Book Title: Dasvaikalik Sutra Mool Path
Author(s): Gyansundar
Publisher: Nathmalji Moolchandji Shah
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( 22 )
लुको, बहु पावं पकुव; उत्तोसन य सो होइ, निवाणं च न गन् ॥ ३२ ॥ सिया एगइन लऊं, विविहं पाण जोय, जगं जद्दगं जोच्चा, विवन्नं विरसमाहरे ||३३|| जाणंतु ता इमे समा, यी अयं मुणी, संतुको सेवइ पंतं, लुहवित्ति सुतोस ॥ ३४ ॥ पूयट्ठा जसो कामी, माण समाण कामए, बहु पसवइ पावं, माया सच कुबइ ॥ ३५ ॥ सुरं वा मेरगं वावि, अन्नं वा मद्यगं रसं, ससरकं न पिवे निख्खु, जसं साररक मप्पो ॥ ३६ ॥ पियए एगइन तेलो, नमे कोइ वियाई, तस्स पसह दोसाई, नियमिंच सुणेह मे ॥ ३७ ॥ वढ्ढ सोंढिया तस्स, माया मोसंच निख्खुणो, अयसोय अनिवाणं, सययं च साहुया ॥३८॥ निच्चुविग्गो जहा तेणो, अत्तकम्मेहिं डुम्मइ, तारिसोमरणं तेवि, नाराह संवरं ॥ ३९ ॥ श्रयरिए नाराहे, समणे वि तारिसो, गिवाविणं गरदंति, जेए जाएंति तारिसं ॥ ४० ॥ एवंतु
गुप्पेही, गुणाणं च विवऊन तारिसो मरणतेवि, नारादेश संवरं ॥ ४१ ॥ तवकुव्वइ मेहावी, पणीयं वद्यए रसं, मऊष्पमाय विरज, तवस्सी इ उक्कसो ॥४२॥ तस्स पसह कलाएं, छाग साहू पूयं विलंब संजुत्तं, कित्तइसं सुणेहमेः ॥ ४३ ॥ एवं तु गुप्पेही, गुणा च विवऊर्ज, तारिसी मरणं तेवि आराहे संवरं ॥ ४४ ॥ यरिए आराहे समणेवि तारिसो गिबाविण पूयंति जेण जाणंति तारिसं ॥ ४५ ॥ तव तेणे वय तेणे, रुव तेणेय जेनरे; आयार जाव तेणेय, कुव्व देव किविसं ॥ ४६ ॥ लयवि देवत्तं ववन्नो देव किव्विसे, तहवि सेन याणा, कि किच्चा इमं फलं ॥ ६७ ॥ तत्तोवि से चत्ताणं,

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