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आत्माराम की एक अजीब आदत है, बल्कि एक ऐसी समस्या है, एक ऐसी संवेदनपूर्ण पूर्व संस्कार-जनित चेष्टा है कि आश्रम में जब भी कोई अजैन व्यक्ति या साधक आता है तब वह उन्हें पहचान लेता है और उसके कपडे पकड़ कर खडा रहता है । वह न उसे काटता है और न किसी तरह से हानि पहुंचाता है, परन्तु जब तक कोई आश्रमवासी नहीं आता, तब तक उसे हटने नहीं देता। “बडे समूह में से भी वह जैनअजैन में भेद कैसे देख पाता है ?" यह एक ऐसा रहस्य है, जो सबके लिए आश्चर्य का विषय बन गया है। कारण ढूंढने पर पता चलता है कि पूर्व-जन्म में उसकी साधना में अजैनों ने कई प्रकार की बाधाएं डालीं थीं, अतः उसका वर्तन ऐसा हो गया है। कुछ भी हो, उसकी 'परखकर पकड़ लेने की चेष्टा' उसकी संस्कार-शक्ति की, एवं उसकी 'काटने की या हानि न करने की वृत्ति एवं जागृति' योगी दशा की प्रतीति कराती है। -
__बाह्य रूप चाहे कोई भी हो, एक जागृत आत्मा के संस्कार कभी नहीं बदलते । इससे यह भी सूचित होता है कि उसकी अब तक की साधना निरर्थक नहीं गई । साधना में देह का नहीं, बल्कि अंतर की स्थिति का महत्त्व होता हैयह उसके नाम (आत्माराम) एवं इस भूमि पर उसके साधक रूप में रहने से विदित होता है ।