Book Title: Dakshina Path Ki Sadhna Yatra
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Vardhaman Bharati International Foundation

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Page 4
________________ दो शब्द चौदह वर्षों पूर्व, यहाँ वर्णित भूमि- श्रीमद् राजचंद्र आश्रम, हंपी के प्रथम दर्शन के उपरांत यह लेख लिखा था । उसके पश्चात् इस भूमि के प्रति इतना आकर्षण रहा कि इन पंक्तियों के लेखक ने, आश्रम की अभिनव भूमि पर, स्वयं साधना एवं विद्यापीठ के निर्माण हेतु, अहमदाबाद के गुजरात विद्यापीठ का प्राध्यापक - पद तक छोड़कर, बेंगलोर एवं हम्पी आकर निवास किया । इस स्थानांतरण एवं विद्यापीठ - निर्माण कार्य की प्रेरणा एवं आज्ञा देनेवाले थे—परम उपकारक विद्यागुरु पद्मभूषण प्रज्ञाचक्षु डॉ. पंडित सुखलालजी, जिन्होंने लेखक को अपनी निश्रा एवं सेवा-शुश्रूषा भी छुड़वाकर दूर दक्षिण में भेजा । उसके बाद की कहानी भी लंबी-चौड़ी है, जो 'साधना - यात्रा का संधान पथ' के नाम से इसी क्रम में लिपिबद्ध हो रही है । आज योगीन्द्र श्री सहजानंदघनजी सदेह से नहीं रहे, प्रज्ञाचक्षु पंडितवर्य श्री सुखलालजी भी नहीं रहे, परंतु इन महापुरुषों की प्रेरणा एवं भावना, कई प्रतिकूलताओं के बीच से भी, चौदह वर्षों की तपस्या के पश्चात् अब साकार रूप लेने जा रही है । इस विषय में अधिक अभिव्यक्ति एवं जानकारी पाठकों के प्रतिभाव एवं रुचि जानने के पश्चात् । यहाँ प्रस्तुत है

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