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________________ (५२) सुस्सूसइ १ समं संपमिवश २ वेयमाराहश् ३ न य जवश् अत्तसंपग्गहि ए ४ चळ पयं नव लव यश्च सिलोगो॥ (काव्यम्.) पेहे हियाणु, सासणं, सुस्सूस तंचपूणो अहिए, न य माण मएण मद्यश, विणय समाही आ य अहिए ॥ १॥ चन विहा खलु सुय समाही जव तंजहा सुर्यमे नविस्स इत्ति अद्याश्या जवश् एगग्गाचित्तो नविस्सा मित्ति अद्याश्यवं जवश् अप्पाणं गवश्सा मित्ति अद्याश्यव्वं नवश् विज परं गव इसा मित्ती अशाश्यव्वं नवश् चनवं पयं नव जव य श्व सिलोगो, नाणमेगग्ग चित्तोय छिन गवश्ए परं सुयाणिय अ. हिकित्ता र सुयसमाहिए ५ चनविहाखलु तवसमाही नवश् तंजहा नोइहलोग ग्याए तवमहिछेद्या नोपरलोगच्याए तवमहिशा नोकित्ति वन्न सद्द सिलोगच्याए तवम हिच्या नन्नन निक्षरग्याए तवमहिच्या चनळ पयं नवजव यश्च सिलोगो। (काव्यम्.) विविह गुण तवोरए निच्चं, नव निरासए निधरहिए तवस्सा धुण पुराण पावगं, जुत्तो य सया तव समाहीए ॥२॥ चनविहा खलु आयारसमाही नवश् तंजहा नोइहलोगच्याए आयारम हिच्या नोपर लोगच्याए आयारमहिन्या नोकित्ति वन्न सद्द सिबोगच्याए आयारम हिशा नन्न अरिहंतेहिं देऊहिं आयारमहिन्धा चमचं पयं लवर य श्व सिलोगो॥
SR No.022606
Book TitleDasvaikalik Sutra Mool Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherNathmalji Moolchandji Shah
Publication Year1921
Total Pages60
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size4 MB
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