Book Title: Dasvaikalik Sutra Mool Path
Author(s): Gyansundar
Publisher: Nathmalji Moolchandji Shah

View full book text
Previous | Next

Page 46
________________ (४०) (काव्यम्.) जेयावि चंमे म इड्डि गारवे, पिशुणे नरे साहस होणपेसणे; अदि धम्मे विणए अकोविए, असंविलागी न दु तस्स मोरको ॥ २३ ॥ निद्देस वित्ती पुण जे गुरूणं, सुयन्न धम्मा वि यंमि कोविया; तरितु ते उघमिणं कुरुत्तरं, खवितु कम्मं गश् मुत्तमं गयं तिबेमि ॥२४॥ इति विणसमाहीनामं, छयणं वीउद्देसो सम्मत्तं ॥२॥ (काव्यम्.) ___आयरियग्गिमिवाहि यग्गी, सुस्सू समाणो पमिजागरेद्या; श्रालोश्य इंगिय मेव नच्चा, जो बंद माराहय स पुशो॥१॥ आयारमा विणयं पजंजे, सूस्सूसमाणो परिगिस वकं, जहोवझं अनिकंखमाणो, गुरु तु नासायश् स पुसो ॥२॥ रायणिएसु विणयं पठंजे, महरावि य जे परियाय जेना, नियत्तणे वट्टर सच्चवाइ, उवायवं वक्ककरे स पुशो ॥ ३ ॥ अन्नाय उंचं चरइ विसु, जवणच्या समुयाणं च निचं; अलक्ष्यं नोपरिदेवएद्या, बढुं न विकब स पुशो ॥४॥ संथार सिक्षासण लत्तपाणे, अप्पिया अश् लानेवि संते; जो एव मप्पाण नितोसएका, संतोस पाहंन रए स पुको ॥ ५॥ सक्का सहेळं आसाए कंटया, अमया उबहयानरेणं; अणासए जो उ सहेश कंटए, वश्मए कन्न सरे स पुजो ॥६॥ मुदुत्त पुरका उ हवंति कंटया, अजमया तेवि तल सुनचरा; वाया कुरुत्ताणि पुरुषराणि, वराणु बंधाणि महब्जयाणि ॥७॥समावयंतावयणा निघाया; कन्नंगया उम्मणियं जणंति; धम्मोत्तिकिच्चा परमग्ग सूरे, जिइंदिए जो सहर सपुको ॥७॥ अवन्नवायं च परं मुहस्स, पच्चरकल पमिणीयंच

Loading...

Page Navigation
1 ... 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60