Book Title: Chetna ka Urdhvarohana
Author(s): Nathmalmuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh
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उसकी अपनी सीमा है। वह आत्मा पर प्रभाव डालता है किन्तु उसी आत्मा पर प्रभाव डालता है जिसमें राग-द्वेष है। राग-द्वेष-रहित चेतना पर कर्म का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। प्रभाव वह अपनी सीमा में ही डालता है । दूसरे क्षेत्रों में वह अपना प्रभाव नहीं डाल सकता। कर्म की सार्वभौम सत्ता नहीं है। सीमित ही उसकी सत्ता है और सीमित ही उसका प्रभाव है। इसलिए हम स्वतंत्र भी हैं । स्वतंत्र हैं इसीलिए आवेगों को शांत करने की हमारी मनोवृत्ति है, कामना है। हम आवेगों को शांत कर सकते हैं इसलिए हमारी साधना है। यदि हम आवेगों को शांत नहीं कर सकते तो साधना व्यर्थ है। यदि हम यह मानते ही चले जायें कि जैसा कर्म में लिखा है वही होगा, साधना लिखी है तो साधना आ जायेगी, अधिक बोलना लिखा होगा तो अधिक बोलेंगे, झगड़ा करना लिखा होगा तो झगड़ा करेंगे-तब तो कुछ भी करने की ज़रूरत नहीं है। जैसा लिखा है वैसा होगा। किन्तु यह भ्रांति है। ___ साधना का मूल सूत्र यही है कि कर्म ही सब कुछ नहीं है। साधना का मूल प्रयोजन है कि आत्मा अपने स्वरूप में आ जाये, जाग जाये, जागरण की एक चिनगारी भी मिल जाये। बस, इतना पर्याप्त है। यह मार्ग मिल जाये तो फिर साधक बिना रोक-टोक आगे बढ़ सकता है और आत्मा को पूर्ण अनावृत करने में सक्षम हो सकता है।
१८६ : चेतना का ऊर्ध्वारोहण
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