Book Title: Chetna ka Urdhvarohana
Author(s): Nathmalmuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 184
________________ संतुलन के साथ काम करेगा । यदि यह परिणाम और विपाक से आंख मूंदकर कार्य करता चला जाता है तो उससे वे काम भी हो जाते हैं जो अनिष्टकर, हानिकर होते हैं । विश्व में जितने भी अवांछनीय कार्य हुए हैं, होते हैं, वे परिणाम की ओर से आंख मूंद लेने के कारण ही हुए हैं, होते हैं । विपाक - प्रेक्षा की चेतना जागृत न होने कारण ही वे होते हैं । विपाक - प्रेक्षा की चेतना जागृत हो तो अवांछनीय कार्य, अनिष्ट प्रवृत्ति नहीं हो सकती । विपाक की प्रेक्षा ध्यान का एक अंग है । जैन दर्शन में धर्म्यध्यान के चार प्रकार बतलाए गए हैं— आज्ञा विचय, अपाय विचय, विपाक विचय और संस्थान विचय । इनमें तीसरा है— विपाक विचय । विपाक का विच - विपाक - प्रेक्षा, विपाक दर्शन । बहुत गहरे में जाकर हम देखते हैं कि अभी किस कर्म का विपाक हो रहा है। बीमारी में किस कर्म का विपाक हो रहा है । क्रोध आया, यह किस कर्म का विपाक है, उसे हम देखते हैं, विपाक की अनुचितना करते हैं, विपाक का विचय करते हैं, वहां हमारे मानस की स्थिति बदल जाती है, वह बिलकुल रूपांतरित हो जाती है । कर्म आठ हैं और आठ कर्मों के अनेक विपाक हैं । इन्द्रिय-ज्ञान की शक्ति तथा मन के ज्ञान की शक्ति को आवृत करना ज्ञानावरण कर्म का विपाक है । ज्ञानावरण कर्म जब विपाक में आता है, तब वह हमारी ज्ञान की शक्तियों को ढांक देता है। दर्शनावरण कर्म का विपाक होता है, तब हमारी देखने की शक्ति आवृत हो है । नींद आती है, गहरी नींद आती है, इतनी गहरी नींद कि जिस नींद में आदमी दिन में की हुई कल्पनाओं को क्रियान्वित कर डालता है । इतनी प्रगाढ़ निद्रा कि आदमी नींद में ही मीलों चला जाता है, काम कर डालता है, किसी को पीट डालता है, कुछ तोड़ डालता है, फिर घर में आकर बिस्तर पर लेट जाता है । इतना होने पर भी उसकी नींद नहीं टूटती । ऐसी नींद में एक विशिष्ट प्रकार की शक्ति उत्पन्न होती है और उस शक्ति से प्रेरित होकर व्यक्ति असंभव कार्य भी कर डालता है । ऐसा दर्शनावरण कर्म के विपाक से होता है । मोह कर्म का विपाक होता है तब राग-द्वेष का चक्र चलने लगता है, विभिन्न प्रकार के आवेग उत्पन्न होते हैं, विभिन्न प्रकार की वासनाएं उभरती हैं, भय जाता है तथा अन्यान्य आवेग भी कार्यरत हो जाते हैं। कर्मों के विपाक का यह चक्र अविश्रांत गति से घूमता रहता है। कभी कोई विपाक जागता है और कभी कोई । इनकी निरंतरता टूटती नहीं । क्या हम इन विपाकों को निरस्त कर सकते हैं ? नहीं, इन्हें निरस्त नहीं किया जा सकता ? किन्तु इनको हम रोक सकते हैं । एक प्रक्रिया है— कर्म को न बांधने की, कर्म के बीज को समाप्त करने की । १७० : चेतना का ऊर्ध्वारोहण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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