Book Title: Dashvaikalik Sutram
Author(s): Punyakiritivijay
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
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________________ श्रीदशवैकालिक श्रीहारि० वृत्तियुतम् // 390 // सूत्रम् पण्डितःअसंविभागीयत्र क्वचन लाभे न संविभागवान्।य इत्थंभूतोऽधमो नैव तस्य मोक्षः,सम्यग्दृष्टेश्चारित्रवत इत्थंविध नवममध्ययन संक्लेशाभावादितिसूत्रार्थः॥२२॥ विनयफलाभिधानेनोपसंहरन्नाह-निर्देश- आज्ञा तद्वर्तिनः पुनर्ये गुरूणां आचार्यादीनां विनयसमाधिः तृतीयोद्देशकः श्रुतार्थधर्मा इति प्राकृतशैल्या श्रुतधर्मार्था गीतार्था इत्यर्थः, विनये कर्तव्ये कोविदा-विपश्चितोय इत्थंभूतास्तीवा॑ ते महासत्त्वा ओघमेनं प्रत्यक्षोपलभ्यमानं संसारसमुद्रं दुरुत्तारं तीधैव तीा, चरमभवं केवलित्वं च प्राप्येति भावः, ततः क्षपयित्वा कर्म विनीतस्य निरवशेषं भवोपग्राहिसंज्ञितं गतिमुत्तमां सिद्ध्याख्यां गताः प्राप्ताः / इति ब्रवीमीति पूर्ववदिति सूत्रार्थः // 23 // द्वितीयोद्देशकः पूज्यत्वोसमाप्तः॥ पदर्शनम्। ॥नवमाध्ययने तृतीयोद्देशकः॥ आयरिअंअग्गिमिवाहिअग्गी, सुस्सूसमाणो पडिजागरिजा / आलोइअंइंगिअमेव नच्चा, जो छंदमाराहयईस पुनो।सूत्रम् 1 // आयारमट्ठा विणयं पउंजे, सुस्सूसमाणो परिगिज्झ वक्त्रं / जहोवइट्ठ अभिकंखमाणो, गुरुंतु नासाययई स पुजोसूत्रम् 2 // रायणिएसुविणयं पउंजे, डहराऽवि अजे परिआयजिट्ठा। नीअत्तणे वट्टइ सच्चवाई, उवायवं वक्ककरे स पुजो॥ सूत्रम् 3 // अन्नायउंछं चरई विसुद्धं, जवणट्ठया समुआणं च निच्चं। अल अंनो परिदेवइजा, लडुंन विकत्थईस पुजो॥सूत्रम् 4 // संथारसिज्जासणभत्तपाणे, अप्पिच्छया अइलाभेऽविसंते।जो एवमप्पाणभितोसइजा, संतोसपाहन्नरएस पुजो।सूत्रम् 5 // सक्का सहेउं आसाइ कंटया, अओमया उच्छहया नरेणं / अणासए जो उसहिज कंटए, वईमए कन्नसरे स पुज्जो।सूत्रम् 6 // 8 // 390 // मुहुत्तदुक्खा उहवंति कंटया, अओमया तेऽवितओ सुउद्धरा / वाया दुरुत्ताणि दुरुद्धराणि, वेराणुबंधीणि महन्भयाणि॥सूत्रम्॥

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