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पर विश्वास था, अतः वे निडर रूप से उनकी तरफ चलते रहे...... कुछ क्षणों की ही देर थी... .. शस्त्रबद्ध तांत्रिक उनकी ओर लपके...... उस अहिंसक अवधूत का हाथ आदेश में ऊँचा उठा, अपलक आंखों से उन्होंने तांत्रिकों को देखा ... और उनमें से अहिंसा और प्रेम के जो आंदोलन निकले, उनके आगे तांत्रिक रुक गये, उनके शस्त्र गिर गये एवं वे हमेशा के लिए वहां से भाग गये । अहिंसा के आगे हिंसा हार गई !! निर्दोष पशुओं को अभयदान मिला। हिंसा सदा के लिए विदा हो गयी । निर्दोष पशुओं के शोषण से मलिन वह धरती पुनः शुद्ध हुई। * हिंसा के स्थानों में अहिंसा की प्रतिष्ठा...!
हिंसा को मिटाने के साथ ये अवधूत अहिंसा और प्रेम के शस्त्र से उन हिंसक तांत्रिकों को बदलना चाहते थे, परंतु वे रुके नहीं।
उनके भागने की बात सुनकर इस घटना में हिंसा के ऊपर अहिंसा की विजय देखने के बजाय लोग इसे 'चमत्कार' मानने लगे । अन्य तांत्रिक, मैली विद्या के उपासक, चोरडाकू व शराबी भी इस स्थान से चले गये । आखिर लातों के भूत बातों से कैसे मानते ? वे तो 'चमत्कार' को ही 'नमस्कार' करने वाले जो थे।
कई साधकों ने इन निर्जन गुफाओं में अशांत, भटकती प्रेतात्माओं का आभास पाया था, अतः भद्रमुनिजी ने इन गुफ ओं को शुद्ध बनाया व प्रेतात्माओं को शांत किया।