Book Title: Dakshina Path Ki Sadhna Yatra
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Vardhaman Bharati International Foundation

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Page 14
________________ बुलाओं को अपनी स्मृति की अनुभूति के साथ जोड़कर अपने पूर्व परिचित स्थान को खोजते अन्त में यहां अलख जगाने आ पहुँचे .....। ये धरती, ये शिलाएँ, ये गिरि कन्दरायें मानों उनको बुलावा देती हुई उनकी प्रतीक्षा में ही खडी थीं . . . . . . । रत्नकूट की गुफाओं में प्रथम पैर रखते ही उनको वह बुलावा स्पष्ट सुनाई दिया । पूर्व स्मृतियों ने उनकी साक्षी दी। अंतस् की गहराई से आवाज़ सुनाई दी-"जिसे तू खोज रहा था, चाह रहा था, वह यही तेरी पूर्व - परिचित सिद्धभूमि ।” * अवधूत का अलख जागा...और साकार हुआ गिरिकंदराओं में आश्रम ! और उन्होंने यहाँ अलख जगाया । एकांत, वीरान एवं भयावह इन गुफाओं में आरंभ हुआ उनका एकांतवास । निर्भय एवं अटल रूप से उन्होंने अपनी अधूरी साधना पुनः आरंभ की। उस साधना का लाभ दक्षिण भारत के अनेक साधक उठा सकें, इस उद्देश्य से उन गिरि-कन्दराओं में साकार हुआ यह 'श्रीमद् राजचंद्र आश्रम' । श्रीमद् इस साधना के केन्द्र-बिन्दु थे । आज से आठ वर्ष पूर्व, वि. सं. २०१७ में 'आत्म तत्त्व की साधना के अभीप्सुओं के लिए, बिना किसी जाति-वेश, भाषा, धर्म, देश इ. के बंधन लिए हुए।

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