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झूठा तन धन झूठा जोबन, झूठा लोक तमासा, आनंदघन कहे सब ही झूठे, साचा शिवपुरवासा।"
( आनंदघन पद्य रत्नावली ) और भूधर एवं कबीर के दोहे भी - " राजा राणा छत्रपति, हाथिन के असवा र मरना सबको एक दिन, अपनी अपनी बार ! "
(- भूधरदास : वारह भावना) " कबीर थोडा जीवणा, मांडे बहुत मंडाण । सब ही ऊभा मेलि गया, राव रंक सुलतान'
( – कबीर : कबीर ग्रंथावली) * सम्यग् साधना को समग्र दृष्टि :
शिवपुर-निजदेशकी ओर संकेत करते ये घोष-प्रतिघोष मेरे अंतरपट से टकरा कर स्थिर हो चुके थे – आश्रमभूमि पर मेरे प्रथम २४ घंटों के अंतर्गत ही ! इस अल्प समय में मैने कई अनुभव किये !! अनुभवी ज्ञानियों का संग पाकर मेरी विश्रृंखल साधना पुनः सुव्यबस्थित हुई मैं दुबारा मुनिजी के पास जाने के लोभ का संकरण न कर पाया।
पुनः उनके साथ महापुरुषों की जीवन - चर्या एवं उनकी सम्यग् साधना दृष्टि से संबंधित प्रश्न - चर्चा हुई । महायोगी आनंदघनजी विषयक मेरी जिज्ञासा के साथ इसका आरंभ हुआ। भगवान महावीर, तथागत बुद्ध, कलिकल सर्वज्ञ हेम
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