Book Title: Dakshina Path Ki Sadhna Yatra
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Vardhaman Bharati International Foundation

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Page 31
________________ प्रस्फुटित हों तो वे अवश्य आयेंगे....... इस विचार से उल्लास बढ़ने लगा....... सितार के तार बजते रहे, अंतर में से स्वर निकलते रहे, अंतरात्मा ने उन पांच दिव्य आत्माओं को निमंत्रण दिया, आंखें बंद हुईं एवं बागेश्री के स्वरों में श्रीमद्जी कृत यह गीत ढल गया : "अपूर्व अवसर ऐसा आयेगा कभी ? कब होंगे हम बाह्यांतर निर्ग्रन्थ रे, सर्व संबंध का बंधन तीक्ष्ण छेद कर, कब विचरेंगे महत्पुरुष के पंथ रे ?" गीत में खंगारबापा सम्मिलित हुए .. उनके साथ सारा समूह भी गाने लगा... करताल एवं जंजीरा बजता रहा . भद्रमुनिजी के हाथ में खंजड़ी आ गई. . . 'शायद आत्माराम एवं माताजी भी डोल रहे थे ..... अद्भुत मस्ती थी वह... देहभान छूटने लगा, शरीर के साथ-साथ सितार के संग की प्रतीति भी हटने लगी .... एवं एक धन्य घड़ी में मैंने अनुभव किया- “मैं देह से भिन्न केवल आत्मस्वरूप हूँ। उसी में मेरा निवास है .. वही निज निकेतन है... मेरे इस निवास को सदा बनाये रखनेवाला अपूर्व अवसर कब आयेगा ?" यह भावदशा काफी समय तक जागी रही । मैंने उन पांच दिव्य आत्माओं का आभास भी पाया ... वे प्रसन्न हो मुझे आशीर्वाद दे रहे थे...... प्रफुल्लित, प्रमुदित, परितृप्त में करीब पौन घंटे तक २१ गाथाओं का 'अपूर्व अवसर' का पद गाता रहा।

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