Book Title: Dakshina Path Ki Sadhna Yatra
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Vardhaman Bharati International Foundation

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Page 16
________________ है। प्रथम नियम ध्यान आकर्षित करता है-"मत-पंथ के आग्रहों का परित्याग एवं पन्द्रह भेद से सिद्ध के सिद्धांतानुसार धर्म-समन्वय ।" यह नियम श्रीमद् के सुविचार की स्मृति दिलाता है । ''तुम चाहे किसी धर्म को मानों, मै निष्पक्ष हूँ........ जिस राह से संसार के मल का नाश हो, उस भक्ति-मार्ग धर्म एवं सदाचार का तुम पालन करना । साधकीय नियमावली के अन्य निषेधों में इस सदाचार का समावेश हो जाता है, यथा, सात व्यसन, रात्रिभोजन, कंदमूल आदि अभक्ष्य पदार्थों का वीतरागता युक्त त्याग । ___ यहाँ व्यक्तिगत या सामुदायिक रूप से साधना करने का स्वातंत्र्य है। इसमें स्वाध्याय, सामयिक-प्रतिक्रमण इत्यादि धर्मानुष्ठान, ध्यान, भवित, मंत्रधुन, प्रार्थना, भजन इत्यादि का समावेश होता है । साप्ताहिक, पाक्षिक या मासिक कार्यक्रमों के अलावा प्रतिदिन सत्संग स्वाध्याय, प्रवचन एवं सुबह शाम का भक्तिक्रम इतना सामुदायिक रूप से चलता है। यह भी अनिवार्य नहीं है, परंतु कोई भी इसका आनन्द, इसका लाभ छोड़ना नहीं चाहता। ऐसी समन्वयात्मक दृष्टि को लेकर आश्रम में स्वातंत्र्य पूर्वक स्वाध्याय, सत्संग, भक्ति-ध्यान की आत्मलक्षी साधना चल रही है। यह साधना जब हरेक के श्रेय केलिये सामुदायिक रूप से चलती है तब समाजलक्षी हो जाती है एवं

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