SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 50
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (४४) बिदु नाणे तव संजमे य; तवसा धुण पुराण पावगं, मण वय काय सुसंवुमे जे स निख्खू ॥ ७॥ तहेव असणं पाणगं वा, विविहं खाश्मं सामं लमित्ता; होही अोसुए परेवा तं न निहे न निहावए जे स निख्खू ॥ ७ ॥ तहेव असणं पाणगं वा, विविहं खाइमं साश्मं ललित्ता; बंदिय साहमियाणं मुंजे, नोच्चा सद्याय रए य जे स निख्खू ॥ए ॥ नय वुग्गहियंकहं कहेद्या, नय कुप्पेनिङ इदिए पसंते, संजम धुव जोग जुत्ते, उवसंते अविहेमए जे स लिख्खू ॥ १० ॥ जो सहर हू गाम कंटए, अक्कोस पहार तद्यणाउ यः नयन्नेरवासद्द सप्पहासे, सम सुह पुरक सहेअ जेस निख्खू ॥ ११॥ पमिमं पमिवझिया मसाणे नोनीयए रवाइदियस्स; विविह गुण तवो रए निच्चं नसरीरचानिकंखए जे स लिख्खू ॥ १५ ॥ असई वोसम चित्त देहे, अक्कुम्वहए व लुसिएवा; पुढवीसमे मुणी हवेद्या, अनियाणे अकोहलेय जे स निख्खू ॥ १३ ॥ अनिय काएण परिसहाई, समुघरे जाइ पहाज अप्पयं; विश्तु जाइ मरणं महप्रयं, तवे रए सामणिए जे स निख्खू ॥ १५॥ हब संजए, पाय संजए, वाय संजए संजए इंदियस्स; अझप्प रए सु समाही यप्पा, सुत्तवं च वियाण जे स्व.. लिखू.॥ १५ ॥ जवहिमि अमुनिए अगिचे, अन्नाय ॐन पुलमिपुलाए कय विक्क्य संनिहि नवरए, सबसमावगएय में स्त्र.॥ १६॥ अलोलुं निख्खू नरसेसु पिके, चंचरे जीवियं नानिकखी; इढिंच सकारणं पुयणंच, चए ध्यिप्फ अणिहे जे स लिखू.॥ १७ ॥ नपरं वएशासि अयं कुसीले जेन्नोप्पिक्ष नत. वएशा; जा.
SR No.022606
Book TitleDasvaikalik Sutra Mool Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherNathmalji Moolchandji Shah
Publication Year1921
Total Pages60
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy