Book Title: Dakshina Path Ki Sadhna Yatra
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Vardhaman Bharati International Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 20
________________ अब बचे थे हिंसक प्राणी। श्रीमद् राजचंद्र द्वारा अनुभूत एवं 'अपूर्व अवसर' में वर्णित ऐसे उन 'परम मित्रों' का परिचय भद्रमुनिजी को अन्य वनों-गुफाओं में हो चुका था । श्रीमद् के शब्द उनके मन में गूंज रहे थे : "एकाकी विचारतो बळी श्मशान मां, वळी पर्वत मां वाघ सिंह संयोग जो, अडोल आसन ने मनमां नहीं क्षोभता, परम मित्र नो जाणे पाम्या योग जो। अपूर्व अवसर एवो क्यारे आवशे?" शेर, बाघ, चीते- ये ‘परम मित्र' दिन में भी दिखाई देते । जिस गुफा में ये एकाकी अवधूत साधना करना चाह रहे थे, उसमें भी एक चीता रहता था। परंतु उन्होंने निर्भयता से उसे अपना मित्र मान वहीं निवास दिया एवं 'अहिंसा प्रतिष्ठायां तत्सन्निधौ वैरत्यागः ।'- पतंजलि के इस योग सूत्र को जैसे न्याय देते हुए वह हिंसक पशु अपना वैर त्याग उस अहिंसक अवधूत के पास रहा भी। बाद में वह अन्यत्र चला गया। तब से लेकर आश्रम के बनने के बाद आज तक, उसी गुफा- वर्तमान गुफामंदिर की अंतर्गुफा- में श्री भद्रमुनिजी की साधना चल रही है। उसी में १६ फुट का सांप भी रहता था। कई व्यक्तियों ने उसे देखा भी है। पिछले कई वर्षों से वह अदृश्य है। ___ इस प्रकार भद्रमुनिजी ने इस प्राचीन साधनाभूमि पर अहिंसा की पुनः प्रतिष्ठा कर हिंसक मानवों, पशुओं एवं

Loading...

Page Navigation
1 ... 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50