Book Title: Dasvaikalik Sutra Mool Path
Author(s): Gyansundar
Publisher: Nathmalji Moolchandji Shah

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Page 32
________________ ( २६ ) तिविदेश करण जोएणं, संजया सुसमाहिया ॥४१॥ वएस्स इकार्य विहिंसंतो, हिंसइड तय स्सिए; तसेय विविहे पाणे, चख्खुसे य अख्खु ॥ ४२॥ तम्हा एवं वियाणित्ता, दोसं डुग्गर वढ्ढणं, वणस्सइकार्य समारंनं, जावजीवाए वझए ||४३|| तस्स कायं नहिंसंति, मासा वयसा कायसाः तिविहेणं करण जोएण, संजया सूसमाहिया ॥ ४४ ॥ तस्कायं विहिंसंतो, हिंसइ उ तयस्सिए तस्य विविदे पाणे, चख्खु यसे ॥ ४५ ॥ तम्हा एवं वियाणित्ता, दोसं डुग्गर वढ्ढणं; तस्सकायं समारंभं, जावजीवाए वऊए ॥ ४६ ॥ जाई चत्तारि जुधाई, असणाहारमाइणि; तारंतु विवतो, संजमं श्रणुपालए ॥ ४७ ॥ पिंक सिद्यं च व च च पायमेवयं; अकप्पीयं न द्या, परिगाहिश कप्पियं ॥ ४० ॥ जे नियागं ममायं ति, की मुद्देसिहरु; वहते समजाति, यत्तं महेसिणाः ॥ ४५ ॥ तम्हा सण पाणाई. की यमुद्दे सियाह वयंति च्यि मप्पणो, निग्गंथा धम्म जीविणो ॥ ५० ॥ कंसेसू कंस पाएसु, कुंरुमोसु वा पुणो; जंती असण पाणाई, आयार परिजस्स ॥ ५१ ॥ सीदगं समारंजे, मत्तधोवण कुणे; जाइछन्नंति नूयाई, दिघो त संमो ॥ २२ ॥ पञ्चा कम्मं पुरेकम्मं, सिया तत्र न कप्पर; एयम न जुऊंति, निग्गंथा गिहि जायां ॥ ५३ ॥ आसंदी पलियकेसु, मंच मासालएसु वा अणयारिय मझाएं, सतु सरंतु वा || ४ || नासंदी पलियंकेसु, न निसिझाए न पीढए; निग्गंथापमिलेहाए, बुद्धवुत्तम हिगा || १५ || गंजीरं विजया एए, पाणा डुप मिलेगा; आसंदी पलियं केयं, एयमऽहं विवधिया ||२६||

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