Book Title: Dasvaikalik Sutra Mool Path
Author(s): Gyansundar
Publisher: Nathmalji Moolchandji Shah

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Page 26
________________ (२०) पमिग्गहं संलिहित्ताणं, लेवमायाए संजए; सुगंधं वा, सुगंधं वा, सबंठेके न ढुए ॥ १॥ सिझा निसीहियाए, समा. वन्नोय गोयरे; आयावश्का लोच्चाणं, जर तेण न संथरे ॥२॥ तउ कारण समुप्पन्ने, लत्त पाणं गवेसए; विहिणा पुवउत्तेणं श्मेणं उत्तरेणय ॥३॥ कालेण निकमे लिख्कु, कालेण य पमिक्कमे अकालंच विबधित्ता काले काल समायरे ॥४॥ अकाले चरिसिनिख्खु, कालं न पमिलेहिसि; अप्पाणंच किला. मेसि, संनिवेसंच गरहसि ॥ ५॥ सश्काले चरेनिख्खु, कुशा पुरिसकारियं अलानोत्ति नसीएला; तवोत्ति अहियासह ॥६॥ तहावुच्चावया पाणा, लत्ताए समागया; तं उफुयं नगमेशा जय मेव परक्कमे ॥ ७ ॥ गोयरग्ग पवितोय, न निसीएस कन्नई, कहं च न पबंधेशा, चिन्त्तिाणव सजए॥॥॥अग्गलं फलिहं दारं, कवा वावि संजए, अवलंबिया न चिठेशा गोयरग्ग गन मुणी ॥ ए॥ समणं माहणं वावि, किविणं वा वणीमगं; उवसंकमंतं नत्ता, पाणाएव संजए ॥ १० ॥ तं अश्कमितु न पविसे; नचिके चख्कूगोयरे; एगंतमवक्कमित्ता, तब चिच्चि संजए ॥ ११॥ वणीमग्गस्स वा तस्स दायगस्सुनयस वा; अप्पत्तियं सिया हुशा, बहुत्तं पवयणस्स वा ॥ १२ ॥ पमिसेहिएव दिन्नेवा, त तम्मि नियत्तिए, जवसंकमिश नत्तहा, पाणा एव संजा ए ॥१३॥ चप्पलं पनमं वावि, कुमुयंवा मगदंतियं, अन्नं वा पुप्फ सचित्तं, तं च संलुचिया दए ॥१४॥ तं नवे लत्त पाणुंतु, संजयाणं अकप्पियं, दितियं पमियाइरके, न मे कप्प३ तारिसं ॥ १५ ॥ उप्पलं पमं वावि, कुमुयंवा

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