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________________ ( ३६ ) कन्नं नासवि कप्पियं; अवि वासस्यं नारि, बंजयारी विवद्य, ॥ ५६ ॥ विसा चि संसग्गी, पणियंरस जोय; नरस्सत्तगवे सिस्स, विसं ताल जहा ॥ ९७ ॥ अंगं पचंग संघाणं चारुलविय पेहियं; इवीणं तं न निझाए, कामराग विवढणं ॥ ८ ॥ विससु मन्नेसु; पेमं नाऽनिनिवेसए; णिचं तेसिं विन्नाय, परिणामं पुग्गलाण्य ॥ एए ॥ पुग्गलाणं परिणामं तेसिं नच्चा जहा तहा; विणीय तन्हा विहरे, सीइए अप्प णो ॥ ६० ॥ जाए सझाए निरकंतो, परियाय हा मुत्तमं तमेव अणुपाद्या, गुण आयरिय सम्मए ॥ ६१ ॥ ( काव्यम् . ) तवं चिमं संजम जोगयं च, सद्यायजोगं च सया हिडिए, सुरेव सेलाए समत्तमान, अलमप्पणी होइ अलंपरेसिं ॥ ६२ ॥ सद्याय सु काणरयस्स ताइणो, अप्पाव जावस्स तवे रयस्स; विमुझ जंसि मलं पुरे करूं, समीरियं रुप्प मलं व जोइणा ॥ ६३ ॥ से तारिसे रक सहे जिइंजिए, सुए जुत्ते किंवणे; विराय कम्म घमि अवगए, कसिन्ज पुरुावगमेव चंदिमे तिबेमि ॥ ६४ ॥ इतियार परिहिं नाम मझयण सम्मत्तं ॥ ८ ॥ ge ( काव्यम् . ) थंजा व कोहा व मय प्पमाया, गुरुसगासे विषयं न सिरके; सो चेव न तस्स अनू जावो, फलंव कीयस्स वहाय होइ ॥ १ ॥ जेयावि मंदेत्ति गुरु विश्त्ता, महरे इमे छाप सुए
SR No.022606
Book TitleDasvaikalik Sutra Mool Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherNathmalji Moolchandji Shah
Publication Year1921
Total Pages60
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size4 MB
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