Book Title: Dakshina Path Ki Sadhna Yatra
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Vardhaman Bharati International Foundation

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Page 29
________________ * अवधूत की अंतर्गुफा में__उक्त मार्ग हर प्रकार की आत्यंतिकता से मुक्त, स्वात्मदर्शन से समन्वित, संतुलित एवं संवादपूर्ण साधनापथ है। 'निश्चय' एवं 'व्यवहार', आचार एवं विचार, साधना एवं चिंतन, भक्ति एवं ध्यान, ज्ञान एवं क्रिया की संधि करानेवाला है। श्रीमद् की 'आत्मसिद्धि शास्त्र' के ये शब्द इसे स्पष्ट करते हैं "निश्चयवाणी सांभळी साधन तजवां नोय, निश्चय राखी लक्षमां, साधन करवां सोय...” .. इस निश्चय, इस आत्मावस्था को लक्ष्य में रखते हुए, विविध साधना प्रकारों में जोड़ते हुए, सहजानंदधनजी इस साधना-पथ को प्रशस्त कर रहे हैं। उनकी खुद की साधना भी ऐसी ही संतुलित है। वीतराग-प्रणीत सम्यग् ज्ञान-दर्शन-चरित्र की विविध रत्नमयी उनकी यह साधना अब भी जारी है। उन्होंने ज्ञान और क्रिया की संधि की है; इसी में भक्ति का समावेश भी हो जाता है। उनकी ध्यान की भूमिका उच्च धरातल पर स्थित है। उनकी यह साधना निरंतर, सहज एवं समग्र रूप से चल रही है 'केवल निज स्वभाव- अखंड वर्ते ज्ञान......' आत्मावस्था का यह सहज स्वरूप उनका ध्रुव-बिंदु है । सर्वत्र उन्होंने श्रीमद् का अनुसरण किया है। इस साहजिक तपस्या एवं साधना हेतु वे कई नीति नियमों का पालन भी करते हैं। २०

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