Book Title: Dakshina Path Ki Sadhna Yatra
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Vardhaman Bharati International Foundation

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Page 30
________________ ये दिगंबर क्षुल्लक चौबीस घंटों में मात्र एकबार भोजन-पानी लेते हैं। उनके भोजन में शक्कर, तेल, मिर्च-मसाले, नमक का समावेश नहीं होता। कभी-कभी साधकों के मार्गदर्शन हेतु या सत्संग-स्वाध्याय, ध्यान-भक्ति की सामूहिक साधना हेतु वे बाहर आते हैं । अन्यथा वे अपनी गुफा में ही रहते हैं । शाम के सात बजे गुफा के द्वार बन्द हो जाते हैं- वे रत्नकूट की इस स्थूल अंतर्गुफा के साथ-साथ रत्नमय आत्म-स्वरूप की सूक्ष्म अंतर्गुफा में खो जाते हैं। मैंने उनकी बहिर्साधना देखी थी, बाह्य रूप का दर्शन किया था, परंतु इतने से संतोष न था... . मैं उनकी स्थूल अंतर्गुफा के साथ सूक्ष्म अंतर्साधना का परिचय पाना चाहता था। शरद-पूनम की उस चांदनी रात को गुफा मंदिर के सामुदाधिक भक्ति कार्यक्रम में मेरे सितार के तार झनझना रहे थे। इस दिव्य वातावरण का आनन्द उठाता हुआ मैं सितार के तारों के साथ-साथ अंतर के तार भी छेड रहा था... मस्त विदेही आनंदघनजी एवं श्रीमद् राजचंद्रजी के पद एक के बाद एक अंतर से निकले - "अवधू ! क्या मांगू गुनहीना ?" और "अब हम अमर भये न मरेंगे।" तभी भद्रमुनिजी बाहर आये एवं मेरे सामने बैठ गए। मैं प्रमुदित हुआ । मैंने सोचा-"उनकी तरह अंतर्लोक की आत्म गुफा में से मेरो परिचित, उपकारक एवं उपास्य पांच दिवंगत आत्माएं भी यहां उपस्थित हों तो मैं धन्य हो जाऊं। तब भक्ति का रंग और निखरेगा ...... अगर माताजी के से भाव अंतर से २१

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