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कृति नहीं है ।
हमारा यह शरीर साधना में सहयोग करता है । इसके ज्ञानतंतुओं, ज्ञानचक्रों तथा नाड़ी संस्थान के विभिन्न नाड़ी वलयों को हम समझें और साधना के क्षेत्र में उनका उपयोग करना सीखें। इसके लिए अनेक उपाय खोजे गये हैं । इतनी खोजें हुई हैं कि आज हमें वे ज्ञात भी नहीं हैं ।
हृदय, कंठ और मस्तिष्क - ये तीन स्थान साधना में उपयोगी हैं। हृदय 'आनन्द - केन्द्र' है, कंठ 'विशुद्धि केन्द्र' है और मस्तिष्क ज्ञान केन्द्र' है । ये ज्ञानतंतुओं के बड़े-बड़े गुच्छक हैं। हृदय भावपक्ष का स्थान माना जाता है । क्रिया का स्थान है सुषुम्ना - शीर्ष और भाव का स्थान है— हृदय । अच्छी-बुरी भावना को हृदय के साथ जोड़ा जाता है। आनन्द- केन्द्र, विशुद्धि-केन्द्र और ज्ञान - केन्द्र पर जितना स्थिरीकरण होगा उतना ही वृत्तियों का क्षय होगा । वृत्तियों को क्षीण करने का, शारीरिक प्रक्रिया में, सबसे बड़ा स्थान है सहस्रारचक्र । यह ज्ञान केन्द्र है । इस पर ध्यान केन्द्रित करने पर वृत्तियों का क्षय होता है, संज्ञाएं शांत होती हैं । कुछ अभ्यास-काल के पश्चात् यह स्वयं अनुभव होने लगता है कि कुछ हो रहा है, कुछ घटित हो रहा है। शारीरिक क्रिया की दृष्टि से संज्ञा-मुक्ति का चौथा उपाय है-आनन्द-केन्द्र, विशुद्धि केन्द्र और ज्ञान केन्द्र पर चित्त का स्थिरीकरण । इस स्थिरीकरण का परिणाम है- वृत्तियों का क्षय, मूर्च्छाओं का विनाश, संज्ञाओं की समाप्ति ।
संज्ञा - मुक्ति का पांचवां उपाय है— सूक्ष्म प्राणायाम |
निश्चय - दृष्टि से नो- संज्ञोपयुक्त होता है वीतराग और व्यवहारदृष्टि से प्रत्येक मुनि 'नो -संज्ञोपयुक्त' होता है। वह व्यवहार से वीतराग होता है। शुद्ध चेतना का अर्थ है - वीतरागता । शुद्ध चेतना का अनुभव करना, संज्ञा-मुक्त होनाइसका तात्पर्य है कि वीतराग होना । यह हमारा आदर्श है । हमें यह बनना है । यह हमारे सामने निरंतर रहना चाहिए। जब यह आदर्श बना रहेगा तभी हम वैसा बन पायेंगे | हम वीतराग की भावना करें । वीतराग सत्त्व गुण वाला होता है । सत्त्व, रज और तमस् — ये तीन गुण होते हैं । सत्त्व का वर्ण है सफ़ेद, रजस् का लाल और तमस का काला । वीतराग के साथ श्वेत वर्ण की भावना करें । वीतराग के गुणों का स्पष्ट चित्र हमारे सामने आ जाये । वीतराग के स्वरूप की स्पष्ट धारणा हो । पहले हमने स्पष्ट धारणा बना ली। फिर उसका चित्र बनाया । चित्र की स्पष्टता के बाद हम कायोत्सर्ग की मुद्रा में बैठ जाएं और बाएं स्वर से श्वास लें। पूरक करें । उस पूरक के साथ-साथ हमारी यह दृढ़ भावना और दृढ़ संकल्प बना रहे कि वीतराग हमारे अन्तःकरण में उतर रहा है। विधायक कल्पना रेचन के साथ नहीं की जा सकती, वह पूरक के साथ ही की जा सकती है । जब श्वास को हम बाहर निकालते हैं, रेचन करते हैं, तब उसके साथ कोई अच्छी
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८ : चेतना का ऊर्ध्वारोहण
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