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________________ ( 22 ) मगदंतियं, अन्नंवा पुष्फ सचित्तं तं च समद्दिया दए ॥ १६ ॥ तं नवे जत्त पाणतु, संजयाणं कप्यियं दिंतियं परियाइरके, न मे कप्पर तारि ॥ १७ ॥ सालुयं वा बिरालियं, कुमुयं उप्प लन्नालियं, मुगालियं सासव नालियं, उखं निवुरुं ॥ १८ ॥ तरुणगं वा पवालं, रुरकस्स तणगस्स वा अन्नस्तवावि हरि यस्स, आमगं परिवद्यए । १९ ॥ तरुणियं वा निवारिं, आमियं चचियं सयं; दिंतियं परियाइरके, नमे कप्पर तारिसं ॥ २० ॥ तहा कोल सिन्नं, वेलुयं कासव नालियं; तिलपप्परुगं निमं, आमगं परिवद्यए ॥ २१ ॥ तदेव चाललं पिठं, वियमंवा तत्तनिवुमं; तिल पिठ पूइपिन्नागं; श्रमगं परिवार ॥ २२ ॥ कवि माडलिंगंच, मूलगं मूल गत्तियं, आमं असल परिणयं, मसावि न पच ॥ २३ ॥ तदेव फल मंथुणि, बीयमंश्रूणि जालिया; विहेलगं पियालंच, यामगं परिवझए ॥ २४ ॥ समुयाएं चरे निख्खू, कुलं उच्चावयं सया; नीयं कुल मइकमं, उसढं जानिधार ॥ २५ ॥ दीणो वित्तिमेसेद्या, न विसिएद्य पंकिए; अमुवि जोयसंमि, माइने एसारए ॥ २६ ॥ वहुपरघरे ि विविहं खाइमं साइमं; न तब पंकि कुप्पे, हा दिव परो नवा || २७ ॥ सय सयण वचं वा, जत्तपाणं च संजए; अ दिंतस्स न कुप्पेद्या, पच्चरके वि श्रदीस ॥ २८ ॥ त्रियं पुरिसं वावि, महरं वा महलगं; वंदमाणं न जाएद्या, नोयं फरुसं वए ||२|| जे नवदेन से कुप्पे, वंदिन नसमुक्कसे; एवंमन्ने समाएस्स सामन्नमणु चि ॥ ३० ॥ सिया एगइन लघू लोनें विधिगृह मामेयं दाइयं संतं, दहु सयमाय ॥३१॥ अत्ता गुरुन
SR No.022606
Book TitleDasvaikalik Sutra Mool Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherNathmalji Moolchandji Shah
Publication Year1921
Total Pages60
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size4 MB
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