Book Title: Chetna ka Urdhvarohana
Author(s): Nathmalmuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

Previous | Next

Page 182
________________ कर दिया जाये तो फिर मादक वस्तुओं के सेवन की आदत समाप्त हो जाती है, भावना समाप्त हो जाती है। उन्होंने ऐसे आपरेशन किये हैं और उनमें सफल हुए हैं। उनका यह निष्कर्ष है कि अनेक आवेग, अनेक उत्तेजनाएं, चिड़चिड़ा स्वभाव, कलह करने की वृत्ति, इन सबको मस्तिष्क के अमुक-अमुक केन्द्रों के आपरेशन के द्वारा ठीक किया जा सकता है । उनको मिटाया जा सकता है। हमारे मस्तिष्क में कई प्रकार की तरंगें पैदा होती हैं—अल्फ़ा, बीटा, गामा . आदि-आदि । ये तरंगें हमारे में विभिन्न प्रकार की प्रवृत्तियों को उत्पन्न करती हैं। कई प्रकार की अन्य तरंगें भी हैं, जिनका विकास यौगिक पद्धति के द्वारा किया जा सकता है। उनका अध्ययन और परीक्षण भी किया जा सकता है। आज की चिकित्सा पद्धति ने इतना विकास कर लिया कि वह आपरेशन के द्वारा या बिजली के झटके देकर, विभिन्न आवेगों को, विभिन्न आदतों को मिटाने में सक्षम हैं। आवेग के केन्द्र को समाप्त कर देने पर वह जीवन भर फिर कभी सक्रिय नहीं हो सकता। काम-वासना का आवेग, कषाय का आवेग, भय का आवेग आदि-आदि सभी आवेगों को समाप्त करने में आज का चिकित्सा विज्ञान सक्षम है। चिकित्सा की सीमा है-हमारा दृश्य शरीर, औदारिक शरीर। शरीर का मुख्य भाग है मस्तिष्क । इसके माध्यम से चिकित्सक इस परीक्षण में लगे हुए हैं कि किस प्रकार आवेगों के केन्द्रों को सुधार कर मनुष्य को आवेगों के प्रहारों से बचाया जा सकता है। यह शरीरशास्त्रीय और चिकित्साशास्त्रीय खोजों का निष्कर्ष है। अब हम अध्यात्मशास्त्रीय निष्कर्षों पर भी विचार करें। क्या बिना आपरेशन के भी इन आवेगों को शान्त किया जा सकता है ? मस्तिष्क के विशेष केन्द्र-बिन्दुओं और विशेष स्नायुओं को काटे बिना ही क्या उत्तेजनाओं, वासनाओं और आदतों को शांत किया जा सकता है ? इन प्रश्नों पर प्राचीन काल से अध्यात्म के साधकों ने, अध्यात्म के तत्त्ववेत्ताओं ने जो अनुसंधान किये हैं, जो परीक्षण और प्रयोग किये हैं, उन पर हमें एक दृष्टि डाल देनी चाहिए। ___. अध्यात्म-तत्त्ववेत्ताओं ने कहा कि यह सब आत्मिक प्रक्रिया के द्वारा भी हो सकता है। आत्मिक प्रक्रिया में सबसे पहली बात है-स्वरूपानुसन्धान, अपने स्वरूप का संधान । हम एक बात को न भूलें कि हमारे सामने एक ही प्रकाशकिरण है और वह है हमारा स्वतंत्र अस्तित्व । हमारा स्वतंत्र स्वभाव है, अस्तित्व है और उसको कभी मिटाया नहीं जा सकता। उस स्वभाव को कभी भी दबाया नहीं जा सकता। उस स्वभाव को कभी भी पूर्णतः आच्छन्न नहीं किया जा सकता। चाहे हज़ार बार कर्मों का आक्रमण हो, हज़ार बार कर्म के पुद्गलों की रासायनिक प्रक्रियाएं आवृत्तियां करती रहें, फिर भी उसे पूर्णत: विकृत नहीं किया जा सकता, १६८ : चेतना का ऊर्ध्वारोहण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214