Book Title: Dasvaikalik Sutra Mool Path
Author(s): Gyansundar
Publisher: Nathmalji Moolchandji Shah

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Page 21
________________ (१५) पाण जोय; कप्पियं न विझा, परिगाहिश कप्पियं ॥ २ ॥ य हारती सिया त, परिसामिझ जोयणं; दिंतिय परियारके, न मेकप तारिसं ॥ २८ ॥ समद्दमाणी पाणाणि, बीयाणिह रियाणिय; संजमं करिं नच्चा, तारिसं परिवद्यए ॥ २९ ॥ साहद्दु निरिक वित्ताएं, सचित्तं घट्टियाणिय; तहेव समऽछाए; उदगं संपपोलिया ॥ ३० ॥ श्रगाहइत्ता चलत्ता, आहार पाण जोयं दित्तियं परियारके, नमे कप्पर तारिसं ॥ ३१ ॥ पुरेकम्मे हो, दविए जायषेण वा दितियं परियारके, न मे कप्पर तारिसं ॥ ३२ ॥ एवं उदउले ससद्धेि, ससररके मट्टियाउसे; हरियाले हिंगुलुए, मणोसिला अंजणे लोणे ॥ ३३ ॥ गेरु वन्निय सेढिय, सोर हिय पिठ कुकुसकए य, उक्कमsसंसठे, ससट्टे चेव बोधवे ॥३४॥ संस होए, दचिए जाय वा दिशमाणं नश्लेशा, पचाकम्मं जहिं नवे ॥ ३५ ॥ संस , दविए जाय वा, दिझमाणं परिलेशा, जंतळे सयिं वे ॥ २६ ॥ दोन्हतु झुंज माणाएं, एगोतळ निमंत; दिशमानविद्या, छंद से मिलेहए || ३७ ॥ दोन्हंतु मुंजमाणाएं, दोवित निमंत; दिद्यमाणंपमिद्या, जं तले सहियं नवे, ॥ ३८ ॥ गुत्रिणी उवन्न, विविहं पाए जोयणं; मुंद्यमाणं विवशेशा, नुत्तसे पहिए ॥ ३९ ॥ सीयाय समाए, गुणि कालमासीणी; उहिया वा निसीएझा, निसंना वा पुणो ॥ ४० ॥ तं जवे जत्त पाएं तु, संजयाण कप्पियं दितिपं परियाइरके, न मे कप्पइ तारिसं ॥ ४१ ॥ थागंपिझेमाणीय, दारगं वा कुमारियं; तंनिखिवितु रोयंतं, आहारेपाण

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