Book Title: Dasvaikalik Sutra Mool Path
Author(s): Gyansundar
Publisher: Nathmalji Moolchandji Shah
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( ३७ )
त्ति नच्चा; हीलंति मिळं, पविझमाणा करंति आसायण ते गुरुणं ॥ २ ॥ पगइए मंदावि जवंतिएगे, महरावि य जे सुयबुद्धो ववेया; यार मंता गुण सुधि अपा, जेही लिया सिहिरिव जासकुद्या ॥ ३ ॥ जेयावि नागं महरंति नच्चा, आसायए सेहिया हो; वायरियंऽपि हु हीलयं तो, नियचर जाइ पहं खु मंदो ॥ ४ ॥ श्रसी विसो वावि परं सुरुहो, किं जीव नासा परंतु कुशा; आयरिय पाया पुण अप्पसन्ना, अबोहियासाय न मोरको ॥ ए ॥ जो पावगंजलिय मवकमेधा सी विसंवावि कोवएद्या; जो वा विसं खाय जीवी यही, एसोवमासायण्या गुरुणं ॥ ६ ॥ सिया हु से पावए नोझा, विसो वा कुविऊ न नरके, सिया विसं हालहलं नमारे, नयावि मोरको गुरु हीलगाए || ७ || जो पवयं सिरसा जितु मिले, सुत्तंव सीहं परिबोहएद्या; जो वा दए सत्ति गे पहारं, एसो वमासायण्या गुरुणं ॥ ८ ॥ सिया दुसी से गिरंपि जिंदे, सिया हु सीहो कुवित न नरेक, सिया नजिंदेशव सत्तिग्गं, नयावि मोरको; गुरुही लगाए || || आयरिय पाया पन्ना बोहियासयण नलिमोरको; तम्हा अणावाह सुहा जिकंखी, गुरुप्प सायानिमुहो रमेझा ॥ १० ॥ जहाहियग्गी जलणं नमसे, नाणादुइ मंतपयानिमित्तं; एवायरियं नवचिएझा; अणंतनाणो वगर्जवितो ॥ ११ ॥ जस्संतिए धम्मप याई सिखे, तस्संsतिए विणइयं पटंजे; सक्कारए सिरसा पंजली, काय गिराजो मासाय निच्चं ॥ १२ ॥ लझा दया संजम बंजच्चेरं, कल्लाए नागीस्स विसोही घाणं, जे मे गुरु सययं -

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