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समस्या का मूल बीज
• योग्यतात्मक क्षमता - लब्धिवीर्य ।
• क्रियात्मक क्षमता - करणवीर्य ।
• शरीर मन को प्रभावित करता है और मन शरीर को प्रभावित
करता है । दोनों का मूल है - कर्म ।
• काल का प्रभाव । काललब्धि से विकास ।
• व्यवहार राशि और अव्यवहार राशि |
कुछ व्यक्ति नहीं जानते कि उन्हें क्या करना है ? कुछ व्यक्ति जानते हैं पर करने में समर्थ नहीं होते। कुछ व्यक्ति जानते हैं किन्तु सही-सही नहीं जानते । कुछ करते हैं, पर सही ढंग से नहीं करते। इस प्रकार अनेक समस्याएं हैं और प्रत्येक व्यक्ति को किसी-न-किसी समस्या का सामना करना पड़ता है । ये समस्याएं क्यों हैं ? इनका हेतु क्या है ? कर्मशास्त्र में इन प्रश्नों पर विमर्श किया गया और इनका समाधान भी दिया गया ।
ज्ञान की दूसरी शाखाएं, जो स्नायविक उत्तेजना तथा परिस्थिति के कारण मानवीय आचरण की व्याख्या करती हैं, वे शरीर से आगे नहीं जातीं। यह उनका विषय भी नहीं है । उनका विषय शरीर से प्रतिबद्ध है ।
मानसशास्त्र ने मनोविश्लेषण किया और मानसिक समस्याओं के बारे में विचार भी किया, उनका समाधान भी दिया । किन्तु वह समाधान परिस्थिति और परिस्थिति-जनित स्नायविक उत्तेना- इन दो में समाहित हो जाता है । वह इन दो से आगे नहीं जाता । वह अवचेतन मन तक जाता है। किन्तु अवचेतन मन में
१४४ : चेतना का ऊर्ध्वारोहण
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