Book Title: Dashvaikalik Sutram
Author(s): Punyakiritivijay
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
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________________ श्रीदशवैकालिक श्रीहारिक वृत्तियुतम् / / 313 // एव रात्रावेषणीयचरणस्येति सूत्रार्थः / / 23 // एवं रात्रौ भोजने दोषमभिधायाधुना ग्रहणगतमाह-'उदउल्लं'ति सूत्रम्, उदका षष्ठमध्ययन पूर्ववदेकग्रहणे तज्जातीयग्रहणात्सस्निग्धादिपरिग्रहः, तथा बीजसंसक्तं बीजैः संसक्तं- मिश्रम्, ओदनादीति गम्यते, अथवा महाचारकथा, सूत्रम् बीजानि पृथग्भूतान्येव, संसक्तं चारनालाद्यपरेणेति, तथा प्राणिनः संपातिमप्रभृतयो निपतिता मह्यं पृथिव्यां संभवन्ति, ननु |26-31 दिवाप्येतत्संभवत्येव?, सत्यम्, किंतु परलोकभीरुश्चक्षुषा पश्यन् दिवा तान्युदकाादीनि विवर्जयेत्, रात्रौ तु तत्र कथं चरति कायषट्के पृथिवीसंयमानुपरोधेन?, असंभव एव शुद्धचरणस्येति सूत्रार्थः // 24 // उपसंहरन्नाह-एअंच' त्ति सूत्रम्, एतं च अनन्तरोदितं कायाप्काय प्राणिहिंसारूपमन्यं चात्मविराधनादिलक्षणंदोषं दृष्टा मतिचक्षुषा ज्ञातपुत्रेण भगवता भाषितं उक्तं सर्वाहारं चतुर्विधमप्यशनादि-3 समारम्भलक्षणमाश्रित्य न भुञ्जते निर्ग्रन्थाः साधवो रात्रिभोजनमिति सूत्रार्थः // 25 // वर्जनविधिः। पुढविकायं न हिंसंति, मणसा वयसा कायसा। तिविहेणं करणजोएणं, संजया सुसमाहिआ॥सूत्रम् 26 // पुढविकायं विहिंसंतो, हिंसई उ तयस्सिए। तसे अविविहे पाणे, चक्खुसे अअचक्खुसे॥ सूत्रम् 27 // तम्हा एअंविआणित्ता, दोसंदुग्गइवडणं / पुढविकायसमारंभ, जावजीवाइ वजए।सूत्रम् 28 // आउकायं न हिंसंति, मणसा वयसा कायसा।तिविहेण करणजोएण, संजया सुसमाहिआ॥सूत्रम् 29 // आउकायं विहिंसंतो, हिंसई उतयस्सिए / तसे अविविहे पाणे, चक्खुसे अअचक्खुसे। सूत्रम् 30 // तम्हाएअंविआणित्ता, दोसंदुग्गइवडणं / आउकायसमारंभंजावजीवाइ वज्जए।सूत्रम् 31 // // 313 // उक्तं व्रतषट्कम्, अधुना कायषट्कमुच्यते, तत्र पृथिवीकायमधिकृत्याह-'पुढवि'त्ति सूत्रम्, पृथ्वीकार्य न हिंसन्त्यालेखनादिना प्रकारेण मनसा वाचा कायेन, उपलक्षणमेतदत एवाह-त्रिविधेन करणयोगेन मनःप्रभृतिभिः करणादिरूपेण, केन हिंसन्तीत्याह

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