Book Title: Dakshina Path Ki Sadhna Yatra Author(s): Pratap J Tolia Publisher: Vardhaman Bharati International Foundation View full book textPage 9
________________ उनके प्रेम की रस्सी बँधी हुई है वे मुझे जिधर खींच कर ले जाते हैं उधर ही में चला जाता हूँ । शरणागत मुक्त पुरुष की भक्ति का आदर्श जैसा श्वान के हृदय में स्थापित मिलता है, वैसा अन्यत्र सम्भव नहीं । सत्य, अहिंसा और प्रेम की शक्ति अपार होती है । सब महात्मा इन्हीं की सिद्धि प्राप्त करने के लिये साधना करते रहते हैं । जिनको यह सिद्धि प्राप्त हो जाती है, वे जिन हो जाते हैं, इन्द्रियातीत भगवान हो जाते हैं, समग्र विश्व को वे पवित्र और पावन बना देते हैं । जैन महात्माओं ने भी इन क्षेत्रों में अद्भुत सिद्धि प्राप्त की । इसी सिद्धि की प्राप्ति के बाद अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से कहा था- नष्टो मोहः स्मृतिर्लब्धा त्वत्प्रसादात्सुरेश्वर - हे देवों के देव तुम्हारी ही कृपा से मेरा अज्ञान दूर हो गया । मुझे अपने अनन्त स्वरूप का स्मरण प्राप्त हो गया है । टोलियाजी ने अपनी साधना के इन पथ पर ऐसे जैन महात्माओं की चर्चा की है, जिनमें विश्व मैत्री स्थापित हो चुकी थी जो समग्र विश्व को प्रेममय और पवित्र बना सकते थे । ऐसे महात्माओं के स्मरण मात्र से मन पवित्र हो जाता है । इसी पावन स्मृति को शाश्वत धारा में स्थापित करने के लिये उन प्रात स्मरणीय आत्माओं के जीवन को अक्षर ब्रह्म को अर्पित कर ग्रन्थ का रूप दे दिया जाता है । टोलियाजी का यह सफल प्रयास अनुशीलन करने वालों का मन निर्मल बनाने की शक्ति धारण करता है । इस ग्रन्थ को अनन्त प्रणाम । - रामनिरंजन पाण्डेयPage Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50