Book Title: Dasvaikalik Sutra Mool Path
Author(s): Gyansundar
Publisher: Nathmalji Moolchandji Shah
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(३१) अप्पग्घे वा महग्घेवा, करवा विकए वाविः पणिय समुप्पन्ने अणवशं वियागरे ॥४६॥ तहेवासंजयं धीरो, आसएहिं करेहिं वा; सयं चि वया हित्ति, नेवं नासेद्य पन्नवं ॥४७॥ वहवे श्मे असाहु, लोए वुच्चंति साहुणो; नलवे असाहू साहूति, साहु साहूत्ति पालवे ॥ ॥ नाण दसण संपन्नं, संजमे य तवेरय; एवं गुणसमानत्तं, संजय साहू मालवे ॥ ए॥ देवाणं मणुयाएंच, तिरियाणंच बुग्गहे; अमुयाणं जन होउ, मा वा होउत्ति नोवए ॥ ५० ॥ वाउ उंच सी उन्हें, खेम धायं सिवंति वा; कयाणि दुज एयाणि, मा वा होउत्ति नोवए ॥५१॥
(काव्यम्.) तहेव मेहं व नहंच माणवं, नदेवदेवेत्ति गिरं वएशा; समुचिए उन्नए वा पलए, वएश वा कुछ वलाहएत्ति ॥ ५५ ॥
(अनुष्टुब्वृत्तम् ) ___ अंतलिरकेत्तिणं बुया, गुशाणु चरियंत्तिया; रिधिमंतं नरं दिस्स, रिधिमंतंति आलवे ॥ १३ ॥
(काव्यम्.) तहेव सावशाणु मोयणी गिरा, उहारिणी जाय परोवघायणी; से कोह लोह जय हास माणवा, नहासमाणोवि गिरं वएद्या ॥ ५५ ॥ सुबक्क सुधिं समुपेहिया मुणी, गिरं च बु परिवाए सया; मियं अबु अणुवीय नासए, सयाण मझे खहई पसंसणं ॥ ५५ ॥ लासाइ दोसेय गुणे य जाणिया, तीसेय मु परिवद्यए सया; बसु संजए सामिणिए सया जए, वएश बुझे हियमाणु लोमियं ॥५६॥ परिस्क लासी सुसमाहि इंदिए,

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