Book Title: Dakshina Path Ki Sadhna Yatra
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Vardhaman Bharati International Foundation

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Page 11
________________ मीलों के विस्तार में फैले पडे हैं - जिनालय, शिवालय, वैष्णव मंदिर और विजयनगर साम्राज्य के महालयों के खंडहर एवं ध्वंसावशेष । हम्पी तीर्थ के नीचे के भाग में खडे विरूपाक्ष शिवालय और उसके निकट की ऊँचाई पर स्थित चक्रकूट, "हेमकूट" के अनेक ध्वस्त जिनालयों के ऊपरी पूर्व भाग में फैली हुई हैं रत्नगर्भा वसुन्धरा की सुरम्य पर्वतिका "रत्नकूट" । रत्नकूट के उत्तरी भाग में नीचे कुछ चक्राकार बह रही है - स्थित प्रज्ञ-की-सी तीर्थ- सलिला तुंगभद्रा : सदासर्वदा, अविरत, बारह माह । बीसवें तीर्थंकर मुनिसुव्रत के समय से अनेक महापुरुषों एवं साधक जनों ने पौराणिक एवं प्रकृति-प्रलय के परिवर्तनों की स्मृति दिलाने वाले इस स्थान का पावन संस्पर्श किया है । दीर्घकाल व्यतीत होते हुए भी उनकी साधना के आंदोलन एवं अणु-परमाणु इस धरती और वायुमण्डल के कण-कण और स्थल स्थल में विद्यमान प्रतीत होते हैं । मुनिसुव्रत भगवान के शासन काल में अनेक विद्याधर - सम्मिलित थे- उनमें विद्या सिद्ध राजाओं में थे - रामायण प्रसिद्ध बाली सुग्रीव आदि। यह विद्याधर भूमि ही उनकी राजधानी थी । 'वानर द्वीप' अथवा 'किष्किन्धा नगरी' के नाम से वह पहचानी गई है । यहाँ के अनेक पाषाण अवशेष उसकी साक्षी देते हैं । तत्पश्चात् एक लम्बे से काल-खंड के बीतने के पश्चात् सृजित हुए - विजय नगर के सुविशाल, सुप्रसिद्ध साम्राज्य के महालय और देवालय | ईस्वी सन् १३३६ में २

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