Book Title: Dakshina Path Ki Sadhna Yatra
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Vardhaman Bharati International Foundation

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Page 27
________________ उन्हें आकर्षित करनेवाले ये साधक भक्त देहभान तक भूलकर भक्ति में लीन हैं । सबसे निराले हैं पवित्र ओजस से शोभायमान, पराभक्ति की मस्ती में झूमते, अधेड़ वय के ये सीधे-सादे, भोले-भाले माताजी । उनकी अखंड मस्ती देखने, उनका स्निग्ध अंतर-गान सुनने देवगण भी नीचे उतर आते हैं खूबी तो यह है कि उन्हें इसका पता या इसकी परवाह नहीं । देवतागण भले ही अदृश्य हों, परंतु उनकी उपस्थिति का आभास सभी को होता है। माताजी की भक्ति से आनंदित होते, अपने को धन्य मानते, ये देवतागण उन पर ढेर सारा सुगंधित 'वासक्षेप ' डालते हैं । उस पीले, अपार्थिव द्रव्य को वहां उपस्थित हर कोई देख सकता है, सूंघ सकता है नहीं, यह कोई अतिशयोक्तिपूर्ण परिकथा की 'कल्पना' नहीं है, अनुभव की जानेवाली 'हकीकत' है । आप इसे चमत्कार मानें तो यह शुद्ध भक्ति का चमत्कार है । किसी ने कहा है' जगत में चमत्कारों की कमी नहीं है, कमी है उन्हें देखनेवाली 'आंखों' की । अगर आपके पास 'दृष्टि' नहीं है तो दोष किसका ? एक सूफी फकीर भी कह गये हैं : .. "नूर उसका, जुहुर उसका, गर तुम न देखो तो कुसूर किसका ?" यह दृष्टि विशुद्ध भक्ति से प्राप्त होती है उसके द्वारा उस चैतन्य सत्ता की चमत्कृति का अनुभव हो पाता है । इसी के द्वारा आत्मा-परमात्मा के अंतर को पलभर में मिटाया जा सकता है । १८

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