Book Title: Dasvaikalik Sutra Mool Path
Author(s): Gyansundar
Publisher: Nathmalji Moolchandji Shah

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Page 39
________________ (३३) पासेश विविहं जगं ॥ १५ ॥ अच् सुहमाई पेहाए, जाइ जाणितु संजए; दया हिगारी नूएसु, आस चिक सएहिं वा ॥१३॥ कयराई अच् सुहमाई, जाई पुजेद्य संजए; माई ताई मेहावी, आश्केझ वियरकणो ॥ १४ ॥ सिणेहिं पुप्फ सुहुमं च, पाणुतिंग तहे वय; पणगं बीयं हरियंच, अंमसुहमं च अध्मं ॥१५॥ एवमेयाणि जाणित्ता, सब नावे ण संजए; अप्पमत्तो जश निच्चं, सबिंदिय समाहिए ॥ १६॥धुवंच पमिलेहेंशा; जोगसा पाय कंबलं; सेद्य मुच्चार नूमिंच, संथारं अवासण ॥१७॥ उच्चारं पासवणं, खेल सिंघाण जट्वियं, फासुयं पहिले हिद्या, परिक्षावेद्य संजए ॥ १७ ॥ पविसितु परागारं, पाणमा जोयणस्स वा; जयं चि मियं नासे, न य रूवेसु मणं करे ॥ १५॥ बहु सुणेहिं कन्नेहिं, वहु श्बीहिं पिच न य दिलं सुयं सर्व, निख्खू अरकाऊमरिहर ॥२०॥ सुई वा जश् वादिळं, नलवेजो वघाश् यं; नय केण जवाएणं, गिहि जोगं समायरे ॥१॥ निघणं रस निजुढं, लद्दगं पावगंतिवा; पुको वावि अपुछो वा, लानाऽलानं न निदिसे ॥ २२ ॥ नय नोयणंमि गियो, चरे उद्वं अयंपिरो; अफासुयं न तुंझेझा, किय मुद्देसिया हकं ॥ २३ ॥ संनिहं च नकुवेद्या, अणुमायंपि संजए; मुहाजीवी असंबुडो, हविश जग निस्सिए ॥ २४ ॥ लुहवित्तीसु संतु, अप्पिन्चे सुहरे सिया; आसुरुत्तं नगन्छेया, सुच्चाणं जिण सासणं ॥२५॥ कन्नं सोरकेहिं सद्देहिं, पेमेनानिनिवेसए; दारुणं कक्कसं फासं, काएण अहियासए ॥२६॥ ख्खुहं पिवासं उसेचं, सी उन्हें अरश् नयं; अहियासे अबहिर्ड, देहपुरकं महा फलं ॥ २७ ॥ दश०३

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