Book Title: Dasvaikalik Sutra Mool Path
Author(s): Gyansundar
Publisher: Nathmalji Moolchandji Shah

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Page 44
________________ (३०) णुसासयंति, तेहं गुरु सययं पूययामि ॥ १३ ॥ जहा निसंते तव निच्चमाली, पनास केवल जारहंतु; एवायरिज सुय सील बुधिए, विरायश् सुरमसेव इंदो ॥ १५ ॥ जहा ससी कोमुश् जोग जुत्तो, नरकत्त तारागण परिवुमऽप्पा; खे सोहश् विमले अन्जमुक्के; एवं गण। सोह लिख्खूमद्ये ॥ १५॥महागरा आयरिया महेसी, समाहिं जोगे सुयसील बुधिए; संपावित काम अणुत्तराई, बाराहए तोस धम्मकामी ॥ १६ ॥ सोच्चाण मेहावी सुनासियाई सुस्सुसए आयरियमप्पमत्तो; आराहश्त्ताण गुणे अणेगे, से पावश् सिद्धि मणुत्तरं त्तिवेमि ॥ १७ ॥ इति विणयसमाहीद्ययणं पढमं उद्देसो समत्तो ॥१॥ (काव्यम्.) ___ मूलाल रकंधप्पनवो उमस्स, खंधान पला समुवेंति साहा; साह प्पसाहा विरुहंति पत्ता, तज से पुप्पं च फल रसोय ॥१॥ (अनुष्टुबूवृत्तम् ) एवं धम्मस्स, विण, मूलं परमो से मोरको; जेण कित्तिं सुयं सिग्धं, निस्सेसं चालिगबई ॥२॥ जे य चंमे मिए थछे मुवाइ नियमी सढे; वुश से अविणीयप्पा, कसोयं गयं जहा ॥३॥ विणयंपि जो नवाएणं जोइन कुप्पश् नरो; दिवं सो सिरि मिचंति, दंमेणं पमिसेहए ॥ ४ ॥ तहेव अविणीयप्पा, जववक्षा हया गया; दीसंति मुहमेहंता, आनिलगमुवचीया ॥ ५॥ तदेव सुविणीयप्पा, उववद्या हया गया; दीसंति सुहमेहंता, इढिपत्ता महायसा ॥६॥ तहेव अविणीयप्पालोगेसि नर नारि; दीसंति हमेहंता, बायाते विगलिं, दिया

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