Book Title: Dasvaikalik Sutra Mool Path
Author(s): Gyansundar
Publisher: Nathmalji Moolchandji Shah

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Page 41
________________ (३५) . (अनुष्टुब्वृत्तम् ) ... निइंच न बहु मन्नेद्या, सप्पहासं विवद्यए; मिहो कहाहिं नरमे, सद्यायंमि रज सया ॥४२॥ जोगं च समण धम्ममि, जुंजे अनसो धुवं; जुत्तोय समण धम्ममि अहं वह अणुत्तरं ॥ ४३ ॥ इह लोग पारत्त हियं, जेणं गन्नई सुग्गई बहु स्सुयं पङ्गुवा सिधा, पुछेद्यऽव विणिचियं ॥ ४ ॥ हवं पायं च कायंच, पणिहाय जिइंदिए; अबीण गुत्तो निसिए, सगासे गुरुणो मुणी ॥ ४५ ॥ नपरकत नपुर, नेवकिच्चाण पिछ; नयनरं समासेद्या चिठेशा गुरुणंऽत्तिए ॥ ४६॥ अपुचि नजासेद्या, नासमाणस्स अंतरा; पिलि मंसं नखाएद्या, माया मोसं विवाए ॥ ४५ ॥ अपत्तियं जेण सिया, आसु कुप्पेद्य वा परो, सव्वसो तं ननासेद्या, जासं अहिय गामिणि ॥४॥ दि मियं असंदिलं, पमिपुन्नं वियं, जियं, अयं पिर मणु विगं, जासं निसिर अत्तवं ॥ ४ए ॥ आयार पन्नति धरं दिहिवायमऽहिद्यगं, वयं विखलियं नच्चा, न तं उवहसे मुणी ॥१०॥ नरकत्तं सुमिणं जोगं, निमित्तं मंत्त लेसद्य गिहिणो तं न श्रा श्के, नूयाऽहिगरणं पयं ॥५१॥ अन्न पगलं लयणं, नएछ सयणासणं; उच्चारजूमि संपन्नं, इचि पसु विवक्षियं ॥५२॥ विवित्ताय नवे सिद्या, नारीणं नलवे कह; गिहि संथवं निकुशा, कुझा साहूहिं संथवं ॥ ३॥ जहा कुकुर पोयस्स, निच्चं कुललन नयएवं ख्कु बंजयारिस्स, श्वी विग्गह नयं निच्च कुललना नया एव ॥ ५५ ॥ चित्तनितिं न निशाए, नारिं वा सु अलंकियं जरकर पिव दणं, दिहिं पनि समाहरे ॥ ५५ ॥ हन्छ पाय पमिन्निन्नं

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