Book Title: Dasvaikalik Sutra Mool Path
Author(s): Gyansundar
Publisher: Nathmalji Moolchandji Shah
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(४१) जासं; उहारिणीं अप्पिय कारिणिंच, नासं ननासेश सयास पुजो ॥ ए॥ अलोलुए अकुहए अमाइ, अपिसुणे यावि अदीण वित्ती; नोजावए नोविय नावियप्पा, अकोउहवे य सया स पुजो ॥ १० ॥ गुणेहिं साहू अगुणेहिंऽसाहू, गिन्हाहिं साहू गुण मुच्चऽसाहू; वियाणिया अप्पगमप्पएणं, जो रागदोसेहिं समो स पुजो ॥ ११ ॥ तहेव महरं च महबगं वा, श्वी पुमं पवश्यं गिहं वा; नोहीलए नोविय रिकंसएद्या, अंनंच कोहंच चए स पूजो ॥ १५ ॥ जे माणिया सययं माणयंति, जुत्तेण कन्नं निवेसयंति; ते माणए माणरिहे तवस्सी, जिऽदिए सच्च रए स पुजो ॥ १३ ॥ तेसिं गुरुणं गुणसागराणं, सुच्चाण मेहावी सुनासियाई; चरे मुणी पंच रए त्तिगुत्तो, चउकसायावगए स पुजो ॥ १४ ॥ गुरु मिह सययं पनियरिय मुणी, जिणमय निजणे अनिगम कुसले, धुणिय रयमलं पुरेकम, नासुर मजलं गयं गय तिबेमि ॥ १५॥ ॥ इति विणय समाही तश्न उद्देसो सम्मत्तं ॥
(गद्यम् ) सुयं मे आजसं तेणं जगवया एव मरकायं इह खलु थेरेहिं जगवंतेहिं चत्तारि विषय समाही हाणा; पन्नता कयरे खलु ते रेहिं लगवंतेहिं चत्तारि विणय समाही जाणा, पन्नत्ता श्मे खलु तेथेरेहिं जगवंतेहिं चत्तारि विषय समाही जाणा पन्नत्ता तं जहा; विषय समाही १ सुय समाही २ तव समा ही ३ आयार समाही ४ विणए १ सुय ५ तवेय ३ आयारें
निच्चं पंमिया अनिरामयंति अप्पाणं जे नवंति जिइंदिया चनविहा खलु विषय समाही जवश् तंजहा अणुसासिद्यतो

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