Book Title: Dakshina Path Ki Sadhna Yatra
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Vardhaman Bharati International Foundation

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Page 36
________________ और अब तो महालयों के वे अवशेष भी मुखर होकर अपनी हार के साथ शाश्वत के संदेश को भी स्वीकार कर रहे थे ............ अविचलित थे वे सत्ताधीश, जो इस अनादि रहस्य को समझने में असमर्थ थे। ये घोष-प्रतिघोष शायद उन तक न पहुँच सके, परंतु रत्नकूट की गुफाओं मे गूंज रहे राजचंद्रजी के ज्ञान-गंभीर घोष तो वे सुन सकते हैं, अगर उनके कान इसे सुनना चाहें ! जड पदार्थों की क्षणभंगुरता के बारे में श्रीमद् कहते हैं : " छो खंड ना अधिराज जे चंडे करीने नीपज्या, ब्रह्मांड मां बलवान थईने भूप भारे ऊपज्या ; ए चतुर चक्री चालिया होता-नहोता होइने, जन जाणीए मन मानिए नव काळ मूक कोइने...! " जे राजनीति निपुणतामां न्यायवंता नीवड्या, अवळा कर्ये जेना बधा सबळा सदा पासांपड्या, ए भाग्यशाळी भागिया ते खटपटो सौ खोईने, जन जाणीए मन मानीए नव काळ मूके कोईने...!" ( — मोक्षमाला') गुफा में गूंज रही आनंदघनजी की आवाज़ भी यही कह रही है - " या पुद्गल का क्या विश्वासा , झूठा है सपने का वासा .... २७

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