Book Title: Dakshina Path Ki Sadhna Yatra
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Vardhaman Bharati International Foundation

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Page 24
________________ के साधना-स्थान में ही उसने पिछले जन्म में साधना की थी, इसका स्मरण हो आते ही रोने के बजाय वह खुशी से झूम उठा। लाख कोशिशों के बावजूद वह वहां से हटा नहीं । आश्रम की माताजी करुणावश उसे दूध पिलाने लगी। छोटे शिशु की तरह जब उसे सुलाकर, चम्मच से दूध दिया जाता, तभी वह पीता। फिर तो माताजी ने उसे अपने पास रख लिया । बडा होने के बाद भी वह माताजी के हाथ का खाना खाता और वह भी दिगंबर क्षुल्लक भद्रमुनिजी की तरह एक ही वक्त । किसी भ्रष्ट' योगी के ही ये लक्षण थे। आहार लेने के पश्चात् वह गुफामंदिर में बैठा रहता। 'आत्माराम', यह नाम उसे भद्रमुनिजी ने दिया है । उस नाम से पुकारने पर वह दौडा चला आता है, परंतु सबके वीच होते हुए भी वह असंग, एकाकी रहता है। उसकी अपलक, उदास आंखें गुफा के बाहर, सामने पहाडों की ओर कहीं दूर लगी रहती हैं। उसे देखते ही विचार आता है कि वह शायद मध्यान में, माती में लीन है। सामुदायिक ध्यान-भक्ति के समय वह भी ध्यानस्थ होकर बैठ जाता है एवं घंटों उसी मुद्रा में रहता है । उसके इन लक्षणों से सबको यही प्रतीति हुई है कि वह निश्चय ही पूर्व का कोई भ्रष्ट योगी साधु था एवं यहीं अब अपना निश्चित जीवन-काल व्यतीत कर रहा है ।

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