू ॥१०॥ न जाइ मत्तेनय रूव मत्ते, नलालमत्ते न सुएण मत्ते; मयाणि सवाणि विवद्ययंतो, धम्मशाण रएय जे स निख्खू ॥ १५ ॥ पवेयए अझपयं महामुणी, धम्मे हि घावयश् परंपि; निकम्म वझेश कुसीलविंग, नयावि हासं कुहए जेस निख्खू ॥२०॥ तं देहवासं असुश् असासयं, सया चए निच्च हिय छियप्पा; बिंदित्तुं जाइ मरणस्स बंधणं, उवेश निख्खू अपुणागमं गइ त्तिबेमि ॥ २१ ॥ इति निक्खू नाम दसमद्ययणं संपूर्ण दस वैकालिक सूत्र समाप्तं ॥ Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री सुधर्म गणधर प्रणीत वीरस्तुति (सूयगड अ० ६ को) (काव्यम्.) पुचिस्सुणं समणामाहणा य, अगारिणोया परतिचिया य॥ से केश्णेगंत-हियधम्ममाहु, अणे विसं साहुसमिरकयाए ॥१॥ कहं च नाणं कहं ईसणं से, सीलं कहं नायसुयस्स श्रासी ॥ जाणासिणं निखु जहातहेणं, अहासुयं बूहि जहाणिसंतं ॥२॥ खेयन्ने से कुसले महेसी, अणंतनाणी य अणंतदंसी ॥ जसस्सिणो चख्खुपहज्यिस्स, जाणाहि धम्मं च धियं च पेंहा ॥३॥ जथं अहेयं तिरियं दिसा सु, तसा य जे थावर जेय पाणा ॥ से णिच्चणिच्चेहिं समिरक पन्ने, दीवेव धम्म समियं उदाहु ॥४॥ सेसव्वदंसी अनियनाणि,मिरामगंधे धिश्मं विअप्पा ॥अणुत्तरे सव्व जगंसिविऊ, गंथा अतीते अनये अणाज॥५॥ से जूझपन्ने अणिएअचारी. उहंतरे धीरे अणंतचख्खु ॥ अणुत्तरे तप्पर सूरिएवा, वश्रोयर्णिदेव तमंपन्नासे ॥ ६॥ अणुत्तरं धम्ममिणं जिणाणं, ऐया मुणि कासव श्रीसुपन्ने ।। इंदेव देवाण महाणुनावे, सहस्सणेता दिविणंविसि ॥७॥ से पन्नया अरकय सागरेवा, महोदहिवावि अणंतपारे॥अणाश्लेया अकसाइ जिख्खू, सक्केव देवाहिवई श्मं ॥ ७॥ से वीरिएम पमिपुन्न विरिए सुदंसणे वा णगसव्व सेठे ॥ सुरालएवासिमुदागरे से, विरायएऽणेगगुणोववेए ॥ ए ॥ सयंसहस्साणन जोय Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४७ ) खाणं, तिकंरुसे पंरुंग वेजयंते ॥ से जोयणे वणवई सहस्से, उद्धुस्सि हे सहस्समेगं ॥ १० ॥ पुढे जे चि‍ भूमिवडिए, जं सूरिया अणुपरिवट्टयंति ॥ से हेमवन्ने बहु नंदणे य, जंसि, रई वेदयंति महिंदा ॥ ११ ॥ से पव्वए सह महप्पगासे, विराय कंच मवन्ने || अत्तरे गिरिसु य पव्वग्गे, गिरिवरे से जलिएव जोमे ॥ १२ ॥ महीए ममि लिए एगिंदे; पन्नायते सूरिय सुलेसे || एवं सिरिएन स जूविन्ने, मणोरमे चिमाली || १३ || सुदंसणस्सेव जसो गिरिस्स पवु - महतो पव्वयस्स ॥ एतोवमे समणे नायपुत्ते, जाई जसो दंसण नासीले ||१४|| गिरिवरेवा निसहाययाणं, रुयएव सेव लयायतां । तर्जवमे से जगनू पन्ने, मुणीए मजे तमुदाहु पन्ने ॥ १९ ॥ ऋणुत्तरं धम्म - मुईरइत्ता, अणुत्तरं जाणवरं जियाई ॥ सुसुक्क सुक्कं पगंमसुक्कं संखिंवेगंतवदातसुक्कं ॥ १६ ॥ - गुत्तरग्गं परमं महेसी, असेसकम्मं स विसोहइत्ता | सिद्धिंग साइमांत पत्ते, नाणेण सीलेण य दंसणेणं ॥ १७ ॥ रुख्खेसु गाए जह सामलीवा, जस्सि र वेदयंति सुवन्ना ॥ वसुवा नंद माडुसे, नाणेण सीले य जूझपन्ने ॥ १० ॥ ययिंव सद्दा अत्तरे, चंदोत्र ताराण महाणुजावे, गंधेसुवा चंदा - माहु से, एवं मुन्नि - माडु ॥ १९ ॥ जहा सयंजू उदहीण सेहे, नागेसुवा धरविंद माडु सेहे ॥ खन्दएवा रसवेजयंते, तोवहा मुणि वैजयंते ॥ २० ॥ हविसु एरावण - माहु पाए, सीहो मियाएं सलिला ए गंगा || पख्खि सुवा गुरुलेवेणुदेवे, निव्वा वादी हि पायपुत्ते ॥ २१ ॥ जोहेसु पाए, जहवीससे पुफे , Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४) सुवा जह अरविंद-माहु॥खत्तीण सेठे जह दत्त वक्के, इसीण से तह वचमाणे ॥२॥ दाणाण सेठं अजयप्पयहाणं, सच्चेसुवा अणवऊ वयंति ॥ तवे सुवा उत्तम बंजरं, लोगुत्तमे समणे नायपुत्ते ॥ २३ ॥ ठिण सेवा लवसत्तमावा, सजा सुहम्माव सलाण सेज ॥ णिबाणसे जह सवधम्मा, ण णायपुत्ता परम ऽबिनाणी ॥ २४॥ पुढोवमे धुणविगयगेहि, न समिहिं कुवर आसुपन्ने ॥ तरितु समुदं च महानवोघं, अनयंकरे वीरे अणंतचख्खु ॥ २५॥ कोहं च माणं च तहेव मायं, लोनं चन अशदोसा ॥ ए आणि वंता अरहामहसी, ण कुवर पाव ण कारवे ॥२६॥ किरिया किरियं वेणआणुवायं, अन्नाणियाणं पमियच्च गणं ॥ से सबवायं इतिवेदश्त्ता,नवहिए धम्म सदीहराय॥२७॥से वारिया इचि सराश्नत्तं उहासवं पुरकखयच्याए॥ लोगं विदित्ता आरं पारं च, सर्व पनू वारिय सव्ववारं ॥२०॥ सोच्चा य धम्मं अरिहंतनासियं, समाहियं अपलं विसुद्धं ॥ तं सदहंता य जणा अणाज, इंदेव देवाहिआगमिस्संति तिबेमि ॥ए॥ इति समाप्तं. ___ नमिपवजा नवमं अध्ययनम्. चऊण देवलोगाउँ उववन्नो माणुसम्मि लोगम्मि । उवसन्तमोहणिजो सरई पोराणयं जायं ॥१॥ जाई सरित्तु जयवं सहसबुखो अणुत्तरे धम्मे। पुत्तं ग्वेत्तु रजे अनिणिक्खमइ नमी राया ॥२॥ सोदेवलोगसरिसे अन्तेउरवरगढ वरे नोए । नुञ्जित्तु नमी राया बुझो लोगे परिच्चयश् ॥३॥ महिलं सपुरजणवयं बलमोरोहं च परियणं सर्व । चिच्चा अनिनिक्खन्तो एग Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (पए) न्तमहिम्हि जयवं ॥४॥ कोलाहलसंनूयं श्रासी महिलाए पबयन्तम्मि । तश्या राय रिसिम्मि नमिम्मि अनिणिक्खमन्तम्मि ॥ ५॥ अनुध्यिं रायरिसिं पवजागणमुत्तमं । सक्को माहणवेसेणं इमं वयणमब्बवी ॥ ६॥ किएणु लो अऊ महिलाए कोलाहलगसंकुला । सुच्चन्ति दारुणा सद्दा पासाएसु गिहेसु य ॥७॥ एयमकं निसामित्ता हेऊकारणचोट । त नमी रायरिसी देवन्दं णमब्बवी ॥ ७॥ महिलाए चेइए वचे सीयलाए मणोरमे । पत्तपुप्फफलोवेए बहूणं बहुगुणे सया ॥ ए ॥ वारण हीरमाणं मि चेश्यंमि मणोरमे । उहिया असरणा अत्ता एए कन्दन्ति नो खगा ॥ १०॥ एयमई निसामित्ता हेजकारणचोर्छ । त नमि रायरिसिं देविन्दो इणमब्बवी ॥११॥ एस अगरी य वाऊ य एवं मझ मन्दिरं । जयवं अन्तेनरंतेणं कीसणं नावपिक्खह ॥ १२ ॥ एयम निसामित्ता हेऊकारणचोछ । त नमी रायरिसि देवन्दं इणमब्बवी ॥ १३ ॥ सुहं वसामो जीवामो जेसि मो नत्थि किंचण।महिलाए मज्जमाणीए न मे मज्जा किंचण ॥ १४ ॥ चत्तपुत्तकलत्तस्स निवावारस्स लिक्खुयो । पियं न विआई किंचि अप्पियं पि न विजई ॥ १५ ॥ बहु खु मुणिणो नई अणगारस्स लिक्खुणो । सब विप्पमुक्कस्स एगन्तमणुपस्सः ॥ १६ ॥ एयम निसामित्ता हेजकारण चोर्छ । त नमि रायरिसिं देविन्दो इणमब्बवी ॥१७॥ पागारं कारश्त्ताणं गोपुरट्टालगाणि य । जस्सूलगसयग्घी त गन्चसि खत्तिया ॥ १७ ॥ एयम निसामित्ता हेऊकारणचोल । त नमी रायरिसी देवेन्दं इणमब्बवी ॥ १५ ॥ सई नगरं दश०४ Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५० ) किच्चा तव संवरमग्गलं । खन्तीनिउपागारं तिगुत्तं पुष्पधंसयं ॥ २० ॥ धणुं परमं किच्चा जीवं च इरियं सया । धि च केयणं किच्चा सच्चे पलमन्थए ॥ २१ ॥ तवनारायजुत्तेण नित्तु कम्मयं । मुणी विगयसंगामो जवार्ड परिमुच्च ||२२|| यमहं निसामित्ता देऊकारणचो तर्ज नामं रायरिसिं देविन्दो मन्त्री || २३ || पासाए कारत्ताणं वचमा गिहाणि य । वालग्गपोश्यार्ज य तर्ज गन्नुसि खत्तिया ॥ २४ ॥ एयमहं निसामित्ता हेऊकारणचोट । तनुं नमी रायरिसी देवेन्दं इणमब्बवी || २५ || संसयं खलु सो कुमाई जो मग्गे कुई घरं | जत्थेव गन्तुमिलेका तत्थ कुबेत सासयं ॥ २६ ॥ एयम निसामित्ता देऊकारणचोइन । तर्ज नामं रायरिसिं देविन्दो इमव ॥ २७ ॥ श्रमोसे लोमहारे य गरिने य तक्करे । नगरस्स खेमं काऊ तर्ज गसि खत्तिया ॥ २८ ॥ एयमहं निसा मित्ता देऊकारण चोइन । तर्ज नमी रायरिसी देवन्दं मन्त्रवी ॥ २९ ॥ स तु मगुस्सेहिं मिला दएको पजुई । कारिणोऽत्य वज्जन्ति मुच्चई कारने जो ॥ ३० ॥ एयम निसा मित्ता हेऊकारणचोइन । तर्ज नमि रायरिसि देविन्दो मन्वव ॥ ३१ ॥ जे के पत्थिवा तुजं नानमन्ति नराहिवा । वसे ते वावइत्ताणं तर्ज गनुसि खत्तिया ॥ ३२ ॥ एयमहं निसा मित्ता हेऊकारणचोइन । तर्ज नमी राय रिसी देवेन्दं मन्व ॥ ३३ ॥ जो सहस्सं सहस्साएं संगामे आए जिऐ । एगं जिऊ आपा एस से परमो जर्ज ॥ ३४ ॥ अप्पामेव जुहि किं ते जुए वज । अप्पाणमेवमप्पाणं जड़ता Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५१) सुहमेहए ॥ ३५ ॥ पाश्चन्दियाणि कोहं माणं मायं तहेव लोहंच । उद्ययं चेव अप्पाणं सव्वं अप्पे जिए जियं ॥ ३६ ॥ एयमई निसा मित्ता हेऊकारणचोर्छ । त नमि रायरिसी देविन्दो इणमब्बवी ॥ ३७ ॥ जश्त्ता विजले जमे लोश्त्ता समणमाहणे । दचा नोच्चा य जिना य त गलसि खत्तिया ॥ ३०॥ एयम निसा मित्ता हेककारण चोछ । त, नमी राय रिसी देवेन्दं णमब्बवी ॥ ३ए॥ जो सहस्सं सहस्साणं मासे मासे गवं दए । तस्सवि संजमो से अदिन्तस्स वि किंचण ॥४०॥ एयम निसा मित्ता हेऊकारणचो । त नमि रायरिसि देविन्दो इणमब्बवी ॥४१॥ घोरासमं चश्त्ताणं अन्नं पत्थेसि आसमं । इहेव पोसहर जवाहि मणुयाहिवा ॥ ४ ॥ एयमई निसा मित्ता हेजकारणचोर्छ । त नमी राय रिसी देवेन्द इणमब्बवी ॥४३॥ मासे मासे तु जो बालो कुसग्गेण तु नुञ्जए । न सो सुयक्खा यस्स धम्मस्स कलं अग्घ सोलसिं ॥४४॥ एयम मिसा मित्ता हेजकारणचोर्छ । त नमि रायरिसी देविन्दो इणमब्बवी ॥४५॥ हिरमं सुवर्ण मणिमुत्तं कसं दूसं च वाहणा । कोसं वडावश्त्ताणं त गसि खत्तिया ॥ ४६॥ एयम निसा मित्ता हेजकारणचोल । त नमी रायरिसी देवेन्दं णमब्बवी ॥४७॥ सुवमरुप्पस्स उ पवया नवे सिया दु केलाससमा असंखया । नरस्स लुचस्स न तेहिं किंचि चा उ आगाससमा अणन्तिया ॥ ४ ॥ पुढवी साली जवा चेव हिरमं पसुनिस्सह । पमिपुर्ण नालमेगस्स इश विजा तवं चरे ॥४ए॥ एवम निसा मित्ता हेजकारणचोर्छ । Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५२ ) अह - नमं यरिसिं देविन्दो इणमब्बवी ॥ ५० ॥ रयमद जोए चयसि पत्थिवा । सन्ते कामे पत्थेसि संकप्पेण विन्नसि || १ || यम निसा मित्ता देऊकारण चोट । ad नमी रायरिसी देवेन्दो इमब्बवी ॥ ५२ ॥ स कामा विसं काम कामा सी विसोवमा । कामे य पत्थे माणा - कामा जन्ति दो गई || ३ || हे वय कोहेणं माणे माई | माया परिग्घार्ज लोनार्ड हर्ज जयं ॥ ९४ ॥ अवऊिण माहणरूवं विचरू विजण इन्दत्तं । वन्द नित्थुणन्तो इमाहि मदुराहिं वग्गूहिं ॥ ५५ ॥ अहो ते निशिकोहो हो माणो पराजि । अहो ते निरकिया माया अहो लोनो वसीक ॥ ५६ ॥ अहो ते कवं साहु अहो ते साहु मद्दवं । अहो ते उत्तमा खन्ती अहो ते मुत्ति उत्तमा ॥ ७ ॥ इहं सि उत्तमो जन्ते पचा होहिसि उत्तमो । लोगुत्तमुत्तमं सिद्धिं गसि नीर ॥ ५८ ॥ एवं अनित्थुणन्तो रायरिसि उत्तमाए सकाए । पायाहिणं करेन्तो पुणो पुणो वन्दई सक्को || ९‍ || तो वन्दिऊण पाए चङ्कसलक्खणे मुविरस्स । यागासेऽणुप्प ललियचलकुएमलतिरी ॥ ६० ॥ नमी नमेइ अप्पाणं सक्खं सकेण चोइन । चश्नण गेहूं च विदेही सामले पज्जुव ॥ ६१ ॥ एवं करन्ति संबुद्धा पण्डिया पविक्खणा । वियिट्टन्ति जोगेसु जहा से नमी रायरिसी तिमि ॥ ६२ ॥ Hooc Page #59 --------------------------------------------------------------------------  Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Published by Nathmalji Moolchandji, SADRI (Marwar ). Print by Ramchandra Yesu Shedge, at the Nirnaya-sagar Press, 23, Kolbhat Lane, Bombay..