________________
जिसे मानव प्रायः दुत्कार देता है, ऐसा एक 'कुत्ता' है वह । आप पूछेगे, भला कुत्ता भी साधक हो सकता है ? जवाब है, हां, हो सकता है । श्वेत-श्याम, उदास आखोंवाले और जगत से बेपरवाह लगते इस कुत्ते की चेष्टाओं को देख कर यह मानना ही पड़ता है उसके पूर्व-संस्कार की बात, पूर्वजन्म में न मानने वाले लोग शायद स्वीकार न करें। परन्तु जागृत आत्माओं के लिए देह का भेद महत्वहीन होता है- आत्मा की सत्ता में माननेवाले वाह्य आकारों को कब देखते हैं ? 'श्वाने च, श्वपाके च' जैसे सूत्र देने वाले 'गीता' जैसे धर्मग्रंथ इसी बात की ओर संकेत करते हैं- 'आत्मदर्शी सर्वभूतों को आत्मवत् देखते हैं।” परंतु - 'आत्मा' के अस्तित्व में शंका करनेवाले लोग, श्रीमद् राजचंद्र के शब्दों में
“आत्मानी शंका करे, आत्मा पोते आप,
शंकानो करनार ते, अचरज एह अमाप।" पूर्व संस्कार में विश्वास न रखें, तो राश्चर्य नहीं, 'आत्माराम' का पूर्व इतिहास एवं वर्तमान स्वभाव ऐसे लोगों को भी दुविधा में डाल देनेवाला है। _ 'रत्नकूट' के सामने, नदी के पार एक गांव में उसका जन्म हुआ था। जन्म के समय किसी धर्माचार्य ने कहा था कि यह योगभ्रष्ट हुआ पूर्व योगी है, एवं पिछले जन्म में रत्नकूट की एक गुफा में साधना कर रहा था।
इस बात की जांच करने किसी ने उसे कुछ वर्ष पूर्व इस आश्रम के गुफामंदिर के पास छोड दिया था। भद्रमुनि
१४