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जाता है। वह हमारे स्मृति-कोष्ठों में चला जाता है। धारणा लंबे समय तक टिक जाती है। अवग्रह में थोड़ा समय लगता है, ईहा में थोड़ा समय लगता है, अवाय में कुछ ज्यादा समय लगता है, किंतु धारणा दीर्घकाल तक चलती है। उसका समय सबसे लंबा है। ग्रहण, विमर्श और निश्चय का कालमान अल्प होता है। धारणा का कालमान दीर्घ होता है। वह वैसी-की-वैसी हजारों वर्षों तक बनी रह सकती है। धारणा का ही एक नाम है-वासना। धारणा का ही एक नाम है-संस्कार । धारणा का ही एक नाम है-अविच्युति । वह च्यूत नहीं होती। वह टिकी रहती है। वह वासना बन जाती है। वह संस्कार बन जाती है। वही धारणा, वासना या संस्कार, किसी निमित्त को पाकर जब उबुद्ध होती है, जागृत होती है, तब स्मृति होती है। स्मृति का हेतु है-वासना। स्मृति का हेतु हैसंस्कार । स्मृति का हेतु है.-धारणा।
धारणा अच्छी है या बुरी, इसका कोई प्रश्न नहीं है। धारणा अच्छा परिणाम देती है या बुरा परिणाम- इसका भी प्रश्न नहीं है। वह मात्र स्मृति का कारण बनती है। कोई परिस्थिति, कोई परिवेश, कोई हेतु ऐसा मिला और जो बात स्मृति-कोष्ठ में थी, धारणा-पटल में थी, वह जाग गयी और स्मृति के रूप में उभर आयी। हमें ज्ञान हो गया-यह वह है। जो शब्द सुना था, जो दृश्य देखा था, पूरा-का-पूरा चित्र स्मृति के आधार पर हमारे सामने आ जाता है। मनोविज्ञान इसे 'स्मृति-चित्र' कहता है। स्मृति का प्रतिरूप हमारे सामने आ जाता है। जैसा देखा था, जैसा सुना था, वैसा-का वैसा स्मृति-पटल पर उभर आता है। कभी-कभी ऐसा होता है कि संगीत के जो मधुर स्वर कभी सुने थे, वे किसी निमित्त को पाकर स्मृति-पटल पर उभरते हैं और तत्काल कानों में वे स्वर गूंजने लग जाते हैं। यह केवल स्मृति है। इसी प्रकार जो दृश्य वर्षों पूर्व देखा था, जो स्मति-पटल पर अंकित था, वह निमित्त के मिलते ही साक्षात्-सा हो जाता है। आकृति दीखने लग जाती है। मार्ग, मकान, बगीचे सब-कुछ दीखने लग जाते हैं। ये सारे स्मृति के रूप हैं। ये सारे वासना और संस्कार के कार्य हैं। इनके साथ हम अच्छाई या बुराई को नहीं जोड़ सकते । यह वासना का कार्य नहीं है। संस्कार का भी यह कार्य नहीं है। प्रश्न होता है कि यह कार्य किसका है ?
स्मति के उभरने के बाद, अच्छाई और बुराई को जोड़ने वाली एक तीसरी सत्ता है। वह है कर्म । कर्म न वासना है, न संस्कार है, न धारणा है और न स्मति। वह इन सबसे भिन्न है, पृथक् है। यह भिन्न इसलिए है कि ज्ञान के क्रम में कर्म नहीं बनता। केवल ज्ञान का जो क्रम है, कोश जानने का जो कम है, वहां कर्म की रचना नहीं होती, कर्म का संबंध हमारी आत्मा के साथ स्थापित नहीं होता। यह संबंध कब और कैसे स्थापित होता है, इस प्रश्न पर हमें विचार करना है। ___ महावीर से पूछा गया--"भंते ! कर्म का संबंध कितने स्थानों से होता है ?"
१०६ : चेतना का ऊर्ध्वारोहण
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