Book Title: Chetna ka Urdhvarohana
Author(s): Nathmalmuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 203
________________ अनुभवों के द्वारा ही यह ज्ञात हो सकता है कि संवर कसे हो सकता है ? मैं कहूं कि संवर करें, आस्रव रुक जायेगा, मूर्छा का सघन वलय टूट जायेगा। बात तो बहुत ही सीधी-सी लगती है। पर संवर कैसे हो, यह प्रश्न इतना सीधा नहीं है। साधना के क्षेत्र में चार शब्द प्रचलित हैं-संयम, चारित्र, प्रतिक्रमण और प्रत्याख्यान । संयम करें। इंद्रियों का संयम करें, मन का संयम करें, वासनाओं का संयम करें। चारित्र अर्थात् आचरण। हम शुद्ध आचरण करें। संयम संवर की प्रक्रिया है। चारित्र संवर की प्रक्रिया है। प्रतिक्रमण और प्रत्याख्यान भी संवर की प्रक्रिया है। अतीत का प्रतिक्रमण होता है और भविष्य का प्रत्याख्यान होता है । तीन क्षण हैं-एक है अतीत का क्षण, एक है वर्तमान का क्षण और एक है भविष्य का क्षण। बीता हुआ क्षण अतीत है, आने वाला क्षण भविष्य है और इन दोनों के बीच का क्षण वर्तमान है। संवर वर्तमान के क्षण में होता है। जिसने अतीत का प्रतिक्रमण और भविष्य का प्रत्याख्यान किया तो प्रत्युत्पन्न क्षण, जो क्षण उत्पन्न हो रहा है, उस क्षण में अपने-आप संवर हो जाएगा। जो आस्रव चल रहा है, उसका प्रतिक्रमण करें। उस आस्रव से आप अपने स्वभाव में लौट आयें। अपने चैतन्य के अनुभव को छोड़कर आप राग-द्वेष के अनुभव में चले गये थे, अब राग-द्वेष के अनुभव को छोड़कर पुनः चैतन्य के अनुभव में आ जायें, संवर हो जायेगा। राग-द्वेष के अनुभव से वापस लौट आना प्रतिक्रमण है। आप संकल्प करें कि आप राग-द्वेष के क्षण में नहीं जायेंगे। जब यह संकल्प दढ़ हो जाता है तब राग-द्वेष के अनुभव से आप लौट आते हैं। पुन: आप उस अनुभव में नहीं जायेंगे। दोनों ओर से राग-द्वेष का अनुभव समाप्त हो जायेगा। यह बीच का क्षण, वर्तमान का क्षण, अतीत और भविष्य के बीच का क्षण, चैतन्य के अनुभव का क्षण हो जायेगा, संवर हो जायेगा। असंयम के द्वारा आस्रव के द्वार खुलते हैं। मन का असंयम, इंद्रियों का असंयम, शरीर का असंयम होता है तब द्वार खुलते हैं। अनियंत्रित स्थिति में खुलना स्वाभाविक है, उच्छृखलता स्वाभाविक है। जब उच्छृखलता होती है, खुलना होता है तब किसी का आना भी स्वाभाविक बन जाता है । उस समय संवर नहीं हो सकता। हमने संयम किया। संयम का कार्य है, जो आ रहा था उसे रोक दिया। चारित्र का कार्य है, जो पहले था उस खज़ाने को खाली कर दिया। असंयम क्यों होता है ? हमने कुछ विजातीय द्रव्य का संचय कर रखा है। वह अपने साथियों को निमंत्रित करता है। हमने अपने ही राग-द्वेष के कारण असंयम को पाला और असंयम ने मोह का संग्रह किया, मूर्छा का संग्रह किया, कषाय को प्रबल बनाया। वही मूर्छा औरवही मोह दूसरे-दूसरे कर्म-परमाणुओं के लिए स्वागत का द्वार खुला रख रहा है। आओ, आओ, एकत्र हो जाओ। यह जो मूर्छा का, मोह का, असंयम का प्रयत्न चल रहा है, उसके कारण इतने कर्म-परमाणु आये हैं कर्मवाद के अंकुश : १८६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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