Book Title: Dasvaikalik Sutra Mool Path
Author(s): Gyansundar
Publisher: Nathmalji Moolchandji Shah

View full book text
Previous | Next

Page 24
________________ (१७) बहु कंट्टयं; अचियं तिंऽयं बिलं, उखु खं व संबिलं ॥ ७३ ॥ अप्पे सिया नोयणजाए,बहुउशिय धम्मिए; दितियं पमिश्यारके, न मे कप्पश् तारिसं ॥ १४ ॥ तहेवुच्चावयं पाणं; अवा वार धोयणं; संसेश्मं चाउलोदगं; अहुणा धोयं विवशए ॥ ७ ॥ जंजाणेश चिरा धोयं; मइए दंसणेण वा; परिपुचिऊण सुच्चावा; जं च निस्सकियं नवे ॥ ७६ ॥ अजीवं परिणयं नच्चा, पमिगाहिश संजए; अह संकिए नवेद्या; आसाश्त्ताण रोवए ॥ १७॥ श्रोवमासायणपए,हत्वगंमि दलाहि मे; मा मे अचंविलं पूर्व, नालं तिन्हं विणित्तए॥७॥तं च अचंबिलं पूइं,नालं तिन्हं विणित्तए; दितियं पमियाइकेन मे कप्प३ तारिसं ॥७॥ तं च दुश अकामेणं; विमणेण पमिनियं; तं अप्पणा नपिवे; नोवि अन्नस्स दावए ॥ ७० ॥ एगंतमवक्कमित्ता, अचित्तं पमिलेहिया; जयं परिठविशा, परिप्प पमिक्कमे ॥ १॥ सियाय गोयरग्गगठ, श्लेशा परिलोत्तुयं; कोगं नित्तिमूलंवा, पमिले हित्ताण फासुयं ॥२॥ अणन्नवितु मेहावी, पमिचिन्नंमि संवुझे; हबगं संपमशित्ता तब जूशिश संजए ॥ ३ ॥ तब से मुंद्यमाणस्स, अध्यिं कंटउ सिया, तण कठसक्करं वावि, अन्नं वावि तहाविहं ॥४॥ तं उखि वित्तु ननिरकेवे, आसएण नटुए; हवेण तं गहेकणं, एगंतमवक्कमे ॥ ५ ॥ एगंतमवक्कमित्ता, अचित्तं पमिलेहिया; जयं परिवविद्या, परिप्प पमिक्कमे ॥ ६॥ सियायनिरकु श्वेद्या, सिद्यमागम्म नोत्तुयं; सपिंक पायमागम्म, उमुयं पमिलेहया ॥ ७ ॥ विणएणं पविसित्ता, सगासे गुरुणोमुणी; इरियावहीयमायाय, आगज्य पमिक्कमे ॥ ॥ आलोश्त्ताण

Loading...

Page Navigation
1 ... 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60