Book Title: Dasvaikalik Sutra Mool Path
Author(s): Gyansundar
Publisher: Nathmalji Moolchandji Shah

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Page 33
________________ (२७) गोयरग्ग पविन्स्स, निसेझा जस्स कप्पड़, मेरिस मऽणायारं, आवशश् अबोहियं ॥ ५७ ॥ विवत्ती बंजचेरस्स, पाणाणं च वहेवहो, वणीमग्ग पमिघाउ, पमि कोहो आगारिणं ॥ ५ ॥ अगुत्ती बंजचेरस्स, इविनवावी संकणं, कुसीलं वढ्ढणं हाएं, पुरउ परिवाए ॥ एए॥ तिम्हमऽन्नयरागस्स, निसेका जस्स कप्पर, जराए अनिनुयस्स, वाहियस्स तवस्सिणो ॥ ६ ॥ वाहिउँ वा अरोगी वा, सिणाणं जो न पचए, वुक्कतो होश आयारो, जढो हव संजमो ॥ ६१ ॥ संतिमे सुदुमा पाणा, घसासु निलगासूय, जे य निख्खु सिणायंति, वियमेणू प्पलावए ॥ ६ ॥ तम्हा ते न सिणायंति, सीएण नसिणेण वा; जावजीव वयं घोरं, असिणाणं महिगिा . ॥ ६३ ॥ सिणाणं अवा ककं, लोई पनमगाणिय; गायसुवट्टणाए, नायरंति कयाइवि ॥६५॥ निगणस्स वाविमुंमरस, दीह रोम नहंसिणो मे हुणा जवसंतस्स, किंविनूसाए कारियं ॥ ६५ ॥ विनूसा वत्तियं निख्खु, कम्मं बंधश् चिक्कणं; संसार सायरे घोरे, जेणं पस श्रुत्तरे ॥ ६६ ॥ विजूसा वत्तियं चेयं, बुझा मन्नंति तारिस; सावधंबहुलं चेयं, नेयं ताहिं सेवीयं ॥ ६७ ॥ (काव्यम्.) खवंति अप्पाण ममोह दंसितो, तवेरया संजम अशवे गुणो, धुणांति पावाइं, पूरे कमाई, नवाई पावाइं नते करेति.॥६॥ स नवसंता अममा अकिंचणा, सविज्ञ विशाणुगया जसंसिणो जनप्पसन्ने विमलेव चंदिमा, सिधि बिमाणाई उति ताणो त्तिवेमि ॥ ६ए ॥ इति धम्मचकामऽयणं सम्मत्तं ॥ ७० ॥

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