Book Title: Dasvaikalik Sutra Mool Path
Author(s): Gyansundar
Publisher: Nathmalji Moolchandji Shah
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(२३) वनइ एल मूयर्ग; नरग तिरिरकजोणिवा, बोही जन्नसु मुसहा ॥४०॥ एयंच दोसदधुणं, नाय पुत्तेण नासियं; अणु मायं पि मेहावी, माया मोसं विवधए । ४ए।
. (काव्यम्.) सिरिकऊण निरकेसण सोहिं. संजयाणं घुघाण सगासे; तळ जिस्कू सुप्पिणि हिंदिए, तिव्व बध गुणवं विहरेद्यासित्तिबेमि ॥ ५० ॥ इति पिंमेसणाए वीउनदेसो मिसणाए पंचमंड घयणं समत्तं ॥५॥
नाण दसण संपन्नं, संजमेण तवे रयं; गणिमागम्म संपनं, उसाणंमि समोसढं ॥ १ ॥रायाणो राय मच्चाय; माहणा अञ्च खत्तिया; पुखंति निहुय अप्पाणो. कहने आयार गोयरो ॥॥ तेसिं सो निहुल दंतो, सब नुय सुहावहो; सिरकएसु समा उत्तो, आश्कर वियरकणो. ॥३॥ हंदि धम्मच कामाणं, निग्गंडाणं सुणेह मे; आयार गोयरं जीमं, सयलं पुरहिन्यि ॥४॥ नन्नछ एरिसंवुत्तं, जं लोए परमञ्च्चरं; विउलं आण लाइस, नजूयं ननविस्स ॥ ५॥ स ख्खुमुग वियत्ताणं, वाहियाणं च जे गुणा; अखंग फुमिया कायवा, तं सुणेह जहा तहा ॥ ६॥ दस अच्य हाणा, जाई बालो वरद्य तब अनयरे ठाणे, निग्गंथा ता नस्सइ ॥ ७॥ वयनकंकायकं, अकप्पो गिहिलायणं; पलियंक निसिधा य, सिणाणंसोल वद्य. एणं ॥ ॥ तचिमं पढमंठाणं, महावीरेण देसियं; अहिंसा निजणा दिन, सब जूएसुसंजमो. ॥ए॥ जावंति लोए पाणा, तस्सा

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